Friday, June 29, 2012

बेटी की विदाई के समय गिदारों द्वारा गए जाने वाला कुमांऊनी संस्कार गीत

(1) बेटी की विदाई के समय गिदारों द्वारा गए जाने वाला कुमांऊनी संस्कार गीत ------- हरियाली खड़ो मेरे द्वार , इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी | छोडो -छोडो ईजा मेरी अंचली,छोडो -छोडो काखी मेरी अंचली , मेरी बबज्यु लै दियो कन्यादान , मेरा ककज्यु लै दियो सत्यबोल , इजा मेरी पैलागी | इजा मेरी पैलागी | छोडो -छोडो बोजी मेरी अंचली , छोडो -छोडो बहिना ,मेरी अंचली , मेरे भाई लै दियो कन्यादान , मेरे भिना लै दियो सत्यबोल, इजा मेरी पैलागी | इजा मेरी पैलागी | छोडो -छोडो मामी मेरी अंचली , मेरे मामा लै दियो कन्यादान , इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी |....................................................... (2) बेटी की विदाई के समय का कुमांऊनी संस्कार गीत _ काहे कि छोडूँ मैं एजनी पैजनी काहे कि लम्बी कोख ए ? बाबु कि छोडूँ मैं एजली पैजली माई कि लम्बी कोख ए | काहे कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , काहे कि रामरसोई ए , भाई कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , भाभि कि रामरसोई ए | छोटे - छोटे भाईन पकड़ी पलकिया हमरी बहिन कांहाँ जाई ए , छोडो - छोडो भाई हमरी पलकिया , हम परदेसिन लोक ए | जैसे जंगल की चिड़ियाँ बोलै , रात बसे दिन उडि चलै , वैसे बाबुल का घर हम धिय सोहें , रात बसे दिन उडि चलै | बाबुल घर छाडी ससुर का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए , भाईन घर छाडी जेठ का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए | माई कहे बेटी नित उठि अइयो, बाबु काहे छट मास मे, भाई कहे बैना काज परोसन ,भाभि कहे क्या काज ए || ( कुमांऊँ का लोक साहित्य )

Sunday, January 22, 2012

आत्मसम्मान की लड़ाई पर सरकारी हथौड़ा



दिनेश काण्डपाल

भारत के इतिहास में पहली बार सेना के जनरल ने सरकार को सरेआम चुनौती दी है। थलसेना प्रमुख जनरल वी के सिंह अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन दूसरा पक्ष इस पर अनुशासन की दलीलें देकर असली मुद्दे को भटकाना चाहता है। अपनी जन्मतिथि के बारे में जनरल सिंह अपनी कई बार सेना को लिख चुके थे लेकिन इसका समाधान नहीं हो पाया। अब कई स्वार्थों की वजह से वी के सिंह को निशाना बना कर न केवल उनकी गरिमा बल्की सेना के मनोबल को भी दांव पर रखा जा रहा है, ज़ाहिर है ये सब सरकार कर रही है कोई दूसरा नहीं।
क्यों निशाना बने हैं जनरल
इस कहानी के पीछे वही आदत है जिस आदत ने छोटे स्वार्थों की खातिर कई बार देश के सम्मान को दांव पर रखा है। अन्दर की कहानी ये है कि जनरल सिंह की जन्मतिथि को अगर 1951 मान लिया जाय तो सरकार के कुछ चहेते जिन्दगी भर वो हासिल नहीं कर पाएंगे जो उन्हें वी के सिंह की इज़्जत उतारने के बाद अभी मिल जाएगा। यहां पर याराना भी है और कमज़ोरी भी। जनरल सिंह को इसलिये भी पसंद नहीं किया जाता है क्योंकि वो वैसा कुछ नहीं करते जो सरकार के ही हित में हो। आदर्श सोसाईटी घोटाले में जिस तरह से सेना प्रमुख ने सक्रियता दिखाई वो कई रहनुमाओं को पसंद नहीं आया लेकिन उस वक्त उनके हाथ बंधे थे। जिस तरह से सुकना ज़मीन घोटाले में लेफ्टिनेंट जनरल अवधेश प्रकाश का कोर्ट मार्शल हुआ उस पर भी तकलीफ तो कई दिलों को हुई लेकिन वीके सिंह का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका। अपने कार्यकाल में जिस तरह से जनरल वी के सिंह ने साहस के साथ निर्णय लिये है वो कुर्सियों को जागीर समझने वालों के लिये बैचेनी पैदा कर रहे हैं। यही बैचेनी सेना प्रमुख को घेरने की कोशिशों में लगी है।
चीफ ने क्या किया ?
वी के सिंह को जब जन्म तारीख की विसंगतियों का पता चला कि उन्होंने उसी दिन से चिठ्ठी लिखनी शुरू कर दीं। सैनिक जीवन में अनुशासन का घोटा पी चुके जनरल के पास इसस् ज़्यादा करने के लिए कुछ था भी नहीं। यहां पर अब हैसियत बदल चुकी थी। एनडीए का ये कैडेट अब सेना प्रमुख है और सरकार उन्हें इस तरह बदनाम कर रही है मानो उन्होंने इरादतन अपनी उम्र छिपा कर फायदे लिये हों। ये मुद्दा एक इंसान के आत्मसम्मान का बन चुका था। 13 लाख सैनिकों के फौज की अगुवाई करने वाले जनरल पर इस तरह की बातें करने वाली सरकार ने एक पल के लिए भी उनके मनोबल के बारे में नहीं सोचा। इस विवाद के बाद भी कोई कदम बढ़ाने से पहले सिंह ने भारत के तीन मुख्य न्यायाधीशों से राय ली और सबने उनके पक्ष में सलाह दी।
अब क्या होगा ?
ज़ाहिर है सरकार के पास ताकत है साधन हैं और बदनीयति भी है। जनरल वी के सिंह को इस बात के लिए मजबूर कर दिया जाएगा कि वो मई तक रिटायर हो जाएं और सरकार के फैसले को मान ले। दूसरा रास्ता जनरल के पास तो है लेकिन वो स्वाभिमानी व्यक्ति होने के साथ साथ इस बात का ख्याल रखने वाले भी हैं कि सरकार के साथ किसी भी तरह का क़ानूनी विवाद आगे ग़लत परंपरा को जन्म दे सकता है। इस परिस्थिति में विक्रम सिंह अगले थल सेना प्रमुख बनेंगे और उनको को तैयार रहने के संकेत दिये जा चुके होंगे। अगर जनरल वी के सिंह मई 2012 तक रिटायर नहीं होंते हैं तो विक्रम सिंह थल सेना प्रमुख नहीं बन पाएंगे।
अब माफी का मतलब ?
जनरल वी के सिंह की उम्र विवाद के लिये जिस तरह से रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने माफी मांगी है वो भी संकेत है कि सरकार को मामले की गंभीरता का पता तो था लेकिन अपनी गोटियां फिट हो जाने तक वो चुप रही और तमाशा होता रहा। क्या रक्षा मंत्री का वक्त पर किया गया एक फोन थल सेनाअध्यक्ष के साथ हुए इस हादसे को जनता के बीच जाने से नहीं रोक सकता था। अब माफी का मतलब है कि चिड़िया खेत चुग चुकी है। देश ने एक गलत उदाहरण देख लिया है और ये भी देख लिया है कि छोटे स्वार्थों के लिये सरकार किस हद तक जा सकती है।

ये विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। इसमें से क्षेत्रवाद और निजी पसंद की बू भी आती है। ये एक बड़े वर्ग की साज़िश का भी संकेत है जो ज़ाहिरा तौर पर देश के लिये ठीक नहीं है।