Monday, March 22, 2010

चरागे सहर हूं, बुझा चाहता हूं


ये पंक्तियां भगत सिंह ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले लिखी थीं.

.........उसे फिक्र है हरदम नया तर्ज –ए-जफा क्या है.......

हमें ये शौक है देंखें सितम की इन्तहा क्या है......

कोई दम का मेहमां हूं ए एहले महफिल.....

चरागे सहर हूं, बुझा चाहता हूं.......

हवा में रहेगी मेरे खयाल की बिजली........

ये मुश्तके खाक है, फानी मिले न मिले......

सितम्बर 27, 1907 ------ मार्च 23, 1931