Sunday, July 6, 2008

कितना दर्द है बाबू



आपके सर में दर्द कब कब होता है,जब आप किसी से मिलते हैं तब दर्द होता है या जब किसी के बारे में सोचते हैं तब सर पकता है। अकेले बैठे हों तब दर्द होता है या आस पास कोई बैठा हो तब दर्द होता है, शान्त माहौल में दर्द होता है या
शोर शराबे में दर्द होता है इनमें से अगर कोई और कारण है तो दर्द की पृकृति भी निराली होगी, इनके अलावा एक सरदर्द की वजह और लक्षण मेरे पास भी हैं। ये एक नायाब किस्म का सर दर्द है जो इलेक्ट्रनिक मीडिया के तकरीबन हर कर्मचारी
को होता है। इस दर्द की उत्पत्ति का केन्द्र है चैनल के खामखा का केबिन। ज़ाहिर है यही केबिन पूरे चैनल का रिमोट कंट्रोल लेकर चलता है,ये दर्द पहले इस बड़े अफसर के खोपड़े में होता है ये उस की खुड़क भी हो सकती है जो आपको दर्द के रूप में नज़र
आ रही है, कई सठिया खामखा(वो जो साठ साल की उम्र के आस पास आकर अफसर बने हैं)ऐसी प्लानिंग करते हैं जो दर्द को माइग्रेन में बदल सकती है। ये उस क़िस्म के अफसर है जो टेलीविज़न चैनल चलाने निकले हैं लेकिन टेलीविज़न में बस विज़न ही किया है.टीवी देखने के अलावे इन अफसरों ने आज तक कुछ नहीं किया। खबर का मर्म इनके दिलों
में हुंकारें भरता है आक्रामक होने का नाटक भी इन्हैं जलवा फरोश बनाता है लेकिन इनकी लिखी स्क्रिप्ट पर जब पैकेज कटना होता है तो वाडियों एडिटर से लेकर चैनल एडीटर तक पांच बार मूतने जाते हैं। दर्द यहीं पैदा होता है। ये दर्द पैदा करने का आदेश भी होता है। खामखा की गर्वीली मुस्कान को साइकिल के टायर की तरह पंचर करने का सपना लिये ये प्रो़ड्यूसर
एक अदद डिसप्रिन के लिये तरस जाता है। प्रोड्यूसर को लगता है कि किसने इसको खामखा बना दिया, कुछ जानता भी है साला टीवी के बारे में। स्टोरी पूरी कट गयी तो अध्धा नहीं तो साला बीयर और व्हिस्की का कॉकटेल करना पड़ेगा। सर दर्द कम करने का ये ख्याली पुलाव भर है दरअसल गैस्टिक के मरीज़ से पूछिये थोड़ी सी गैस निकल जाने पर बदबू ही सही पर उसे
अच्छी लगात है पेट की राहत बड़ी अजीब है। न्यूज़ रूम में पसरा सन्नाटा भी सर दर्द बढ़ाता है कई कामचोर और बकलोलों से बना न्यूजरूम तो देखने लायक होता है। यहां आपको आदर्श टीवी पत्रकारिता के मापदंड़ों पर मां बहन करते कई बड़े नाम मिल जायेगें लेकिन एक ब्रेकिंग पर आगे का पैकेज क्या होगा ये सोचने में इनकी दो डिब्बियां खत्म हो जायेंगी। इनके पास
स्क्रिपट के लेकर कई अच्छे शब्द हैं लेकिन खायें अपनी मां की कसम ये बकलोल की एक बाक्य को ज़रा सुधार दें। दरअसल जिस खामखा का ज़िक्र मैने ऊपर किया वो इन बकलोलों का बाप है,वो इसी सेना के बूते बाप बना है। सर दर्द पैदा करने के अभूतपूर्व आइडियों से ये हमेशा लैस रहते हैं जो भी काम करते दिखा वो इनके सर में दर्द पैदा करने लगता है इसलिये
ये बकलोल इस बात की नौबत ही नहीं आने देते कि कोई काम कर सके। बाप से लेकर ये उनकी औलादें हर तरफ दर्द बांटती हैं। दर्द देख कर भी होता है सुनकर भी अकेले में भी और भीड़ में भी अब दर्द तो बड़ा होगा ही आखिर खामखा से चलकर आया और औलादों ने और बड़ा कर दिया..घबराने की ज़रूरत नहीं ज़्यादा दिन नहीं चलेगा, भरोसा रखिये सब ठीक होगा

दिनेश काण्डपाल

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