चीनी राष्ट्रपति जिस वक्त पाकिस्तान की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित
कर रहे थे उस वक्त पाकिस्तानी सांसदों के चेहरे पर एक उतावली नज़र आ रही
थी। संसद के फ्लोर से तकरीबन आठ फीट ऊपर शी जिनपिंग का आसन था और वहीं पर
भाषण देने का स्थान भी। पूरे प्रसारण के दौरान अनुवादक की समझ और समाचार
चैनलों पर प्रसारित होने लिखित समाचार ही शि जिनपिंग की बातों को समझ पाने
का माध्यम थे। जब भाषा समझ न आ रही हो तो ध्यान भावों पर जाता है। भावों के
ज़रिये उन अर्थों को समझने की कोशिश की जाती है जो सीधे संवाद से हासिल न
हो पा रहे हों। वहीं इस भाषण के दौरान भी हुआ। पाकिस्तानी सांसदो के चेहरे
पर उतावली की वजह समझने के लिये दिमाग पर ज्यादा ज़ोर लगाने की ज़रूरत नहीं
पड़ी। आमतौर पर भारतीय जनमानस जब पाकिस्तानी शासकों को देखता है तो उसके
दिमाग में केवल अविश्वास उत्पन्न होता है और कुछ नहीं। पुरानी पीढ़ी ने
1948, 65 और 71 कीं जंग देखी तो नई पीढ़ी ने करगिल देख लिया। अब जो नौनिहाल
हैं वो सीज़फायर के उल्लंघन और सैनिकों के सर काट लेने की खबरों से परिचित
होने लगे हैं। चीनी रष्ट्रपति के संबोधन के वक्त जो उतावली पाकिस्तानी
सांसदो के चहरों पर नज़र आ रही थी उसमे एक अलग अहसास नज़र आ रहा था। अपने
भाषण के दौरान चीनी राष्ट्रपति एक के बाद एक भावनाओं की चाशनी में लपेट कर
जलेबियां उतार रहे थे और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सांसद याचक भाव से उन्हें
विनय पूर्ण तरीके से प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने में लगे थे। तालियां अंतहीन
थीं, सो बजती रहीं। इस बार पाकिस्तानी शासकों में एक दूसरी तरह की बेचैनी
देखने को मिली। विकास और विस्तार के चीनी मॉडल में पाकिस्तानियों ने अपना
उज्जवल भविष्य तलाशने की कोशिशें की हैं। इस बार इन कोशिशों को जो पंख लगे
उनमें चीनी ड्रेगन की फुफकार तेज़ है। पाकिस्तान की नई पीढ़ी का एक बड़ा
तबका विकास के लिये छटपटा रहा है। वो दुनिया से वाकिफ है, पढ़ा लिखा है और
ये समझ रहा है कि तरक्की ही बेड़ा पार लगा सकती है, तालिबान नहीं। उसे इस
बात में कोई शक नहीं कि तालिबान एक दिन तरक्की के आगे हारेगा। नौजवानों ने
अपनी ताकत चाहे विचारों के ज़रिये हो या भुजाओं के, पूरे दक्षिण एशिया में
दिखानी शुरु कर दी है। विकास के लिये बेचैनी है। दुनिया में कुछ कर गुज़रने
की चाहत पाकिस्तानी नौजवानों को सही मोड़ दे रही है। इस चाहत का दबाव न
सियासतदानों पर भी साफ दिख रहा था जो चीनी राष्ट्रपति का भाषण सुन रहे थे।
आये दिन होने वाले बम धमाके, आतंकियों के फिदाईन हमले और उस पर भी पूरी
दुनिया के ताने। पाकिस्तान और उसका नौजवान ऊब रहा है। जिस मुल्क में पिछले
सात सालों से सुरक्षा की चिंता के चलते कोई विदेशी टीम क्रिकेट खेलने न गई
हो, जिस मुल्क में खुलेआम घूम रहे नेताओं पर अमेरिका ईनाम घोषित कर देता
हो, जिस मुल्क की फौजी छावनी के बीचों बीच तीन अमेरिकी हैलीकॉप्टर आकर
दुनिया के मोस्ट वॉंटेड आतंकी को मार कर उसकी लाश उठा ले जाते हों उस मुल्क
के नौजवान की गैरत उसे कचोटती नहीं होगी। कितना फीका पड़ जाता होगा वो जब
दुनिया उसे ताने मारती होगी। पेशावर के सौनिक स्कूल में हुए बच्चों के
कत्लेआम ने पाकिस्तान को आतंक में फर्क न करने की सख्त चेतावनी दी है।
पाकिस्तानी सियासतदान भले ही इन चेतावनियों को नज़र अंदाज़ कर दें लेकिन
वहां के लोग इसे समझ चुके हैं। वो अमन चाहते हैं। चीन ने भले ही भारत को
घेरने के लिये अपनी बिसात बिछाई हो लेकिन दुनिया भर में पिट चुके पाकिस्तान
को चीन ने जो मरहम लगाया है उससे वो न केवल खुद की चोटों के ज़ख्म भर सकता
है बल्कि अपने आत्मसम्मान को मिले घाव पर भी पट्टी कर सकता है। ये
पाकिस्तान के लिये गर्व का मौका है कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती
अर्थव्यवस्था उसे अपना भाई कह रही है। तमाम आतंकी खतरों से परिचित चीन उस
देश में 46 बिलियन डॉलर झोंक रहा है, उसे 5 अरब डॉलर की 8 पनडुब्बियां दे
रहा है।
पाकिस्तान आज जहां खड़ा है वहां पर चीन ने उसका हाथ पकड़ा है, पूरी दुनिया में डंका बजाकर पकड़ा है। ये हाथ अमेरिका ने उस वक्त पकड़े थे जब वो अपनी महानता के प्रतीक दो टावरों की बलि दे चुका था और उसे पाकिस्तान का इस्तेमाल करना था। इस्तेमाल तो चीन भी करेगा लेकिन यहां पर शर्त दूसरी है। ये भावनात्मक मरहम है, चीन ने पाकिस्तान के सामने कोई धर्म संकट भी खड़ा नहीं किया जैसा कि अमेरिका ने मुशर्रफ के सामने किया था कि तालिबान के खिलाफ लड़ें या नहीं। यमन के खिलाफ सउदी अरब की बात ठुकराकर पाकिस्तान ने जो जोखिम मोल लिया था उसे भी चीनी दोस्ती ने काफी हद तक कम कर दिया है।
पाकिस्तान के घावों पर मरहम लगाकर चीन ने अपने शिंजियागं जैसे मुस्लिम बहुल प्रांत में आये दिन होने वाली हिंसा को भी थामने की कोशिश की है।
ये समझौते पाकिस्तान की किस्मत बदल सकते हैं बशर्ते पाकिस्तान के सियासतदान इसका मोल समझें। संसद भवन के हॉल में याचक मुद्रा में बैठे सांसद अगर वाकई विकास के लिये गंभीर हैं तो उन्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। पाकिस्तान में शांति आ गई तो फायदा भारत को भी हो सकता है।
दिनेश काण्डपाल
पाकिस्तान आज जहां खड़ा है वहां पर चीन ने उसका हाथ पकड़ा है, पूरी दुनिया में डंका बजाकर पकड़ा है। ये हाथ अमेरिका ने उस वक्त पकड़े थे जब वो अपनी महानता के प्रतीक दो टावरों की बलि दे चुका था और उसे पाकिस्तान का इस्तेमाल करना था। इस्तेमाल तो चीन भी करेगा लेकिन यहां पर शर्त दूसरी है। ये भावनात्मक मरहम है, चीन ने पाकिस्तान के सामने कोई धर्म संकट भी खड़ा नहीं किया जैसा कि अमेरिका ने मुशर्रफ के सामने किया था कि तालिबान के खिलाफ लड़ें या नहीं। यमन के खिलाफ सउदी अरब की बात ठुकराकर पाकिस्तान ने जो जोखिम मोल लिया था उसे भी चीनी दोस्ती ने काफी हद तक कम कर दिया है।
पाकिस्तान के घावों पर मरहम लगाकर चीन ने अपने शिंजियागं जैसे मुस्लिम बहुल प्रांत में आये दिन होने वाली हिंसा को भी थामने की कोशिश की है।
ये समझौते पाकिस्तान की किस्मत बदल सकते हैं बशर्ते पाकिस्तान के सियासतदान इसका मोल समझें। संसद भवन के हॉल में याचक मुद्रा में बैठे सांसद अगर वाकई विकास के लिये गंभीर हैं तो उन्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। पाकिस्तान में शांति आ गई तो फायदा भारत को भी हो सकता है।
दिनेश काण्डपाल
No comments:
Post a Comment