Thursday, December 4, 2008

लेटर भेजो, तब मिलेंगें कमांडो


चार दिसम्बर को दैनिक भास्कर ने खबर छापी है आप भी पढ़िये...........................

अफसरों के दांवपेच और लाल फीताशाही ने ताज और ओबेराय होटल में आतंकियों को खूनखराबे के लिए पूरा मौका दिया। हालात से निपटने के लिए मदद मांगी जाती रही लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। हमले वाली रात की बिखरी छोटी-छोटी घटनाएं जोड़ने से जो तस्वीर उभरती है वो अराजकता, भ्रम और घनघोर लापरवाही की है।
उस रात जैसे कोई सरकार नहीं थी, कोई सिस्टम नहीं था, कोई जवाबदेही नहीं थी। केंद्र सरकार को मिली रिपोर्टो से पता चलता है कि हमले की गंभीरता को समझते हुए भी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में बार-बार अफसरी बाधाएं खड़ी की गईं।
पहले मदद की चिट्ठी भिजवाओ:हमले की रात नौसेना की पश्चिमी कमान ने बिना लिखित आग्रह के कमांडो भेजने से दो टूक इनकार कर दिया। पुलिस कमिश्नर ने चिट्ठी भेजी तो यह कहकर खारिज कर दी गई कि पत्र मुख्य सचिव का होना चाहिए। तब मुख्य सचिव को लेटर फैक्स करना पड़ा। हालांकि सरकारी नियमों के मुताबिक जरूरत पड़ने पर एक जिलाधिकारी तक सेनाओं से मदद मांग सकता है। इस दौरान राज्य के मुख्य सचिव और अन्य वरिष्ठ अफसर मदद के लिए दिल्ली बराबर फोन करते रहे।
दो घंटे बाद पहुंचे कमांडो:
फरियाद के करीब दो घंटे बाद मौके पर पहुंचे नौसेना की कमांडो टीम ने होटलों के अंदर जाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि वे ऐसी कार्रवाइयों के लिए प्रशिक्षित ही नहीं हैं। वे बाहर से ही गोलियां चलाते रहे, अंदर आतंकी घूम-घूमकर बंधकों की हत्याए करते रहे।
दिल्ली में भी था बुरा हाल
दिल्ली में भी एनएसजी के कमांडो की टीम घंटों एयरपोर्ट पर इंतजार करती रही। जरूरी रूसी आईएल-76 विमान न तो पालम एयरफोर्स स्टेशन पर था न ही ंिहंडन पर। तब इसे चंडीगढ़ से मंगवाया गया। एनएसजी के मुख्यालय मानेसर (हरियाणा) से भी खस्ताहाल बसों से कमांडो को रवाना किया गया। टीम देर रात दो बजे मुंबई पहुंची क्योंकि विमान सुस्त चाल था और तीन घंटे लग गए।
बसों से रवाना हुई कमांडो टीम
मुंबई हवाई अड्डे से टीम को बिजी सड़कों से बिना पायलट कारों के आम बसों से मौके के लिए रवाना कर दिया गया। जब तक उन्होंने होटलों के बाहर पोजिशन ली, सुबह हो आई और आतंकी काफी खून बहा चुके थे। एक सरकारी अफसर का कहना है कि कमांडो कार्रवाई में करीब छह घंटे की देरी हुई और इससे मौतों की तादाद बढ़ी।
आपदा प्रबंधन का पता नहीं था
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अफसर का कहना है कि कोई ‘सिंगल प्वाइंट कमांड’ न होने से समय से मदद नहीं मिल सकी। कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आपदा प्रबंधन समिति की बैठक भी आधी रात के बाद ही हो सकी। क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन रात सवा 11 बजे तक एक डिनर पार्टी में थे और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब उन्हें और बाकी सदस्यों को तलब किया तब वे रेस कोर्स रोड पहुंचे।
इस अफसर का कहना है कि समिति के सदस्य घरों पर टीवी देखकर और मोबाइल पर बात करके घटनाक्रम पर नजर रख रहे थे।

1 comment:

महुवा said...

BASTARDS.....!!!!!!!
इससे ज्यादा गालियां लिख नहीं सकती सरकारी नुमाइन्दों और नेताओं को.....और इससे ज्यादा गंदे तरीके से अपनी भावनाएं व्यक्त कर नहीं सकती...शुक्रिया आपका.... जो आपके ज़रिए इतनी सच्चाई का पता चला...अपने ब्लॉग पर भी ज़रुर लिखूंगी...ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता चल सके सच्चाई का और ज्यादा से ज्यादा लोग अवेयर हों अपने इस सरकारी सिस्टम सें...वैसे तो हम सभी जानते है,अपने सरकारी तंत्र के बारे में ...फिर भी अब तक इस गफलत में थे कि उस भयानक त्रासदी की तीन रातों में शायद पूरा भारत एक हो गया था...इतनी उम्मीद नहीं थी कि तब भी ये सब चल रहा था.....