Wednesday, September 3, 2008
दूसरी लाईन का संकट
दिनेश काण्डपाल
मीडिया में दूसरी लाईन का संकट खड़ा हो गया है...खास तौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया में साल भर मे एक दो नये न्यूज चैनल आ जाते हैं...लेकिन सुपरहिट कोई नही हो पा रहा है...2005 के शुरू से लेकर आज जून 2008 तक जितने भी नेशनल न्यूज चैनल आये हैं उनकी कोई खास दमदार उपस्थिति दर्ज नही हो पाई है...नये न्यूज चैनल का तामझाम भी कोई कम बड़ा नही है...लोग भी जाने पहचाने है...लेकिन फिर भी नये चैनल सुपरहिट नही हो पा रहे हैं...चैनल 7सेवन नये फ्लेवर के साथ आया, उसकी प्रोग्रामिंग भी बढ़िया थी, लेकिन उतना दम नही दिखा जितना जागरण अखबार का है.....तब से आज तक तीन चार और नेशनल न्यूज चैनल आ चुके हैं...सब कुछ होने के बावजूद भी चैनल हिट नही है...वहीं एन सी आर रेंज में कुछ चैनल कमाल जरूर दिखा गये...एस वन ने 2005 में ही 46 वे हफ्ते में कईं नेशनल चैनल्स को पीछे छोड़ा...दिल्ली आजतक और टोटल लगातार बड़े चैनल्स की टीआरपी में सेंध लगाते हैं...दरअसल मीडिया में दूसरी लाईन नही है...एक सुपरहिट टीम में जितने सदस्य होने चाहिये...उतने जुट नही रहे हैं...कार्यकुशल व्यक्तियों का बड़ा अभाव पैदा हो गया है... बड़े नामों का सहारा लेकर नये लोग तो जरूर जुट रहे हैं, लेकिन उस टीम में वो बात नही आ पा रही है जो tv news चैनल्स के लिये जरूरी है...ऐसे न्यूज चैनल जो नवीनतम तकनीक के साथ मैदान में आ रहे हैं, उनकी तकनीक भी धरी की धरी रह जा रही है...उस तकनीक को उतनी ही कुशलता से संचालित करने के लिये जो दिमाग चाहिये वह नही मिल पा रहा है...बड़े नाम लगता है आराम की मुद्रा में भी है... किसी जमाने में में सुपरहिट चैनल का हिस्सा रहे बड़े नाम नयी जगह पर आक्रामक मुद्रा अख्तियार नही कर पा रहे हैं...एक अजब सी आरामतलबी का उनका मूड कई बार पूरे न्यूज रूम को सुस्त कर देता है...एक स्टोरी फाईल करने के अंदाज बदलने के साथ साथ उनकी कापी, विजुअल्स, पैकेजिंग और प्रस्तुतिकरण ये पूरा एक ऐसा विधान है जिसमें नयेपन की जरूरत हर रोज है...और ये नयापन कार्यकुशल व्यक्ति ही दे सकता है...कार्यकुशल व्यक्तियों का अभाव है...नई पीढ़ी जो टेलीविजन देखते देखते पली बढ़ी है उसके पास ऊर्जा है, नये विचार भी है, लेकिन वो परवान नही चढ़ पा रहे है...जबकि नौजवान बाकी सारी इंडस्ट्रीज में जलवा बिखेर रहे हैं...पिछले दिनों दिलीप मंडलजी ने अपने एक लेख में लिखा था कि इलेक्ट्रिक मीडिया ने दस साल में कुछ हासिल नही किया, जबकि अखबार, सिनेमा और इंटरनेट ने नये साहसिक विचारों के साथ धूम मचा दी है...यहां भी नौजवानों ने ही प्रयोग किये हैं..नई पीढ़ी केवल tv news में ही दूसरी लाईन नही बना पा रही है...या इसमे नई और पुरानी उम्र के लोगों का आहम तो आड़े नही आ रहा ? आक्रामक तेवर दिखाकर कुंवारे धोनी ने विश्वकप जीत लिया, लेकिन अब सारे लोग कूल कप्तान कहते हैं...ये उदाहरण भर है...नई पीढ़ी को इलेक्ट्रानिक मीडिया में खुलकर खेलने दे तो शायद दूसरी लाईन का संकट खत्म हो जाये...
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7 comments:
media ka je roop dikhane ke liya danyawaad
मै आपकी बात से सहमत हूं वैसे भी बाज़ार के एक बड़े वर्ग की नज़र भी युवाओं पर ही है ... और मीडिया जब से इंडस्ट्री बना है उसी बाज़ार का हिस्सा बनता जा रहा है ... ऐसे में हम युवा ये अच्छी तरह जानते हैं कि हमें क्या चाहिये और और वो कैसे हासिल होगा..
सही कहा महाराज...खुलकर खेलने की इजाज़त मिलनी चाहिए तभी कमाल होगा। पुराने अनुभव को नई ऊर्जा के साथ तालमेल करना होगा तभी कमाल होगा। वरना तो ये टी वी न्यूज चैनल वाले कपोल कल्पित घटनाओं के सहारे टीआरपी के खेल में ही उलझे रहेंगे और न्यूज को कचरे के डब्बे में डाल देंगे।
दिनेश जी, नयी पीढ़ी को टीवी में खुलकर खेलने की इजाजत देना ठीक नहीं होगा, क्योंकि उनके बहकने का ख़तरा ज्यादा है। आप तो जानते ही हैं कि नयी पीढ़ी में वो गहराई नहीं दिखती। पढ़ने-लिखने की परंपरा खत्म होते जा रही है। अब जो पीढ़ी आ रही है, उसका एक ही मकसद होता है टीवी पर दिखना। इनके पास सिर्फ सतही जानकारी रहती है। इन्हें आप खुली छूट देंगे तो अधकचरे और अनगढ़ी चीजें भी दर्शकों के सामने परोसी जाने लगेगी। ऐसे में फिर कई ख़तरे सामने आएंगे। जरूरत है अनुभवी और युवाओं के सही तालमेल की। हालांकि आपका ये आलेख वाकई बहुत अच्छा है और आपने मीडिया इंडस्ट्री की सही ख़बर ली है। -अजय शेखर प्रकाश, वॉयस ऑफ इंडिया
दिनेश जी, नयी पीढ़ी को टीवी में खुलकर खेलने की इजाजत देना ठीक नहीं होगा, क्योंकि उनके बहकने का ख़तरा ज्यादा है। आप तो जानते ही हैं कि नयी पीढ़ी में वो गहराई नहीं दिखती। पढ़ने-लिखने की परंपरा खत्म होते जा रही है। अब जो पीढ़ी आ रही है, उसका एक ही मकसद होता है टीवी पर दिखना। इनके पास सिर्फ सतही जानकारी रहती है। इन्हें आप खुली छूट देंगे तो अधकचरे और अनगढ़ी चीजें भी दर्शकों के सामने परोसी जाने लगेगी। ऐसे में फिर कई ख़तरे सामने आएंगे। जरूरत है अनुभवी और युवाओं के सही तालमेल की। हालांकि आपका ये आलेख वाकई बहुत अच्छा है और आपने मीडिया इंडस्ट्री की सही ख़बर ली है। -अजय शेखर प्रकाश, वॉयस ऑफ इंडिया
केवल न्यूज ना चाहिये, बेहतर हो संवाद.
धर्म केन्द्र में हो तभी, मंगलकारी वाद.
मंगलकारी वाद ,उलझते राजनीति में
होगया बंटाढार,वोट की राजनीति में
कह साधक कवि,यह निरपेक्षता नहीं चाहिये.
बेहतर हो संवाद,न्यूज सूखी ना चाहिये.
मो-९९०३० ९४५०८
बिल्कुल दुरूस्त फरमाया आपने
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