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दिनेश काण्डपाल
क्यों भई वरुण गांधी? मां के आंसुओं का हिसाब जनता क्यों देगी? क्या ये आंसू करगिल में शहीद हुये कैप्टन सौरव कालिया की मां के हैं? या कैप्टन विक्रम बत्रा की मां रो रही हैं जिनका बेटा करगिल जीत कर शहीद हो गया। इन बहादुरों की मांताओं की आंखों से आंसूं नहीं निकलते। मुम्बई हमले के बाद एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की मां की आंखें याद हैं आपको, वो बहादुर बेटे की मां हैं। आंसू टपका कर ये अपने बेटे के शौर्य को कम नहीं करतीं। ये मांताऐं बेहद खामोशी और दृढ़ता से फिर से ऐसे ही शूरवीर बनाने में जुट जाती हैं जो फिर देश पर कुर्बान हो सकें। ये शौर्य और सहास की प्रतिमायें अपने आंसुओं का हिसाब मांगने चुनावी सभाओं में नहीं जातीं। कैप्टन सौरव कालिया जब शहीद हुये उसके बाद रक्षा बन्धन का त्यौहार आया, तब भी करगिल की लड़ाई चल रही थी। ऑल इंडिया रेडियो के लिये एक स्पेशल फीचर बनाने के लिये मैं सौरव की बहन से मिला, भरे हुये मन से मैने उनसे पूछा कि इस बार राखी पर सीमा पर खड़े फौजियों के लिये क्या संदेश देना चाहेंगीं। जो जवाब सौरव कालिया की बहन ने दिया उससे मेरे रोंगटे खड़े हो गये। उन्होंने कहा कि मैं अपने फौजी भाईयों से बस इतना ही कहना चाहती हूं कि बस अब हमारी तरफ से कोई शहीद नहीं होना चाहिये..अब जो भी लाश गिरे वो दुश्मन की होनी चाहिये। ये हमारे देश की मां बहनों का बानगी है।
क्या नौजवान नेता मां के आंसुओं को ढा़ल बनाता है ?
एक नौजवान नेता के चुनावी भाषण में क्या मां के आंसुओं का हिसाब मांगा जाना चाहिये। क्या मां के ऊपर कोई ज़ुल्म हो गया है। क्या मां को किसी ने कुछ कर दिया है। मां के आंसू तो अपने बेटे के लिये निकले हैं और बेटे की करनी पर कारवाई चल रही है, इसे देख कर ही तो मां रोई है। बेटे को कष्ट में देखेगी तो मां तो रोयेगी ही। क्या वरुण का कष्ट ऐतिहासिक कष्ट है। क्या मेनका के आंसू इतिहास बदलने जा रहे हैं। वरुण किस बात पर अपनी मां के आंसुओ का हिसाब मांग रहे हैं। हज़ारों मांओं की आंखों से आंसू पोछने की ज़िम्मेदारी जिसे अपने कंधे पर लेनी चाहिये वो अपनी मां के आंसुओं को पोछने के लिये वोट मांग रहा है।
कोई काम की बात क्यों नहीं करते हैं वरुण ?
कैसी वाहयात बात करते हैं ये नेता कि मायावती मां होती तो बेटे का दर्द जानती। मेनका का बेटा, बेटा और दूसरे के बेटे का क्या। कितने बेकसूर जेलों में सड़ रहे हैं उनका मेनका ठेका क्यों नहीं ले रहीं। वरुण ने जनता के बीच जाकर भाषण दिया है। अच्छा है या बुरा है, सही है या गलत है ये फैसले करने के लिये व्यवस्थायें लगी हुयी हैं। बड़ी अजीब बात है आप संवैधानिक संस्थाओं के सहारे भी चल रहे हैं, फिर आप अपने भाषण में भी मां के आंसुओं का हिसाब मांगने लगते हैं। जहां आपको ये बताना चाहिये कि आप जनता की सेवा किस तरह से करेंगे वहां आप मां के आंसुओं की ढ़ाल लेकर खड़े हो जाते हैं। अपने विरोधियों को आप ओसामा बिन लादेन बताने लगते हैं लेकिन आप क्या करेंगें ये बात आपकी ज़बान पर ही नहीं आती।
वरुण को इमोशनल मुद्दा ही क्यों सुहाता है?
क्या बात है? आखिर वरुण को इमोशनल मुद्दे ही क्यों रास आते हैं? पर्चा दाखिल करने से पहले वरुण ने जो भाषण दिया उसे कोई मनीषी आखिर बताये कि उसमें जनता के कौन से हित की बात की गयी है। पीलीभीत का विकास कैसे होगा। वहां की जनता की परेशानियां क्या हैं ये वरुण के भाषणों का हिस्सा क्यों नहीं होता है। हर वक्त इमोशनल कर देने वाली बांते। हिन्दू श्रोता खड़े हैं तो उनकी धार्मिक जज़्बातों वाली इमोशनल बाते कर दीं, जब सबकी नज़रें कड़ी हो गयीं तो मां के आंसुओं का हिसाब करने की बात करने लगे। राजनीति में वैसे ही पढ़े लिखे नौजवानों का टोटा होता जा रहा है, कोई राजनीति में आना ही नहीं चाहता। नेता पुत्र अपना वरचस्व बनाये हुये हैं ऐस में वरुण ज़रा अपने मन में पूछें कि उन्होंने कौन से आदर्श स्थापित कर दिये हैं।
क्या सिखा रहे हैं वरुण?
वायस आफ इंडिया पर एक टॉक शो में मैने बाहुबली नेता पप्पू यादव से पूछा कि आज के नौजवान पप्पू यादव से क्या सीखे....जो जवाब पप्पू ने दिया उस से मुझे शर्म आ गयी। पप्पू यादव ने कहा कि क्या बात कर रहे हैं आप आज के नौजवान हमसे कई बातें सीख सकते हैं..वो हमसे सीख सकते हैं कि कैसे लगन से जनता की सेवा की जाय..गरीबों की मदद कैसे की जाय..फिर हड़बड़ाते हुये पप्पू ने कहा और भी कई सारी बातें है जो नौजवान हमसे सीख सकते हैं ...लेकिन एक ठोस बात पप्पू यादव अपने बारे में नहीं बता सके कि आज का नौजवान पप्पू से क्या सीखे।
यहां पर मैं तुलना नहीं कर रहा हूं लेकिन अगर वरुण से भी यही सवाल पूछा जाय तो क्या जवाब आयेगा। वरुण क्या ये बतायेंगें कि जहां जनता को विकास की रोशनी दिखाने की बात करनी जाहिये वहां इमोश्नल तीर कैसे चलाये जाते हैं ये कोई नौजवान उनसे आकर सीख ले। राष्ट्रीय स्तर का नेता बनने का सपना देखने वाली वरुण क्या इस मुगालते में हैं कि वो इमोश्नल मुद्दों पर बहका लेंगें
एक तो नोजवान वैसे ही वोट देने घर से बाहर नहीं आ रहा ऊपर से ऐसे नेता अगर हो गये तो समझो बज गया लोकतंत्र का बैंड।
हम भी क्या इमोश्नल वोटर ही बने रहेंगें?
जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक भारत एक खोज पर जब श्याम बेनेगल ने धारावाहिक बनाया तो उसमें चाणक्य सेल्यूकस के दूत से कहते हैं कि भारतीय जनमानस मूलत: भवावेश में काम करता है इसलिये सोचने का शक्ति कई बार कुंद पड़ जाती है। इसी बात का फायदा उठा कर हर नेता ने इस जनमानस को हमेशा गलत दिशा दिखलायी है। हम क्या कर रहे हैं। हम भी क्या इमोश्नल वोटर ही बने रहेंगें। अगर आपने गजनी फिल्म दखी है तो उसमें आमिर का एक बेहतीरन डॉयलॉग है उस डायलाग में आमिर कहते हैं कि इंसान को जज़्बातों के साथ काम करना चाहिये, जज़्बाती होकर नहीं। इस डायलॉग से हिन्दुस्ताने के ज़यादातर वोटरों को सीख लेनी चाहिये। फर्क तो करना ही होगा। ये भी देखना होगा की कैप्टन सौरव कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा और मेजर संदीप उन्नीकृषण्न कीं मां क्यों अपने बेटे की शहादत पर आंसू नहीं बहाती हैं और वहीं,वोट मांगने के लिये बेटा अपनी मां के आंसुओं का हिसाब मांगने के लिये जनता को भड़काता है।