Sunday, April 15, 2007

जो उफन गया वो डूब गया


दिनेश काण्डपाल

जो उफन गया वो डूब गया

कई सूफी कहावतों में कहा गया है कि जो डूब गया उसने सब पा लिया। इन कहावतों के शब्दार्थ और भावार्थ हर किसी ने अपनी सुविधा के हिसाब से निकाल लिये। उत्तर प्रदेश में इस वक्त जो कार्यकर्ता बेहिसाब प्रचार में डूबे हैं वो क्या पा लेंगें ये बड़ा उलझा सवाल हो गया है। 403 सदस्यों वाली विधानसभा के लिये किसी भी पार्टी ने अपनी स्थिति इतनी मज़बूत नहीं देखी कि वो अपने नेता के नाम पर वोट मांगता या मुद्दे ही गिना देता। राहुल गांधी ने बाबरी मस्ज़िद का जिन्न बाहर निकाल कर अपने ही पार्टी के प्रधानमंत्री रह चुके नेता पर उंगली उठा ही। सबने अपने अपन् हिसाब से इस मुद्दे का रस लिया जिसकी चौकड़ी जहां जमी वहीं राहुल के बयान पर अपना बयान ठोंक दिया। हल्का उफान ज़रूर आया पर डुबा नहीं सका कांग्रेस को कुछ दिलाया या नहीं ग्यारह मई को पता चलेगा। हाईटैक प्रचार की आदी बीजेपी राम ध्यान में मग्न होने की सोच ही रही थी कि लालजी और केसरी ने सोचा कि सीडी से भी 403 योजन का समुद्र लांघां जा सकता है। ये निर्देशन में इतना डूबे कि ऊफान का अहसास तक नहीं रहा और अब हालत ये है कि बी जे पी के एयर कंडिशंड नेता रोज़ चुनाव आयोग के चक्कर काट रहे हैं काले कोट में। वो भी दिल्ली में इतनी गर्मी है। बीजेपी के इस ऊफान में कौन कौन डूबेगा इन सवालों ने कई भावी प्रधानमंत्रियों की धड़कनों को बढ़ा दिया है। अथाह जन राशि में हिचकोले खा रहे समाजवादी पार्टी के जहाज को कई ऊफान चुनाव से पहले ही देखने को मिल गये। निठारी की सुनामी ने सपा को अन्दर तकर चोट पंहुंचा दी, शिवपाल जी के बयान बची हुयी लहरों में बह गये। कम जुर्म के दावे रेत को घरौंदों से पनाह मांगते रहे, और अब सद्दाम हुसैन दजला फरात लांघ कर गंगा जमुना के मैदान में अपनी फांसी का चित्रण कर रहे हैं। मजबूरी भी कैसी कि कहीं कुछ भी नहीं। बहन माया की पैनी नज़र अस्त्र और शस्त्र के बीच खड़े ब्राह्मणों पर टिक गयी। शान्ति के साथ माया बटोरी और ऊफान दिया प्रचार को। इतने ऊफान हैं कि वोटर थपेड़ों में फंस गया है कि वो किसमें डूबे और किसे पाय। बाबा भुल्ला !


दिनेश काण्डपाल

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