Friday, February 8, 2008

सही कहा खन्ना साहब



िदल्ली के उपराज्यपाल ट्रेिफक पुिलस के एक समारोह में थे। उन्होंने कहा िनयम क़ायदे तोड़ना गलत बात है और हम उत्तर भारत के लोग िनयम तोड़ने में गर्व महसूस करते हैं। खन्ना साहब ने जो कुछ भी कहा अपने अनुभव से कहा होगा ऐसा मुझे लगता है। जो लोग दक्षिण भारत में कुछ समय तक रह कर आये हैं वो शायद खन्ना साहब की बात से ज़रूर इत्तेफाक़ रखते होंगें। ढ़ाई साल तक हैदराबाद में रहने का मेरा अनुभव तो यही कहता है िक खन्ना साहब ने ठीक कहा। मुम्बई में अंधेरी स्टेशन पर उतरने पर अगर आपको सीढ़ियों पर लम्बी लाईन िदखे तो चौंकिये मत। मुम्बई में लोग बसों में चढ़ने के लिये लाईन लगाते हैं। उत्तर भारत के किसी शहरो में मैंने नहीं देखा कि बस में लाईन लगा कर चढ़ा जाता हो। ट्रेिफक नियमों कि धज्जियां उड़ाने का आध्यात्मिक आनंद तो अद्भुत है। रेड लाईट जम्प करके क्या मज़ा आता है ये तो ज़बान से समझाया ही नहीं जा सकता बस महसूस किया जा सकता है। ये सब हैदराबाद और मुम्बई में भी होता है लेकिन ऐसा नहीं जैसा दिल्ली में होता है। दिल्ली में अाटो की सवारी अगर आप करते हैं तो समझ सकते है कि दर्द क्या होता है। मुम्बई में आटो चालकों की शालीनता और इमानदारी का मैं कायल हूं। इक्कीस रुपये पचास पैसे के बिल पर मैंने जब पच्चीस रुपये दिये तो आटो चालक ने मुझे पूरे तीन रुपये पाचस पैसे लौटाये। दिल्ली के परिवहन मंत्री ज़रा बतायें कि आटो चालक कितने काबू में हैं। दिल्ली में आटो वाले ने अगर देख लिया कि सवारी मुसीबत में है तो फिर सवारी की जेब पर उस्तरा चलता तय है। एक बार फिर से बस की बात पर आता हूं। पिछले दिनों मुझे दिल्ली में लो फ्लोर बसों की सवारी का मौका मिला। वजीरपुर से ये बस बनकर चलती है। वजीरपुर पर जैसे ही शानदार चमचमाती बस आयी स्टाप पर सवारियों की धक्का मु्ककी ने उसकी शान को बट्टा लगा दिया। बड़ा दिल दुखा मेरा। बस कंडक्टर का व्यवहार हर रोज़ बेइज्जत करता है। इतनी बड़ी पुलिस के बाद भी ब्लू लाईन के ड्राइवर का अदम्य साहस ही है कि वो जहां मर्जी बस को रोक सकता है। और ये काम वो ड्राइवर हर रोज़ करता है। कई बाते हैं जो उपराज्यपाल ने कही थी इस बात के अलावा भी उनको भी सुन लेते तो अच्छा था।
राज ठाकरे ने जो आग लगाई उसमे तेजिन्दर खन्ना के बयान ने घी कैसे डाल दिया, खैर, ठीक नहीं है दोनों के बयान को जोड़ना। एक विशु्द्ध राजनीति कर रहा है तो दूसरा थोड़ा दर्द बयान कर रहा है। हमको बुरा क्यू लगता है अपने बारे में बुरा सुनकर। किसी की क्या सुनना। ये तो हमारा दिल भी जानता है कि खन्ना साहब ने ठीक कहा या ग़लत।

दिनेश काण्डपाल

Thursday, February 7, 2008

छोटे क़द के राज


राज ठाकरे को मैं पसंद करता था। राज के बारे में ज़्यादा नहीं जानता था। इतना पता था िक वो अच्छे कार्टून बनाते हैं, जब राज ने िशव सेना छोड़ी उस वक्त मैं बाल ठाकरे के पुत्र प्रेम को दोषी मानता था लेिकन आज मुझे बाला साहेब ठाकरे का िनर्णय ठीक लग रहा है। महाराष्ट्र नव िनर्माण सेना के नामकरण के वक्त भी मैं चौंका था लेिकन नाम के पीछे राज मन में क्या उद्देश्य पालेंगें ये सोचा भी नहीं था। शकल देखने पर लगता था िक राज का व्यक्ितत्व िवराट है, उनमें बड़े नेता बनने की अपार संभावनाओं ने ही राज को मेरी पसंद बनाया था, लेिकन राज इतने असहाय हो जायेंगें ये स्वीकार करने मंे मुझे बड़ा वक्त लग गया। नौजवान अफसरों की कमी हमारे देश की सेना में भी है और राजनीित में भी। इस साल नेश्नल िडफ्ेंस अकादमी को तीन सौ से ज़्यादा कैडेट्स चािहये थे लेिकन िमले केवल एक सौ नब्बे। राजनीित में नौजवानो तो इतना टोटा हो गया है िक दूर तक रास्ता नहीं िदखता। ऐसे में राज ठाकरे से मैने बड़ी उम्मीद लगायी थी। सब टूट गयी। क्या राज केवल मराठी और उत्तर भारतीय के मुद्दे को लेकर ये सोच रहे हैं िक वो अपना बेड़ा पार लगा लेंगें। मुझे बड़ी दया आती है राज ठाकरे और उनके सलाहकारों पर। आज का नौजवान क्या सपने पाल रहा है और उसके नौजवान नेता क्या रास्ता िदखा रहे हैं। राज की पार्टी की ताज़ा धमकी सुनकर तो मैं ठहाके लगाये बगैर नहीं रह सका। अब राज ठाकरे ने धमकाया है िक वो उत्तर भारत से आने वाली ट्रेनों को महाराष्ट्र में घुसने नहीं देंगें। अपने को स्व्यंभू मरािठयों का नेता कहने वाले राज ठाकरे ये कैसे तय करेंगें िक आंध्रा एक्सप्रेस जो नई िदल्ली से हैदराबाद जाती है उसे वो ब्लारशाह पर रोकेंगें या ठाणे जायेंगें। खैर ये तो ज़्यादा टैक्िनकल बात हो गयी लेिकन राज की ये धमिकयां बड़ी परेशान करने वाली हैं। आज तो ये बात कानून व्यवस्था के िलये परेशान करने वाली हैं लेिकन कल राज के िलये ये बात बड़ी परेशानी बन सकती है कोई जा कर राज को समझाये। इस मुदेद के बाद राज का कद इतना छोटा हो जायेगा िक राज भी खुद को देख कर शर्मा जायेंगें।

िदनेश काण्डपाल