Saturday, February 20, 2010

आई जी का नकाब कौन पहनेगा






दिनेश काण्डपाल


चेहरे पर नाकब लगा कर इस्टर्न फ्रंटियर राईफल्स के आईजी ने प्रेस कॉंफ्रेस की। अपनी प्रेस कॉफ्रेंस में आईजी ने पश्चिम बंगाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाये। आईजी ने कहा कि उनकी फोर्स के साथ अमानवीय बर्ताव हो रहा है। इस आईजी का नाम है विनय कृष्ण चक्रवर्ती और ये इस्टर्न फ्रंटियर के स्पेशल आईजी हैं। सिलदा के नक्सली हमले में इस्टर्न फ्रंटियर के ही 24 जवान मारे गये थे। अपनी जवानों की मौत से घबराये और आहत आईजी ने जब प्रेस कॉंफ्रेस की तो चेहरे पर नाकब बांध लिया। फौरी तौर पर ये खबर देखने के बाद लगता है कि आईजी नक्सलियों से डर गया है वो अपना चेहरा कैमरे पर नहीं दिखाना चाहता। लेकिन सोचिये कोलकाता में आईजी रैंक का अफसर प्रेस कॉंफ्रेंस करता है और वो भी चेहरे पर नकाब डाल कर। क्या आईजी का मकसद केवल अपना चेहरा छिपाना है या कई चेहरों से नकाब खींचना।
ये तीखा सवाल है। उन आरोपों पर गौर कीजिये जो इस आईजी ने लगाये हैं। आईजीने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार इस्टर्न फ्रंटियर के साथ अमानवीय बर्ताव कर रही है। आईजी ने कहा कि उनके पास बुनियादी चीजों की कमी है फिर भी वो खतरनाक माओवादी इलाकों में लोहा ले रहे हैं। आईजी की खीझ और गुस्सा जब प्रेस के सामने आया तो उसके खुद के चेहरे पर नकाब पड़ा गया। जाहिर सी बात है इस प्रेस कॉफ्रेंस के तुरंत बाद राज्य सरकार ने आई जी को सस्पेंड कर दिया। सरकार वही कर सकती थी, और करना भी यही चाहिये था।
आई जी ने इस तरह की प्रेस कॉंफ्रेस करके हज़ारों सैनिको का मनोबल तोड़ने की कोशिश की है जो नक्सलियों के खिलाफ अभियान में जुटे हैं। आईजी की इस कायराना हरकत की सजा उसे मिलनी चाहिये। लेकिन आईजी के सवालों को भी उतनी ही गंभीरता देनी होगी जितनी उसके नकाब को दी गयी। आईजी की इस प्रेस कॉंफ्रेस को पुलिस रूल का उल्लंघन माना गया और सरकार ने 24 घंटे से पहले आईजी को तो निलंबित कर दिया। लेकिन सरकार ने ये नहीं बताया कि इस वक्त जो जवान नक्सलियों के गढ़ में कैंप लगाये बैठे हैं उनकी सुरक्षा के लिये क्या किया।
आईजी की इस हरकत ने सरकार पर सीधे आरोप लगा दिये हैं। पश्चिम बंगाल सरकार का दामन दागदार भी हो गया है। जो सावाल आईजी ने उठाये हैं वो एक सैनिक का दर्द है जो हर वक्त मौत के मुंह में खड़ा है और उसके पास अपना बचाव के हथियार भी नहीं है। सिलदा हमले में हमने देखा कैसे नक्सली दो दिन पहले तक हमले की तैयारी करते रहे लेकिन खूफिया एजेंट पता नहीं लगा सके। आईजी तो यहां तक कह रहा था कि सरकार को सब पता है लेकिन वो न जाने क्यों कुछ नहीं कर रही।
देश के बहादुर नौजवान सियासतदानों के खेल में अपनी जान गंवा रहे हैं। आईजी की हरकत बता रही है कि ऐसा ही चलता रहा तो अब पुलिस वाले भी नकाब पहन कर नक्सलियों से निपटने की ट्रेनिंग लेने लगेंगे। समझ में नहीं आता कि ऑपरेशन ग्रीन हंट के सेनापति चिदंबरम इतने बेबस कैसे हो सकते हैं। गृह मंत्री जिस राज्य में माओवादियों को खत्म करने का खाका खींच कर आये वहीं उनके 24 बहादुर जवानों को घर में घुस कर मार दिया गया। ये बेबसी आईजी की ही नहीं है मंत्री जी हालात यहां पर काबू में नहीं आये तो कल ये नकाब जो आज आईजी ने लगाया है गृह मंत्री और प्रधानमंत्री को भी लगाना पड़ सकता है।

Thursday, February 18, 2010

सरकारी लापरवाही ने मारा 24 जवानों को

दिनेश काण्डपाल
घातक गलतियों ने 24 जवानों को मार डाला। पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में नक्सिलियों ने शाम को जिस वक्त कैंप पर हमला किया उस वक्त ये जवान अपने हथियारों से दूर ट्रेक सूट पहन कर खाना बना रहे थै। आने वाले खतरे से अन्जान ये जवान इस तैयारी में थे कि कैसे जल्दी खाना बने और दिन भर की थकान मिटायी जाय। कैंप में केवल एक संतरी था। सामान्य तौर पर रेत के बोरे कैंप के आस पास रखे जाते हैं लेकिन सिलदा के कैंप में एसा कुछ नहीं था। कोई ऊंचा टावर भी नहीं था जिस पर चढ़ के देखा जा सके की कौई कैंप की तरफ आ रहा है। बड़ी लापरवाही से योजना बना कर इन जवानों को मौत के मुंह में धकेलने का इंतजाम किया गया। नक्सिलियों ने हमले के अपने परंपरागत तरीकों से हटकर जीप और मोटर साईकिलों का सहारा लिया। धड़धड़ाते हुये सौ से ज़्यादा नक्सली कैंप में धुसे और चूल्हे के पास रोटी सेक रहे जवानों पर अंधाधुध फायरिंग शुरू कर दी। एक संतरी था जाहिर है इस अतिसंवेदन शील इलाके में वो काफी नहीं था। नक्सिलयों ने कैंप को आग लगाई, नौ जवान तो उसी आग में जल कर मर गये। आग से बचने के लिये जो बाहर भागे उन्हें बाहर खड़े नक्सलियों ने भून डाला। बेबस जवान अपनी की मौत का तमाशा देखते देखते मर गये। नक्सलियों ने वो सारे हथियार लूट लिये जो कैंप में रखे थे।
ये हमारी तैयारी है नक्सिलियों से निपटने की। इस वक्त कोई 60 हज़ार जवान नक्सलियों से निपटने की स्पेशल ट्रेनिंग ले रहे हैं। सिलदा में मारे गये जवानों के पास कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं थी। उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि उनके इस कैंप में इतना बड़ा हमला हो सकता है। नक्सलियों ने अचानक इस हमले को अंजाम नहीं दिया। आने जाने वाले रास्तों पर सुंरगे बिछा कर नक्सिलयों ने इस बात को सुनिश्चित किया की कोई इस कैंप में मदद के लिये न पंहुच पाये। बारूदी सुरंगे तकरीबन 24 घंटा पहले बिछायी गयी होंगी। इस काम के लिये भी सौ से ज़्यादा लोग लगे होंगे। लेकिन जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से तन्खवाह उठा रहे खूफिया एजेंसी के बेखबर एजेंटों को इस पूरी कारवाई की कोई खबर नहीं लग पायी। नक्सलियों ने बड़े आराम से कैंप पर हमला किया 24 जवानों को गोलियों से भूना और विजयी मुद्रा में कैप से चलते बने।
प्रधानंमत्री ने नक्सिलियों को देश की सुरक्षा के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया। प्रधानमंत्री के बयान की गंभीरता तब दिखी जब देश के गृह मंत्री ने इस हमल के कुछ दिन पहले ही नक्सलियों से निपटने की रणनीति का खाका खींचा। कोलकाता में मुख्यमंत्रियों से बैठक कर चौड़ी छाती करते हुये टीवी कैमरों के सामने नक्सलियों को चुनौती दी। ऑपरेशन ग्रीन हंट को लेकर खूब बड़बोलापन किया। एक हमले ने इस बड़बोलेपन की हवा निकाल दी। सरे आम सारी योजनाओं की धज्जियां उड़ा दी। अब किसी की इतनी हिम्मत भी नहीं हो रही कि को इन हमलों की निंदा तक कर सकें।
नक्सलियों से निपटने की हमारी क्या तैयारी है इस हमले ने उसकी पोल खोल दी है। कैंप के पास जरूरी तैयारी नहीं की गयीं। केवल एक संतरी ड्यूटी पर था। रेत के बोरे रखे जाने चाहिये थे लेकिन वहां नहीं रखे गये। कैंप के आस पास नज़र रखने का कोई इंतजाम नहीं। ये जंग से कम हालात नहीं हैं। उस अफसर का नाम तक सामने नहीं आया जिसके ऊपर कैंप की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। कौन अफसर था तो इस कैंप में ये देखने गया कि वहां जवानों की सुरक्षा के इंतजाम हैं या नहीं। जंग भी ऐसी जहां दुश्मन की पहचान तक नहीं है। किसे मारें किसे नहीं, सब अपने ही हैं इसी दुविधा में हर सिपाही है। एक खास ऑपरेशन में संवेदनशील इलाके में किस तरह का कैंप लगना चाहिये ये ट्रेनिगं पहले अफसरों को दी जानी चाहिये। बेहद गैरपेशेवराना रवैये ने जिन 24 बहादुरों को मौत के मुंह में धकेल दिया उन पर देश की अदालत में इरादतन हत्या का मामला चलाया जाना चाहिये। ये शर्मनाक लापरवही है उन लोगों की जो नक्सिलियों से लड़ने के लिये जनता का समर्थन मांगते हैं। जो अपने 50 हथियारबंद जवानों की रक्षा नहीं कर सकते वो किस मुहं से आम आदमी की सुरक्षा का भरोसा दिलाये घूम रहे हैं।
सिलदा के हमले ने चुनौती को दोगुना कर दिया है। 24 जवानों को तो मौत के मुंह में धकेल दिया अब भी न जाने कितने कैंप इस लापरवाही की मार झेल रहे हैं। नक्सलियों से निपटने की हमारी तैयारी की अगर ये तस्वीर है तो .ये शर्मनाक है।