Wednesday, April 22, 2009
जूतामार लोग कायर हैं............
दिनेश काण्डपाल
बुश पर जूता चला तो फिर सीधा चिदम्बरम उसकी चपेट में आये। फिर नवीन जिन्दल और अब आडवाणी। जूता चलाने वालों सें मैं पूछना चाहता हूं कि क्या उनकी इतनी हिम्मत है कि वो मुख्तार अंसारी, शाहबुद्दीन, पप्पू यादव या डीपी यादव पर जूता चला सकते हैं। हमारे देश पर अभी तक जिस भी नेता पर जूता चला है उस पर कोई भी हत्या या लूट का मुकदमा नहीं है। उन पर बूथ लूटने का आरोप भी नहीं है और आप जब उनको हिन्दुस्तान का नेता कहते हैं तो आपको शर्म भी नहीं आती। जूता चलाने वाले ये कायर उन नेताओं पर जूता चलाने की हिम्मत भी नहीं कर सकते जो संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे मांगते हैं, उन पर भी जूता नहीं चला सकते जो अपनी बीबी के टिकट पर पराई नार को विदेश ले जाकर कबूतरबाज़ी करते हैं। चौरासी दंगें के दोषियों पर भी जूता नहीं चला सकते। अपना गुस्सा निकालने के लिये सस्ता रास्ता चुनने वाले इन कायरों को हीरो मत बनाईये। ये बेहद कमज़ोर लोग हैं। इनका कोई दीन ईमान नहीं हैं।
जूता चलाने से पहले ये कायर एक बार ये तो सोच लेते कि किस पर जूता चला रहे हैं। जरनैल सिंह हों या पावस अग्रवाल सब के सब कमज़ोर दिल और दिमाग के इंसान हैं। आडवाणी, चिदंबरम या नवीन जिन्दल कौन हैं, क्या ये जानते हैं ? मानता हूं एक लाख गुनाह किये होंगे इन तीनों नेतओं ने लेकिन क्या इनकी सज़ा इन तुच्छ लोगों का जूता है। 50 साल जिस शख्स ने इस हिन्दुस्तान की राजनीति को दिये उन आडवाणी की तरफ पावस अग्रवाल ने चप्पल उछाल दी। तिरंगे झंडे के लिये जिसने अपने जीवन के आधे दिनों तक लड़ाइ लड़ी उसके ऊपर एक शराबी ने जूता उछाल दिया। जो शख्स हिन्दुसातन में आर्थिक सुधारों को लाने वाली कोर दीम का हिस्सा रहा है, कई बार वित्त मंत्री और हमारे देश का गृह मंत्री है उस पर जूता उछालने के बाद जरनैल सिंह माफी मांगता है.
गुस्सा बिलकुल जायज़ है। इस व्यवस्था से भी और इस राजनीतिक दशा से भी। ये भी सच है कि पिछले साठ सालों में हर पार्टी ने इस देश को कई तरह से ठगा है, लेकिन इसके लिये जिस पर जूता चलना चाहिये क्या ये वही लोग हैं। क्या जूते का निशाना सही लोगों पर है। क्या आ़डवाणी, चिदंबरम और नवीन जिन्दल इस कुव्यवस्थाओं के सीधे दोषी हैं। चौरासी के दंगो पर क्या चिदम्बरम पर जूता पड़ना चाहिये? हरियाणा की खराब व्यवस्था के लिये क्या नवीन जिन्दल ज़िम्मेदार हैं ? एमपी में आडवाणी पर जूता चलाने वाले पावस आग्रवाल ने आरोप लगाया है कि आडवाणी नकली लौह पुरुष हैं, क्या इस बात पर आडवाणी को चप्पल मार देनी चाहिये ?
जूता मारना बिल्कुल ठीक है। बिल्कुल जूता मारना चाहिये। लेकिन निशाना तो ठीक कीजिये। कई गंदे सफेदपोश हैं जो फूलों के हार पहन रहे हैं। चिदम्बरम ने जरनैल को माफ कर दिया। आडवाणी और नीवन जिन्दल ने कुछ नहीं कहा सोचिये ये जूता शाहबुद्दीन, पप्पू यादव या डीपी यादव पर चला होता तो क्या वो माफ कर देते। जूता मारने का साहस करने वाले क्या इतने अंधे हो गये हैं कि उन्हैं इन उन्मादी साहस को दिखाने का दूसरा रास्ता नज़र नहीं आ रहा। सम्हाल कर रखिये अपने जूते को और सही निशाना तलाशिये फिर चलाईये......बड़ा कीमती है जूते का निशाना............
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
आपका सवाल बिलकुल जायज है. पर एक बात और है, जिनके नाम आपने लिए हैं वे भी इनके ही द्वारा पालित हैं, यह क्यों भूलते हैं.
असल मे जिन पर जूते चल रहे हैं...उन्हें चलाने वाले किसी ना किसी कारण से जरूर पीडित रहे होगें इनसे।
भले ही वे प्रत्यक्ष रूप से ना सःई परोक्ष रूप मे इस कारण के जिम्मेवार रहे हैं।
अश्लील छवि लगाना कहां तक उचित है
bahut achha likha hai aage bhi isi prakar likhte raho .bahut achha laga padhkar .
Post a Comment