ये पंक्तियां भगत सिंह ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले लिखी थीं.
.........उसे फिक्र है हरदम नया तर्ज –ए-जफा क्या है.......
हमें ये शौक है देंखें सितम की इन्तहा क्या है......
कोई दम का मेहमां हूं ए एहले महफिल.....
चरागे सहर हूं, बुझा चाहता हूं.......
हवा में रहेगी मेरे खयाल की बिजली........
ये मुश्तके खाक है, फानी मिले न मिले......
सितम्बर 27, 1907 ------ मार्च 23, 1931
3 comments:
प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया
मुझपे वतन का कर्ज़ था, मैनें चुका दिया
आज इसको ढूँढ रहा था। सो आपके जहाँ मिल गया। दिल खुशी से खिल गया।
आओ झुक के सलाम करें उनको जिनके हिस्से मे ये मुकाम आता है, खुशनसीब होता वो खुन जो देश के काम आता है। "जय हिन्द जय भारत" … स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं।
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