Saturday, August 9, 2008

कॉंवड़ियो..रास्ता छोड़ो....कॉंवड़ियो..रास्ता छोड़ो


ये दर्द कभी भी दिल में उठ सकता है.. ये नारा कभी भी आपके मुंह से गाली की तरह निकल सकता है जब रात के दो बजे बस के अन्दर आपके माथे का पसीना रुकने का नाम न ले रहा हो..घर पंहुचने की बेताबी आपके सब्र का बार बार इम्तहान ले रही हो.. आपको अपनी ही छाती से पसीने की बदबू आने लगे..सड़क पर एक-दो-तीन से लेकर दस किलोमीटर तक का जाम आपकी सांसों में यू पी की सड़कों की धूल भर दे और हद तो तब हो जायेगी जब आपकी बीबी आपको गुस्से से देख कर कहेगी ..मैने पहले ही कहा था मुझे नहीं जाना लेकिन तुमने ज़िद की अब भुगतो..बेटा कई बार ये पूछेगा .. पापा..घर कब आयेगा..अगर बेटी हुयी तो खुद ही समझ जायेगी इस जाम में पापा क्या करेंगें। मेरा भी यही हाल हुआ, लेकिन ये जाम क्यों लगा है अगर ये सुन लिया तो हालत पतली हो जायेगी..ट्रक पर चार बड़े स्पीकर कान फाड़ू संगीत के साथ भोले की कैसट बजा रहे हैं और पांच साल से लेकर पचपन साल के शिव भक्त वही डांस कर रहे हैं जो दारू पीकर शादियों में करते हैं, उन्हें लग रहा है कि शिव का अंश बन कर तांडव के लिये उन्हीं को चुना गया है..ये हाल है साहब आजकल उन रास्तों का जहां से कांवड़िये गुज़रते हैं..इनके शरीर पर सुशोभित आभूषणों का वर्णन करू तो कागज कम पड़ जाय.. हाथ में बेस बॉल का बैट..ये ज़्यादातर अमेरिका और योरोप में खेला जाता है..लेकिन इन दिनों हिन्दुस्तानी शिव भक्त इन्हैं त्रिशूल की जगह प्रयोग करते हैं..रीबॉक से लेकर नाइकी का कोई भी बरमूडा चाल को और मोहक बना देता है..कमर में चमड़े का वो कमर बंद जिसके अन्दर संसार की वो वस्तुयें मिल जायेंगीं तो आपको तीन लोक के दर्शन करा सकें. थोड़ा ऊपर बढ़िये तो मालायें सुशोभित हैं..हाथ में रंग बिरंगी झालरों से सजी कांवड़.. कंठ से कर्कश ध्वनि के साथ शिव का जयघोष..आह ये भक्ति और मेरा पसीना..इतना लम्बा जाम ..और बम भोले के ये नारे..क्या करूं..मेरा तो मन करने लगा कि गाली दूं..स्ससससससााााााा को लेकिन शिव के कुपित होने का भय ये भी नहीं करवा पाया.. इन सड़कों पर नौजवानों की ये भक्ति को इन्द्र की कोई मेनका अगर भंग कर दे तो मैं उनका बड़ा आभारी रहूंगा..पांच सा सात घंटे जाम में फंसने की मेरी हिम्मत नहीं है..किसी से कुछ कह भी नहीं सकता पता नहीं कब अमेरिकी बेस बॉल का बैट शिव का त्रिशूल बन जाय और मेरे सर से ठीक उसी तरह लहू की धारा बह निकले जिस तरह से शिव के सर से गंगा बहती है..इस परिस्थिति में मैने अपनी बीबी को देखा बच्चे को अखबार का पंखा किया और गांधी जी का नाम लेकर केवल आग्रह किया..कॉंवड़ियो..रास्ता छोड़ो
दिनेश काण्डपाल

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

लानत हे ऎसी भगती पर ,साले यह सब दिखावा नही करते तो क्या हे, ओर बाकी लोग इन्हे महान कह कर सिर पे चढाते हे, कानुनी रुप से यह सब बन्द होना चाहिये, भक्ति घर मे या फ़िर शान्ति से होती हे, इन जानवरो के तरीके से नही,
आप के लेख की एक एक बात सच हे, बहुत अच्छा लेख लिखा हे आप ने,धन्यवाद

अजय शेखर प्रकाश said...

दिनेश जी, इस तरह की आस्था को अनुशासन की जरूरत है। आस्था बुरी चीज नहीं होती। आस्था से हमें बल मिलता है, लेकिन आस्था अंधी नहीं होनी चाहिए। हालांकि आपको नहीं लगता कि इन अंधी आस्थाओं के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। अब आप साईं बाबा को मनोरंजन की चाशनी में लपेट कर लोगों को परोसेंगे तो क्या होगा? लोगों के पास विकल्प भी तो नहीं हैं। कर्म पर से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। लोगों को लगता है अब सिर्फ भगवान ही उनका बेड़ा पार कर सकते हैं। बहरहाल, आपने अपने लेख में जिन्दगी काफी करीब से देखने की कोशिश की है। वाकई दिल को छू गया। उम्मीद है आगे भी कुछ ऐसा ही अच्छा पढ़ने को मिलेगा।

अजय शेखर प्रकाश said...

दिनेश जी, इस तरह की आस्था को अनुशासन की जरूरत है। आस्था बुरी चीज नहीं होती। आस्था से हमें बल मिलता है, लेकिन आस्था अंधी नहीं होनी चाहिए। हालांकि आपको नहीं लगता कि इन अंधी आस्थाओं के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। अब आप साईं बाबा को मनोरंजन की चाशनी में लपेट कर लोगों को परोसेंगे तो क्या होगा? लोगों के पास विकल्प भी तो नहीं हैं। कर्म पर से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। लोगों को लगता है अब सिर्फ भगवान ही उनका बेड़ा पार कर सकते हैं। बहरहाल, आपने अपने लेख में जिन्दगी को काफी करीब से देखने की कोशिश की है। वाकई दिल को छू गया। उम्मीद है आगे भी कुछ ऐसा ही अच्छा पढ़ने को मिलेगा।

अजय शेखर प्रकाश said...

दिनेश जी, इस तरह की आस्था को अनुशासन की जरूरत है। आस्था बुरी चीज नहीं होती। आस्था से हमें बल मिलता है, लेकिन आस्था अंधी नहीं होनी चाहिए। हालांकि आपको नहीं लगता कि इन अंधी आस्थाओं के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। अब आप साईं बाबा को मनोरंजन की चाशनी में लपेट कर लोगों को परोसेंगे तो क्या होगा? लोगों के पास विकल्प भी तो नहीं हैं। कर्म पर से लोगों का विश्वास
उठता जा रहा है। लोगों को लगता है अब सिर्फ भगवान ही उनका बेड़ा पार कर सकते हैं। बहरहाल, आपने अपने लेख में जिन्दगी को काफी करीब से देखने की कोशिश की है। वाकई दिल को छू गया। उम्मीद है आगे भी कुछ ऐसा ही अच्छा पढ़ने को मिलेगा।