गुरदास मान का गाया एक प्रसिद्ध गीत है....लाई बेकदरां नाल यारी..टुट गई तड़क कर के। 5 दिसंबर की रात दस बजे दुनिया की नामी कंपनी की टैक्सी ने लड़की को कार में बिठाया, कार में बिठाने के दस मिनट के बाद ही उसके साथ रेप किया, उसके घर के पास उतारा और रफूचक्कर हो गया। लड़की ने शिकायत की पुलिस हरकत में आई और जब आरोपी की पड़ताल हुई तो पुलिस के होश उड़ गये।
आरोपी दिल्ली ही नहीं दुनिया की नामी कंपनी में ड्राइवर था, उसका कोई पुलिस वैरिफिकेशन नहीं करवाया। आरोपी शिव कुमार यादव पर
साल 2011 में महरौली थाने में केस दर्ज हो चुका था, दिल्ली पुलिस के पास उसका क्रिमिनल रिकॉर्ड था बावजूद इसके उबर कंपनी ने उसका कोई वैरिफिकेशन नहीं करवाया, यही लापरवाही थी कि उसे नौकरी मिली, हद तो तब हो गई जब ये पता चला कि इसी साल मई में दिल्ली के एडिशनल डिप्टी कमिशनर ने उसको एक चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया जिसमें ये कहा गया कि शिव कुमार यादव के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस दर्ज नहीं है। घोर लापरवाही की दो मिसालें।
ये लापरवाही उस दिल्ली एनसीआर में हुई है जहां ठीक दो साल पहले रेप की एक वारदात ने पूरी दुनिया को दहला दिया। दुनिया भर के नियम कायदे पहले बनाये गये फिर लागू कर दिये गये, लेकिन सुरक्षा का आलम फिर इस पांच दिसंबर को सामने आ गया। थोड़ा गहराई में जायें तो पता चलेगा कि नये नियम कायदे बन तो गये लोकिन वो बेअसर हैं, उनसे कोई नहीं डरता और जो डरता है वो ये बात भली भांति जानता है कि इन नियम कायदों को तोड़ा कैसे जाता है।
दिल्ली पुलिस के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर से एक सर्टिफिकेट जारी होना जो खास तौर पर ये तस्दीक करता हो कि शिव कुमार का कोई आपाराधिक रिकॉर्ड नहीं है कई सवाल खड़े कर रहा है। दिल्ली पुलिस के इस तरह के सर्टिफिकेट किस आधार पर जारी करती है? इस सर्टिफिकेट को जारी करने से पहले क्या पूरी जांच की जाती है या फिर उस दफ्तर में भी सर्टिफिकेट बनाने वाले दलालों ने अपना जाल बिछा रखा है जो रुपये लेकर चरित्र प्रमाण पत्र दिलवा देता है? सवाल गंभीर है अगर सर्टिफिकेट सही तो दिल्ली पुलिस की बड़ी जिम्मेदारी बनती है क्योंकि अगर उबर कंपनी आरोपी शिव कुमार से सर्टिफिकेट मांगती भी तो एडिशन डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर से जारी सर्टिफिकेट कंपनी को प्रारंभिक तौर पर संतुष्ट करने के लिये काफी है।
हालांकि इससे कंपनी की जिम्मेदारी कहीं भी कम नहीं होती। जिस गाड़ी में वारदात हुई वो आरोपी के नाम पर रजिस्टर्ड है, दिल्ली में जिस पते पर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन है उसका भी पता नहीं। दुनिया की नामी कंपनी की गाड़ी में जीपीएस नहीं है जो हैरान करने वाली बात है। कंपनी की लापरवाही का आलम ये है कि ड्राइवर का कोई वैरिफिकेशन तक नहीं हुआ।
लापरवाही की ये दो मिसालें तब आई हैं जब दिल्ली दुनिया के सबसे वीभत्स रेप कांड की गवाह बन चुकी है, तब भी सबसे ज्यादा बदनामी उसी दिल्ली पुलिस की हुई जिकसे अफसर ने आज ये सर्टिफिकेट जारी किया, और दूसरी तरफ बड़ा आरोप फिर एक ट्रांसपोर्ट कंपनी और उसके ड्राइवर पर आया। दोनों ही कांडों में गाड़ी और गाड़ी का स्टाफ।
दिल्ली पुलिस ने उस वक्त ट्रांसपोर्टर्स को कसमें दिलवाईं और व्यापारियों ने कसमें खाईं..लेकिन सुरक्षा हवा हवाई हो गई। किसी ने कदर नहीं की न नियमों की न कसमों की..शायद इसी लिये गुरदास मान का गीत ठीक ही है कि लाई बेकदरां नाल यारी, टुट गई तड़क करके......
आरोपी दिल्ली ही नहीं दुनिया की नामी कंपनी में ड्राइवर था, उसका कोई पुलिस वैरिफिकेशन नहीं करवाया। आरोपी शिव कुमार यादव पर
साल 2011 में महरौली थाने में केस दर्ज हो चुका था, दिल्ली पुलिस के पास उसका क्रिमिनल रिकॉर्ड था बावजूद इसके उबर कंपनी ने उसका कोई वैरिफिकेशन नहीं करवाया, यही लापरवाही थी कि उसे नौकरी मिली, हद तो तब हो गई जब ये पता चला कि इसी साल मई में दिल्ली के एडिशनल डिप्टी कमिशनर ने उसको एक चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया जिसमें ये कहा गया कि शिव कुमार यादव के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस दर्ज नहीं है। घोर लापरवाही की दो मिसालें।
ये लापरवाही उस दिल्ली एनसीआर में हुई है जहां ठीक दो साल पहले रेप की एक वारदात ने पूरी दुनिया को दहला दिया। दुनिया भर के नियम कायदे पहले बनाये गये फिर लागू कर दिये गये, लेकिन सुरक्षा का आलम फिर इस पांच दिसंबर को सामने आ गया। थोड़ा गहराई में जायें तो पता चलेगा कि नये नियम कायदे बन तो गये लोकिन वो बेअसर हैं, उनसे कोई नहीं डरता और जो डरता है वो ये बात भली भांति जानता है कि इन नियम कायदों को तोड़ा कैसे जाता है।
दिल्ली पुलिस के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर से एक सर्टिफिकेट जारी होना जो खास तौर पर ये तस्दीक करता हो कि शिव कुमार का कोई आपाराधिक रिकॉर्ड नहीं है कई सवाल खड़े कर रहा है। दिल्ली पुलिस के इस तरह के सर्टिफिकेट किस आधार पर जारी करती है? इस सर्टिफिकेट को जारी करने से पहले क्या पूरी जांच की जाती है या फिर उस दफ्तर में भी सर्टिफिकेट बनाने वाले दलालों ने अपना जाल बिछा रखा है जो रुपये लेकर चरित्र प्रमाण पत्र दिलवा देता है? सवाल गंभीर है अगर सर्टिफिकेट सही तो दिल्ली पुलिस की बड़ी जिम्मेदारी बनती है क्योंकि अगर उबर कंपनी आरोपी शिव कुमार से सर्टिफिकेट मांगती भी तो एडिशन डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर से जारी सर्टिफिकेट कंपनी को प्रारंभिक तौर पर संतुष्ट करने के लिये काफी है।
हालांकि इससे कंपनी की जिम्मेदारी कहीं भी कम नहीं होती। जिस गाड़ी में वारदात हुई वो आरोपी के नाम पर रजिस्टर्ड है, दिल्ली में जिस पते पर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन है उसका भी पता नहीं। दुनिया की नामी कंपनी की गाड़ी में जीपीएस नहीं है जो हैरान करने वाली बात है। कंपनी की लापरवाही का आलम ये है कि ड्राइवर का कोई वैरिफिकेशन तक नहीं हुआ।
लापरवाही की ये दो मिसालें तब आई हैं जब दिल्ली दुनिया के सबसे वीभत्स रेप कांड की गवाह बन चुकी है, तब भी सबसे ज्यादा बदनामी उसी दिल्ली पुलिस की हुई जिकसे अफसर ने आज ये सर्टिफिकेट जारी किया, और दूसरी तरफ बड़ा आरोप फिर एक ट्रांसपोर्ट कंपनी और उसके ड्राइवर पर आया। दोनों ही कांडों में गाड़ी और गाड़ी का स्टाफ।
दिल्ली पुलिस ने उस वक्त ट्रांसपोर्टर्स को कसमें दिलवाईं और व्यापारियों ने कसमें खाईं..लेकिन सुरक्षा हवा हवाई हो गई। किसी ने कदर नहीं की न नियमों की न कसमों की..शायद इसी लिये गुरदास मान का गीत ठीक ही है कि लाई बेकदरां नाल यारी, टुट गई तड़क करके......