ये पंक्तियां भगत सिंह ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले लिखी थीं.
.........उसे फिक्र है हरदम नया तर्ज –ए-जफा क्या है.......
हमें ये शौक है देंखें सितम की इन्तहा क्या है......
कोई दम का मेहमां हूं ए एहले महफिल.....
चरागे सहर हूं, बुझा चाहता हूं.......
हवा में रहेगी मेरे खयाल की बिजली........
ये मुश्तके खाक है, फानी मिले न मिले......
सितम्बर 27, 1907 ------ मार्च 23, 1931