Monday, April 16, 2007

पूत के पांव राजनीति की चक्की में


दिनेश काण्डपाल
ज़ख्म कुरेदने पर ज़्यादा दर्द देता है और वो ज़ख्म अगर कोई नेता कुरेदे तो उस ज़ख्म में से बास आने लगती है। हमारे देश का इतिहास हो या पूरे विश्व का , कुछ बातें एसी होती हैं जिन पर धूल जमी हो तो झाड़नी नहीं चाहिये। पहले राहुल गांधी ने मीडिया की सुर्खियां बटोरी बाबरी मस्ज़िद को लेकर और अब  के विभाजन का श्रेय गांधी परिवार को देकर राहुल ने कौन सा तीर चलाया ये उलझा हुआ सवाल है। उलझा इस लिये है कि भारत का इतिहास अगर राहुल ने दस जनपथ या लुटियंस ज़ोन की किसी लाईब्रेरी में पढ़ा है तो उनका अविवेकी दावा ठीक है। अगर राहुल ने ये इतिहास किसी ठीक ठाक किताब से पढ़ा है तो वो इसे समझ नहीं पाये हैं। यहां ये उल्लेख करना ज़्यादा ज़रूरी नहीं कि 1971 में क्या हुआ क्या था, ज़रूरी ये है कि आज क्या हो रहा है। आज हो ये रहा है कि राहुल गांधी अपने रोड शो के दौरान कुछ एसे शो कर दे रहे हैं कि अचानक कैमरों के फ्लैश उन पर चमकने लगते हैं। क्या पूरे रोड शो में राहुल जो भी बोल रहे हैं वो सोच समझ कर वोल रहे हैं? अगर वो सोच समझ कर वोल रहे हैं तो ये उनके लिये रास्ता कठिन कर सकता है। एक तरफ तो हमारे देश के प्रधानमंत्री उनको मसीहा बताते पिर रहे हैं दूसरी तरफ ये मसीहा एसे ज़ख्म कुरेद रहे हैं जिन पर बात करते वक्त खांटी नेता भी सतर्क रहते हैं। राहुल के पाकिस्तान विभाजन पर दिये बयान से कांग्रेस का फायदा हो तो हो, राहुल राहुल को कैमरों की चमक मिले तो मिले, लेकिन बाबा राहुल कई वर्षों के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की बर्फ अगर पिघल रही है तो क्यूं उस पर नमक डाल रहे हो। इस बयान को कराची में बैठा नौजवान कैसै ले रहा होगा? क्या किसी कूटनीतिज्ञ ने समझाया नहीं कि कांग्रेस के इस मसीहा को? बाबा राहुल यू पी में भले ही एक आध सीट बढ़ा दें लेकिन सत्यानाश कर सकते हैं पिछले दस सालों कि उस मेहनत का जिसने भारत और पाकिस्तान के रिश्तो को बेहतर बनाने में की है। अपने विपक्षी दलों पर मुद्दो के आभाव का आरोप लगाने वाले राहुल क्या खुद मुद्दों के आभाव से नहीं जूझ रहे हैं? इस देश के गौरव साझे हैं। जिस भी मोर्चे पर हम जीते हैं या हारे हैं वो साझे हैं ये किसी के परिवार की विरासत कैसै हो सकते हैं? क्या राहुल ये मान बैठे हैं कि उनका परिवार हिन्दुस्तान का पर्याय बन गया है या वो ये समझ रहे हैं कि गांधी परिवार ही रहनुमा हो सकता है बांकी सब रहगुज़र। अपने नेतृत्व की चकाचौंध से चुधियाये कांग्रेसी क्या ये हिम्मत पाते हैं कि वो इन बचकाने बयानों के लिये राहुल को समझा भर सकें ? उत्तर प्रदेश का रोड शो राहुल के लिये टर्निंग प्वाईटं बनता जा रहा है, अभी तक जिस विचारधारा का राहुल ने प्रदर्शन किया है वो तो कोई बड़ी उम्मीद नहीं जगा रहा है। हां प्रियंका ने राहुल के बयान पर जो सधी हुयी प्रतिक्रिया ही है वो ज्यादा सधी हुयी है। प्रियंका बेहतर हो सकती हैं। राहुल बाबा को चुनाव निपट जाने के बाद राजनीति और इतिहास दोनों के ट्यूशन की ज़रूरत है। तब तक कुछ और न ही कुरेदे जांय तो बेहतर है। अपने देश से कौन प्यार नहीं करता।

1 comment:

dil se nikli awaz said...

nice and fantastic. apne jin chijo ko jan sadharan tak pahuchane ka prayas kiya hai wo nichit hi vyawaharik hai. blog ki stating bahut sandar hai. parivajrak ji ki kavita ne mujhe apne hare bhare pahado ki yaad dilyee hai.
overall blog bahut sandar hai.
carry on.