9 अप्रेल 2017 की दोपहर ढलनी शुरू हुई ही थी कि 500 लोगों की भीड़ ने पोलिंग पार्टी को घेर लिया। श्रीनगर के बीरवाह का ये वो इलाका था जहां चुनाव के दौरान आर्मी तैनात थी। पोलिंग पार्टी घिर चुकी थी, पत्थरबाज़ों ने अब पेट्रोल बम फेंकने भी शुरू कर दिये। चुनाव आयोग के कर्मचारियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मेजर तिलुल गोगोई पर थी। मेजर तिलुल को अंदाज़ा हो चुका था कि पत्थरबाज़ पूरी कोशिश में थे कि हालात बिगड़ जाएं, गोलीबारी हो और चुनाव की प्रक्रिया बदनाम हो जाय।
मेजर तिलुल ने अपनी फोर्स देखी, उनके पास पैलेट गन नहीं थी, सभी जवानों के पास एके-47 रायफल्स थीं। मेजर गोगोई ने आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन दूसरी तरफ से पत्थर और पेट्रोल बम आ रहे थे। पत्थरबाज़ों ने छोटे बच्चों को आगे कर रखा था जिसकी वजह से सेना के जवान पत्थरों से भी जवाब नहीं दे पा रहे थे। अब सेना के सामने एक ही रास्ता बचा था कि गोली चलाई जाय, भीड़ को तितर बितर किया जाय और किसी तरह से पोलिंग पार्टी को बचाकर निकाला जाय।
सैनिकों को फायरिंग का आदेश देने से पहले मेजर तिलुल बारीकी से आसपास देखते रहे, उनकी ट्रेनिंग में ही ये महान आदर्श स्थापित किया गया था दुश्मन को मारना आखिरी रास्ता है... पहला नहीं। एक बड़ी साज़िश के तहत काम कर रहे पत्थरबाज़ों पर अगर गोली चलती तो पहले उन बच्चों को लगती तो सबसे आगे थे। पूरी बटालियन ये जानती थी कि वो किसी भी सूरत में बच्चों पर गोली नहीं चलानी है। हालात बेकाबू होते जा रहे थे। अगर गोली चलती तो श्रीनगर का वो इलाका खून से लथपथ हो जाता।
मेजर को एकाएक कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में कृष्ण का वो वाक्य याद आया जिसमें कहा गया था कि मृत्यु अगर सभ्यता को दूषित होने से बचाती हो उसे हो जाना चाहिए। फौरन बटालियन को हुक्म हुआ पत्थरबाज़ों को खदेड़ो और एक को पकड़ लाओ। फारुख डार अपने दूसरे साथियों के साथ तेज़ी से भाग नहीं सका, उसे पकड़ लिया गया। फारुख डार को जीप के आगे बांधा गया। ईदगाह कहानी में प्रेमचंद्र ने लिखा है कि कायरों में नीती का साहस और न्याय का बल नहीं होता। यही हुआ फारुख डार को जीप से बंधा देखकर पत्थरबाज़ों की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई। उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि जवाब इस अंदाज़ में भी मिल सकता है।
मेजर तिलुल गोगोई की रणनीति काम आई, एक भी पत्थर नहीं चला तो ज़ाहिर है गोली भी नहीं चलनी थी। सारे पत्थरबाज़ पीछे हट गये। पोलिंग पार्टी को सुरक्षित जगह पर पंहुचाया गया और खिसियासे पत्थरबाज़ अपने घरों को लौट गये। मेजर तिलुल गोगोई ने सैकड़ों लोगों की जान बचा ली।
ये मौका था सेना और सरकार के लिये उन लोगों का सम्मान करने का जो देश के लिये काम करते हैं। सरकार ने कह भी दिया देश को कोसने वाले तो अखबारों में छाये ही रहते हैं, ये तो एक देशभक्त का सम्मान है।
दिनेश काण्डपाल,
सीनियर प्रोड्यूसर, इंडिया टीवी