tag:blogger.com,1999:blog-6529470563653011162024-03-06T01:12:21.825-08:00दिल्ली सेdinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.comBlogger50125tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-8180290166165959812018-10-03T05:05:00.000-07:002018-10-03T05:11:10.949-07:00मेहनत का फल मिर्च होता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQNQ0qSkuO5n0OuCtfyBsirStRrCD0u51oY6TjLCGJ2Oevus06VN2O8YYfhtmNGOk-ex3PojHaA1b3_8V2cVvp6JROyBAi7ARmm_yKDUlkYDxLrHgtkGJhVnGLq-ztcIYjd707nALjx7g/s1600/mirch+in+my+garden.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="711" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQNQ0qSkuO5n0OuCtfyBsirStRrCD0u51oY6TjLCGJ2Oevus06VN2O8YYfhtmNGOk-ex3PojHaA1b3_8V2cVvp6JROyBAi7ARmm_yKDUlkYDxLrHgtkGJhVnGLq-ztcIYjd707nALjx7g/s320/mirch+in+my+garden.jpg" width="237" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
हमारे कुमाऊं में भतरौचखान की मिर्च सबसे प्रसिद्ध है। इसका स्वाद भी निराला होता है। बेहद तीखी, जीभ को छू भी ले तो जला दे। घर में भतरौचखान की मिर्च कुट रही हो तो कोई टिक नहीं सकता। चारों तरफ खौसेंन। चौखुटिया से लौटते समय भतरौचखान में रायता और आलू के गुटके खाने लगा तो यही मिर्च दिख गई। बस फिर क्या था दिमाग कुलबुलाया और किचन गार्डन की दबी हुई उमंगे जाग गईं, फौरन मिर्च खरीद ली। इस बीच नोएडा में अपना घर भी हो गया।
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<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
उत्साह इतना कि पिछले साल (2017) अक्टूबर में ही मिर्च के बीज गमले मे<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;">ं डाल दिए। पता ही नहीं था कौन सा सीज़न, कब बोनी है, कब उगेगी, कब फलेगी, कुछ पता नहीं..बस बोना था सो बो दी। नवंबर तक अंकुर फूट गया और दिसंबर तक तो पेड़ आधे फीट का हो गया। मन खुशी से झूम रहा था, आज तक जीवन में कुछ खास तो किया नहीं चलो पौंधे से सीधे मिर्च तोड़ कर खाने पर ये अहसास तो होगी कि कुछ उगाया है। इसी भाव का ध्यान करके सीना फूला जा रहा था। देखते देखते दिसंबर गुज़र गया..फिर जनवरी आ गई..फरवरी भी निकल गई, लेकिन मेरी मिर्च का पौंधा आधे फीट से एक सेंटीमीटर भी नहीं बढ़ा। कई बार मन किया कि अपनी नाकामी के इस स्मारक को तोड़ दूं लेकिन हिम्मत ही नहीं जुटा पाया। दस बार मां को पूछा तो वो भरोसा देती रही कि आ जाएगी तू चिंता मत कर। पहले लगा कि ठंड की वजह से पौंधा बढ़ नहीं पाया होगा फिर मार्च में धूप कड़ी होने लगी तो उम्मीदें फिर बढ़ने लगीं। पानी, खाद नियमित दी जा रही थी, कृषि भवन से लेकर पूसा तक के कृषि वैज्ञानिकों की रिसर्च से बनी खाद डाल चुका था, लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ। अप्रैल गुज़रा, मई निकल गया लेकिन मेरी मिर्च का पौंधा नहीं बढ़ा। दस बार गमले की जगह बदल दी, कहीं धूप कम है तो कहीं ज्यादा, सारे हिसाब किताब देख लिए लेकिन इस बीमार का इलाज नहीं हुआ।
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6cy4joljcwZO8miokRLrEs1s_bwkDKJGaV90-iXgN_WL4Yhf16rhK_ed9-dAgLh6YJ3fHKHF0a-kXFhzuOkWfN-2sQdSfxv46qcbwjWra4_60cLoiLSvAwx3rXVR3aAcRH8Fohbf3hzg/s1600/gamla.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="711" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6cy4joljcwZO8miokRLrEs1s_bwkDKJGaV90-iXgN_WL4Yhf16rhK_ed9-dAgLh6YJ3fHKHF0a-kXFhzuOkWfN-2sQdSfxv46qcbwjWra4_60cLoiLSvAwx3rXVR3aAcRH8Fohbf3hzg/s320/gamla.jpg" width="237" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-family: inherit;">
इसी बीच मां फ्लैट में आई, फिजिकल वेरिफिकेशन किया तो उसने फिर भरोसा दिया, उखाड़ मत आ जाएगी मिर्च। रोज़ सुबह उसे देखता और अपने विश्नवास को टटोलता, लेकिन दोनों ठूंठ बने हुए थे। इस बीच जून के महीने में थोड़ा हलचल हुई, कुछ नई पत्तियां आ गईं, लेकिन इतनी वृद्धि मुझमें कोई संचार नहीं कर सकी। जुलाई तक पौंधा और बढ़ा, एक बार फिर अपनी भी उम्मीदों के अंकुर फूटने लगे। अगस्त में तो खूब सारे पत्ते आए, नई शाखाएं आईं और पेड़ हरा भरा हो गया। देखते ही देखते सितंबर की शुरुआत में मिर्च के सफेद फूलों से गमला भर गया, लेकिन अफसोस कि बारिश में सारे फूल झर गए। मैं फिर अपना सा मुंह लेके रह गया, लेकिन उम्मीद नहीं हारी।
</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
पेड़ की खिदमत जारी रखी, नियमित पानी और महीने में एक बार खाद का नियम नहीं तोड़ा। सितंबर के बीच में फिर इक्का दुक्का फूल खिलने लगे, फिर उम्मीद पैदा हो गई। इस बार मेरी मेहनत पूरे शबाब के साथ रंग बिखेरने वाली थी...25 सितंबर के बाद जो मिर्च आनी शुरू हुई तो वो आती ही रही। गुच्छे पर गुच्छे। तीखी इतनी की जीभ जला दे।
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhByOLYMfGeT4oUGmPhyEdNPQ5SAo9CBjkCmOEFOp-Cr0TfYj_meYtCKHNGAQ1Q6_YuEqCkBzVH5f25gTNNTnFKbP3OCTE8OhDdo8MhyRobk0DT375HyHx6_EIp07KdNzseXfzHl5H65X0/s1600/garden.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="711" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhByOLYMfGeT4oUGmPhyEdNPQ5SAo9CBjkCmOEFOp-Cr0TfYj_meYtCKHNGAQ1Q6_YuEqCkBzVH5f25gTNNTnFKbP3OCTE8OhDdo8MhyRobk0DT375HyHx6_EIp07KdNzseXfzHl5H65X0/s320/garden.jpg" width="237" /></a></div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-family: inherit;">
इधर भारत ने एशिया कप का खिताब जीता और उधऱ मैने मिर्च की ट्रॉफी। मोदी को चैंपियंस ऑफ द अर्थ का अवार्ड मिला तो घर में मैने बेटे का भरोसा जीता कि गमले में भी कुछ हो सकता है। खैर खूब मिर्च फली है, नज़र आप लगा नहीं सकते क्योंकि मिर्च को नज़र नहीं लगती। खानी हो तो घर आना पड़ेगा, दूसरा कोई उपाय नहीं है बल।
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</div>
</div>
dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-66605799609426295622018-09-30T18:05:00.003-07:002018-09-30T18:05:58.958-07:00 इमरान खान की बेवकूफी खतरनाक साबित होगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZB3lo-t2jFd4R-q9CUoxD-PYnNz7XRCkWlezqmSmydkit_jwZwmP6TEpmiUGjmBl3fnAMVFDvKGAyvIto3LFivL821gsvoPGGXv4K6cEmFo_T_NGPLj6Q_nGVMfCcjn_INOSr33Vurbs/s1600/pm-imran-khan-chairs-a-performance-review-meeting-in-bani-gala-1538310907-8934.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="266" data-original-width="400" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZB3lo-t2jFd4R-q9CUoxD-PYnNz7XRCkWlezqmSmydkit_jwZwmP6TEpmiUGjmBl3fnAMVFDvKGAyvIto3LFivL821gsvoPGGXv4K6cEmFo_T_NGPLj6Q_nGVMfCcjn_INOSr33Vurbs/s320/pm-imran-khan-chairs-a-performance-review-meeting-in-bani-gala-1538310907-8934.jpg" width="320" /></a></div>
( दिनेश काण्डपाल)<br />
<br />न्यूयॉर्क में दुनिया के देश नए पाकिस्तान का रोड मैप जानने के लिए बेकरार थे। यूएन असेंबली के हॉल में अमूमन पाकिस्तान जैसे देश को सुनने के लिए इतने लोग नहीं रहते, लेकिन इमरान खान की सरकार ने जो ढोल पीटे उसके बाद दुनिया ये जानना चाहती थी कि आखिर अब इस नए पाकिस्तान की झलक कैसी होने वाली है। शनिवार शाम करीब साढ़े सात बजे सुषमा स्वराज का भाषण हुआ और उसके करीब चार घंटे बाद रात साढ़े ग्यारह बजे के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी भाषण देने आए।<br /><br />अपने कर्जों को चुकाने के लिए गाड़ियां और भैंसे बेच रहे पाकिस्तान के पास मौका था कि वो मौजूदा परेशानियों के बावजूद दुनिया के सामने एक ऐसा नक्शा रखता जिससे ये लगे कि वो परेशान है, जूझ रहा है लेकिन इससे उबरने का रास्ता उसके पास है। अफसोस कि कुरैशी का भाषण ये साबित कर गया कि पाकिस्तान और बुरी गर्त में गिरने वाला है और वहां से उसे उबारने वाला कोई नहीं। फारसी के पैबंद लगे लबाबदार शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कुरैशी का सुर अदब के नाम पर तो धीमा था, लेकिन ज़बान से निकल रहे शब्द बता रहे थे कि सुषमा स्वराज का भाषण उनके सिर पर भूत बनकर नाच रहा है।<br /><br />बातचीत ठुकराने का रोना रोते हुए कुरैशा दुनिया के सामने भारत की चुगली करते रहे और फिर एकाएक ऐसी घटिया हरकत पर उतारू हो गये जिसे देखकर पाकिस्तान के सियासतदान भी शर्मिंदा हो जांए। कुरैशी ने पेशावर के स्कूल में हुए हमले का ज़िक्र किया, 16 दिसंबर 2014 को तहरीक-ए-तालिबान के 7 आतंकियों ने पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में घुसकर 145 लोगों की हत्या कर दी, मरने वालों में ज्यादातर मासूम बच्चे थे। इस हमले की चारों तरफ निंदा हुई। भारत सरकार ने तो इसकी निंदा की ही, स्कूलों में भी मासूमों के लिए मौन रखा गया।<br />2014 से लेकर अब तक पाकिस्तान की किसी सरकार ने इस हमले के लिए भारत की तरफ अंगुली नहीं उठाई, नवाज़ शरीफ और सरताज़ अज़ीज भले ही दूसरे मुद्दों पर भारत के खिलाफ ज़हर उगलते रहे लेकिन पेशावर स्कूल हमले के लिए कभी इशारों में भी भारत का नाम नहीं लिया। नए पाकिस्तान का दावा करने वाले इमरान खान के विदेश मंत्री ने अपना खोखलापन दिखाते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से इस हमले का आरोप भारत पर जड़ दिया। बदहवास कुरैशी ने भारत को युद्ध की धमकी तक दे डाली। इसके अलावा कुरैशी के भाषण में इसके अलावा वही कश्मीर, मानवाधिकार और दहशतगर्दी जैसी बातें थीं।<br /><br />पाकिस्तान के विदेश मंत्री का भाषण ये बता गया कि इमरान खान के दिल में क्या है। सियासी पोपट इमरान खान के मंत्री ने भारत सरकार के बातचीत न करने के फैसले को भी सही ठहरा दिया। ये समझा जा सकता है कि जो मुल्क और उसके रहनुमा बस्ते में इतने गंदे आरोपों का बारूद लेकर बैठे हों क्या उनके साथ टेबल पर बैठकर कॉफी पीनी चाहिए।<br /><br />ये एक भाषण बता रहा है कि पाकिस्तान किस तरह का नक्शा खींच रहा है, ये बात भी साफ हो रही है कि इमरान खान के पास कर्ज में डूबे पाकिस्तान को बाहर निकालने के लिए कोई रास्ता नहीं है, और वो अपनी नाकामी छिपाने के लिए कुछ भी करेगा। पाकिस्तानी आर्मी की गोद में बैठे इमरान खान इस हद तक भी जा सकते है कि वो बॉर्डर पर इतनी टेंशन पैदा कर दें कि युद्ध के बादल मंडराने लगें। <br /><br /><br />Imran Khan's stupidity will prove dangerous<br /><br /><br />In New York the countries of the world were determined to know the new road map of Pakistan. There are not so many people who listen to a country like Pakistan in the UN Assembly Hall, but after the drum beat by the government of Imran Khan, the world wanted to know how it is going to be a glimpse of this new Pakistan. Sushma Swaraj's speech took place around 7:30 pm on Saturday evening and four and a half hours after about eleven o'clock, Pakistan's Foreign Minister Shah Mahmood Qureshi came to deliver the speech.<br /><br />Pakistan in in misrable condition, Cars and buffaloes are on ouction to pay national debt. Pakistan had a chance to show the broad vision and courage to overcome from the current problems. Regrettably, Quraishi's speech proved that Pakistan was going to fall into a bad trough and there was no one to rescue him from there. Quraishi's use of farsighted words in Persian was slow, but the words coming out of the word were telling that Sushma Swaraj's speech is has destroied their thinkking power.<br /><br />Qureshi mentioned the attack in Peshawar School, on December 16, 2014, 7 terrorists from the Tehrik-e-Taliban entered the army public school of Peshawar and killed 145 people, most of the dead were innocent children. The attack was condemned around The globe. Indian government condemned it, even in schools, it was kept silent for the innocent.<br /><br />Since 2014, no Pakistani government has pointed any finger towards India for this attack, Nawaz Sharif and Sartaj Aziz may have been poisoning against India on other issues, but never blamed India for Peshawar school attack.<br /><br />Imran Khan's foreign minister, who claimed the new Pakistan, has accused India of its attack on the stage of the United Nations General Assembly showing its hollowity. Qureshi thretend India of war. <br /><br />Pakistan's foreign minister's speech is showcase of what is in the heart of Imran Khan. The Minister of Imran Khan, justified the decision taken by India not to talk to Pakistan. It can be understood that if the country and the people in Government sitting with gunpowder for so many dirty accusations, they should drink coffee on the table with them.<br /><br />This is a speech telling what Pakistan is drawing a map, it is also clear that Imran Khan has no way to take Pakistan out of debt. Imran Khan, who is sitting in the Pakistani army's lap, can go to such an extent that he should create such tension on the border that the clouds of war will start to grow.<br />
<br />
( Dinesh Kandpal)<br /><br /></div>
dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-73186568065586882182017-05-23T06:07:00.002-07:002017-05-23T06:13:54.419-07:00मेजर गोगोई का मेडल मानवता का सम्मान <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: "tahoma";"><span style="background-color: white; font-size: 13.3333px;"><br /></span></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8zHhBXNn08Beh_Sq-fDZkPJxlK5YEH4FcTjhv_TBhtEABLl6qTPHn5BFu17sGGUiN3oFLrAhxfDDQ0FG6iFnLH9L6-m8cAutLQwbCOtr93LIenRjWLWnoGy1xwHR16RM9pvslSW2X25M/s1600/kashmirmajor-gogoi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="236" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8zHhBXNn08Beh_Sq-fDZkPJxlK5YEH4FcTjhv_TBhtEABLl6qTPHn5BFu17sGGUiN3oFLrAhxfDDQ0FG6iFnLH9L6-m8cAutLQwbCOtr93LIenRjWLWnoGy1xwHR16RM9pvslSW2X25M/s400/kashmirmajor-gogoi.jpg" width="400" /></a></div>
<span style="color: red;"><br /></span>
<span style="background-color: white; font-family: "tahoma"; font-size: large;">9 अप्रेल 2017 की दोपहर ढलनी शुरू हुई ही थी कि 500 लोगों की भीड़ ने पोलिंग पार्टी को घेर लिया। श्रीनगर के बीरवाह का ये वो इलाका था जहां चुनाव के दौरान आर्मी तैनात थी। पोलिंग पार्टी घिर चुकी थी, पत्थरबाज़ों ने अब पेट्रोल बम फेंकने भी शुरू कर दिये। चुनाव आयोग के कर्मचारियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मेजर तिलुल गोगोई पर थी। मेजर तिलुल को अंदाज़ा हो चुका था कि पत्थरबाज़ पूरी कोशिश में थे कि हालात बिगड़ जाएं, गोलीबारी हो और चुनाव की प्रक्रिया बदनाम हो जाय। </span><br />
<span style="font-family: "tahoma";"><span style="background-color: white; font-size: large;"> मेजर तिलुल ने अपनी फोर्स देखी, उनके पास पैलेट गन नहीं थी, सभी जवानों के पास एके-47 रायफल्स थीं। मेजर गोगोई ने आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन दूसरी तरफ से पत्थर और पेट्रोल बम आ रहे थे। पत्थरबाज़ों ने छोटे बच्चों को आगे कर रखा था जिसकी वजह से सेना के जवान पत्थरों से भी जवाब नहीं दे पा रहे थे। अब सेना के सामने एक ही रास्ता बचा था कि गोली चलाई जाय, भीड़ को तितर बितर किया जाय और किसी तरह से पोलिंग पार्टी को बचाकर निकाला जाय। </span></span><br />
<span style="font-family: "tahoma";"><span style="background-color: white; font-size: large;">सैनिकों को फायरिंग का आदेश देने से पहले मेजर तिलुल बारीकी से आसपास देखते रहे, उनकी ट्रेनिंग में ही ये महान आदर्श स्थापित किया गया था दुश्मन को मारना आखिरी रास्ता है... पहला नहीं। एक बड़ी साज़िश के तहत काम कर रहे पत्थरबाज़ों पर अगर गोली चलती तो पहले उन बच्चों को लगती तो सबसे आगे थे। पूरी बटालियन ये जानती थी कि वो किसी भी सूरत में बच्चों पर गोली नहीं चलानी है। हालात बेकाबू होते जा रहे थे। अगर गोली चलती तो श्रीनगर का वो इलाका खून से लथपथ हो जाता। </span></span><br />
<span style="font-family: "tahoma";"><span style="background-color: white; font-size: large;">मेजर को एकाएक कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में कृष्ण का वो वाक्य याद आया जिसमें कहा गया था कि मृत्यु अगर सभ्यता को दूषित होने से बचाती हो उसे हो जाना चाहिए। फौरन बटालियन को हुक्म हुआ पत्थरबाज़ों को खदेड़ो और एक को पकड़ लाओ। फारुख डार अपने दूसरे साथियों के साथ तेज़ी से भाग नहीं सका, उसे पकड़ लिया गया। फारुख डार को जीप के आगे बांधा गया। ईदगाह कहानी में प्रेमचंद्र ने लिखा है कि कायरों में नीती का साहस और न्याय का बल नहीं होता। यही हुआ फारुख डार को जीप से बंधा देखकर पत्थरबाज़ों की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई। उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि जवाब इस अंदाज़ में भी मिल सकता है। </span></span><br />
<span style="font-family: "tahoma";"><span style="background-color: white; font-size: large;">मेजर तिलुल गोगोई की रणनीति काम आई, एक भी पत्थर नहीं चला तो ज़ाहिर है गोली भी नहीं चलनी थी। सारे पत्थरबाज़ पीछे हट गये। पोलिंग पार्टी को सुरक्षित जगह पर पंहुचाया गया और खिसियासे पत्थरबाज़ अपने घरों को लौट गये। मेजर तिलुल गोगोई ने सैकड़ों लोगों की जान बचा ली। </span></span><br />
<span style="font-family: "tahoma";"><span style="background-color: white; font-size: large;">ये मौका था सेना और सरकार के लिये उन लोगों का सम्मान करने का जो देश के लिये काम करते हैं। सरकार ने कह भी दिया देश को कोसने वाले तो अखबारों में छाये ही रहते हैं, ये तो एक देशभक्त का सम्मान है। </span></span><br />
<span style="background-color: white; font-size: large;"><span style="font-family: "tahoma";"><span style="background-color: white;"><br /></span></span>
दिनेश काण्डपाल,</span><br />
<span style="background-color: white; font-size: large;">सीनियर प्रोड्यूसर, इंडिया टीवी </span></div>
dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-51753968297879827562017-03-24T05:16:00.002-07:002017-03-24T05:16:31.444-07:00योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने की पूरी कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"><u style="background-color: red;"><br /></u></b>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZXURxqeJP_67ZvOXpYTD3Exo8oCbcUB9Mt__jykssdzQi5vtS6wVxZeCxMUjT7aCoI-MrIYrjVHZKl4CfemaTAACrYjTr0YGB6neOMWhmtnlN_i-b1IzDdeQvivszUHmp2JE9AsdS6E4/s1600/yogi-2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZXURxqeJP_67ZvOXpYTD3Exo8oCbcUB9Mt__jykssdzQi5vtS6wVxZeCxMUjT7aCoI-MrIYrjVHZKl4CfemaTAACrYjTr0YGB6neOMWhmtnlN_i-b1IzDdeQvivszUHmp2JE9AsdS6E4/s320/yogi-2.jpg" width="320" /></a></div>
<b style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"><u style="background-color: red;"><br /></u></b>
<b style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;"><u style="background-color: red;">योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने की यही कहानी है?</u></b><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><br />
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div>
बीजेपी ने जब यूपी के लिये चुनाव प्रचार की रणनीति तय की उसी वक्त तय हो गया कि योगी आदित्यनाथ किस भूमिका मेंआगे बढ़ सकते हैं। बीजेपी की मजबूरी थी कि वो कोई एक नाम आगे नहीं कर सकती थी। बिहार से सबक ले चुके बीजेपी के रणनीतिकार यूपी के लिये कोई भी कमज़ोर कड़ी छोड़ना नहीं चाहते थे। उस वक्त ङभी योगी बड़ा चेहरा तो थे लेकिन विपक्ष उनको आसानी से निशाने पर ले सकता था। योगी को निशाने पर रखकर विरोधी दल इतना शोर कर सकते थे कि बीजेपी का ध्यान भटक जाता। बीजेपी ने जिस लक्ष्य के लिये पिछले दो साल से तैयारियां शुरू कर दी थीं उसके लिये कोई भी चूक इस वक्त खतरनाक हो सकती थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने विरोधियों के पास कोई चेहरा नहीं था, योगी आगे आते तो तुलनाएं शुरु हो सकती थीं। </div>
<div>
<br /></div>
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<b><u style="background-color: red;">किसकी पसंद थे योगी?</u></b></div>
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<b><u><br /></u></b></div>
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ये सवाल 18 मार्च को उस वक्त उठना शुरु हुआ जब योगी ने दिल्ली से लखनऊ के लिये उड़ान भरी। लखनऊ के वीवीआईपी गेस्ट हाउस में वैंकया नायडू और योगी की मुलाकात हुई तो राजनीतिक प्रेक्षक कौतूहल से भर गये। बड़े बड़े पंडित और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी बात का भरोसा न होने पर सूत्रों का हवाला लेने वाले रिपोर्टर सकते में आ गये। ये सवाल तो अभी तक नहीं उठा कि योगी को सीएम क्यों बनाया, सबसे बड़ा सवाल तो ये खड़ा हो गया कि योगी को सीएम किसने बनाया। दरअसल लोकसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद से ही बीजेपी के लिये ये ज़रूरी हो गया था कि वो हिंदुत्व के प्रतीकों को आगे बढ़ाने पर गहराई से सोचे। राजनीतिक क्षेत्र के साथ साथ दूसरे सामाजिक क्षेत्रों में भी। केन्द्र सरकार कुछ नियुक्तियों में परेशानी देख चुकी थी, लेकिन एजेंडे से हटने का मतलब होता जनादेश का निरादर करना। योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व का उग्र चेहरा हैं, लेकिन पिछले 6 महीने से शांत है। उनकी बातों में गंभीरता है, किसी रैली का भाषण हो या फिर टेलीविज़न शो का संवाद। योगी संयमित हैं। </div>
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सवाल पर लौटते हैं कि योगी आखिर किसकी पसंद हैं। आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोग बताते हैं कि ये योगी आदित्यनाथ साझा रणनीतिक पसंद हैं। योगी को सीएम बनाने का विचार नागपुर से होकर दिल्ली नहीं आया। बल्कि नागपुर से दिल्ली के केशव कुंज और 7 लोक कल्याण मार्ग से अशोक रोड तक जहां भी भविष्य को लेकर मंथन हुआ वहां योगी फिट होते चले गये। बीजेपी को यूपी में जीत दिख रही थी, ज़ाहिर है नामों पर भी हाईकमान विचार कर ही रही होगी, इसलिये जब नतीजा आया तो दिल्ली में केवल दो लोग मंथन करते दिखे एक थे अमित शाह और दूसरे केशव प्रसाद मौर्य। फैसला तो हो चुका था, जिन्हें ज़रूरत थी उन्हें बता भी दिया गया था। मीडिया और नेताओं के बीच ब्रेकिंग का खेल खेला जा रहा था, अमित शाह ने उसे खेलने दिया। </div>
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<b><u style="background-color: red;">योगी को कब बताया गया?</u></b></div>
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योगी आदित्यनाथ के तेवर दो आवरण लिये हुए थे। पूरे चुनाव के दौरान योगी का एक भी बयान विवादों में नहीं आया। योगी ने सुर तीखे रखे लेकिन शब्दों को संयमित कर लिया। आवाज़ बुलंद रखी लेकिन बातों को विवादों से दूर ही रखा। जो लोग पिछले 6 महीने से योगी को कवर रह रहे हैं वो ये अनुभव कर चुके होंगे की योगी खुद किसी बड़ी योजना की तरफ चल चुके हैं। योगी ने बीजेपी के लिये बतौर स्टार प्रचारक गाज़ियाबाद से लेकर गोरखपुर तक प्रचार किया। बीजेपी के उम्मीदवारों में पीएम मोदी और अमित शाह के बाद योगी सबसे बड़ी पसंद थे, ये संकेत भी पार्टी हाईकमान को बता रहे थे कि यूपी को किसका साथ पसंद हैं। पूरे चुनाव में योगी लगभग हर जगह गये और जमकर गरजे, लेकिन मर्यादा के दायरे में। योगी आदित्यनाथ को तैयार रहने के संकेत दिये जा चुके थे, उन्हें बता दिया गया था कि जीत के लिये मेहनत कीजिये और आगे के नक्शे पर कदम बढ़ाईये। </div>
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<b style="background-color: red;">योगी को क्यों चुना गया?</b></div>
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जिन लोगों ने योगी आदित्यनाथ की शपथ को ठीक से देखा या सुना है उन्होंने गौर किया होगा कि यूपी के नये सीएम का नाम थोड़ा आगे पीछे हो गया है। हम जानते हैं य़ोगी आदित्यनाथ को लेकिन शपथ के दिन हमारा परिचय हुआ आदित्यनाथ योगी से। संत परंपराओं के देश वाला कोई भी शख्स बता सकता है कि पहले योगी लगता है उसके बाद नाम। यही बड़ी वजह है योगी के चुनाव की। 45 फीसदी ओबीसी, 21 फीसदी दलित और उसके बाद अगड़ी जातियों के पेंच, योगी नाम लगते ही बीजेपी ने उस बड़ी बाधा को पार कर लिया जिस पर उसके विरोधी चारों खाने चित होकर बैठ गये हैं। योगी की कोई जात नहीं है और यूपी में बिना जात के बात नहीं होगी। योगी आदित्यनाथ हिदुत्व का वो छाता है जिसकी छांव में सारे जाति, पंथ बाहर की धूप में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। बीजेपी हाईकमान जानता था कि उसे नया वोटर मिल तो गया लेकिन उसे सहेज कर रखना ज़रूरी है, इसलिये एक बिना जात वाले को आगे कर दिया और उस बंधन से पार पा गये। </div>
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कुल मिलाकर योगी में बीजेपी बड़ा भविष्य देख रही है और कुछ उत्साही देश का भविष्य भी देखने लगे हैं। </div>
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<div style="font-size: 12.8px;">
दिनेश काण्डपाल</div>
<div style="font-size: 12.8px;">
सीनियर प्रोड्यूसर, इंडिया टीवी <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-73277635659410842982016-02-28T04:43:00.001-08:002016-02-28T04:43:16.012-08:00साहस की असली परीक्षा का वक्त आ गया है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16px; white-space: pre-wrap;">मनोहर लाल खट्टर साहब आपके साहस की असली परीक्षा का वक्त आ गया है। हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं उन्हें देखकर एक तरफ आंखों से आंसू निकल रहे हैं तो दूसरी तरफ रोंगटे खड़े हो रहे हैं। खट्टर साहब क्या आप इस बात को समझ पा रहे हैं कि जाट आंदोलन के दौरान जिसने भी हिंसा की है उसे सज़ा दिलवाना आपका धर्म है? आप सत्ता में हैं, न्याय के लिये आपको सर्वोच्च स्थान मिला है, और आपको उसका पालन करना ही होगा। तीन दिन तक हरियाणा जलता रहा, आपकी पुलिस सिर पर पैर रखकर भागती रही इस बात का प्रमाणिक वीडियो है मेरे पास। एक दो जगह पुलिस वालों ने भिड़ने की कोशिशें की तो आंदोलनकारी इतनी तैयारी से थे कि पुलिसवाले टिक नहीं सके। सामान्य समझ वाला व्यक्ति भी ये समझ सकता है कि ये आंदोलन पूर्व नियोजित था जिसका एक मात्र मकसद था आपके राज्य में शासन को दो से तीन दिन तक बंधक बना लेना। मुझे इस बात का पूरा शक है कि ये आंदोलन जाटों के आरक्षण के लिये नहीं था बल्कि उसकी आड़ में एक बड़ी साज़िश की जानी थी। वीडियो साफ दिखा रहे हैं कि आंदोलन के नाम पर उपद्रवियों के जत्थे निकल रहे हैं। ट्रेक्टर, जीप, ट्रक कारें, मोटर साइकिल। हर साधन का इस्तेमाल हो रहा है। चुन चुन कर लोगों की दुकानों को आग लगाई जा रही है। रोहतक, अंबाला, झज्जर की तस्वीरें आपके दिल को चीर कर रख देंखी। अगर आपने अभी तक नहीं देखी हैं तो देख लीजिये। आपके लिये देखना ज़रूरी है क्योंकि आपको न्याय करना है। 20 साल हो गये हैं मुझे उत्तराखंड से दिल्ली आये हुए। ये संयोग है कि दिल्ली आते ही हरियाणवी मोहल्ले में रहा और एक दो जाट मेरे अच्छे दोस्त बन गये। बोली का अक्खड़पन तो खलता था लेकिन उसके बाद जाटों के हृद्य में बसा अपार स्नेह सारी शिकायतें दूर भी कर देता था। जो भी जाटों का इतिहास जानता है, या मामूली तौर पर भी उनके बारे में समझ रखता है वो ये कह सकता है कि जो कुछ भी तीन दिन तक हरियाणा में हुआ उसे कम से कम उन जाटों ने नहीं किया जो हरियाणा की पहचान रहे हैं। खट्टर साहब जब आप हरियाणा के मुख्यमंत्री बनाए गये थे तो 80 फीसदी लोग चकित थे। जिन्होंने आपको सीएम के तौर पर स्वीकार किया उन्होंने आपका जीवन देखा था, इसलिये उम्मीद बंधी थी। जिस सादगी के साथ आपने एक स्वयंसेवक बनकर संघ के उद्देश्यों के लिये जीवन समर्पित कर दिया, आज वो उद्देश्य आपको चुनौती दे रहे हैं। हैरान हूं मैं इस बात से कि आपका खूफिया तंत्र किस ढाबे की अफीम खाकर सो रहा है? आपकी पुलिस के अफसर बुक्की मारकर कहां बैठे थे जो इतने बड़े षडयंत्र का पता नहीं लगा सके? मुझे तो इस बात पर शक हो रहा है कि हरियाणा का प्रशासन आपके साथ है या उन षडयंत्रकारियों के साथ जिन्होंने हरियाणा को कलंकित करने की कोशिश की है। क्या आपको दिख नहीं रहा कि जाट आंदोलन के नाम पर जो कुछ भी हुआ वो एक गहरी साज़िश है। अब या तो साज़िश आपके राजनीतिक दुश्मनों ने की है या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि इसमें आपकी भी सहमति रही हो? अब तक जो वीडियो और तथ्य सामने आ रहे हैं उनके आधार पर मैं ये कतई मानने को तैयार नहीं हूं कि एक घटनाएं स्वत: हो गईं। ये घटनाएं हो नहीं गईं बल्कि करवाई गई हैं। अब किसने करवाई ये पता करना आपका काम है। आपकी छवि कड़क नहीं है लेकिन आप हरियाणा की ढाई करोड़ जनता के मुखिया हैं आप...अगर समर्थ नहीं है तो शासन छोड़ दीजिये। आप अपने मंत्रियों के बयानों पर काबू नहीं रख पाते, अपने प्रदेश को जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई में समर्थ नहीं दिखते तो फिर आप शासन में क्यों हैं। बताईये कि आज जब मैं ये लिख रहा हूं तो आपके अफसर 72 गिरफ्तारियों का रिकॉर्ड दे रहे हैं। जो लोग गिरफ्तार हुए हैं उनका दमखम कुछ नहीं। बड़ी मछलियां आपकी पकड़ से दूर हैं। आपके राज्य में वो कुरुक्षेत्र की धरती आती है जहां धर्म के लिये नहीं न्याय के लिये युद्ध हुआ था। इसी धरती पर एक पीढ़ी खत्म हुई थी और दूसरी परीक्षित । अपने शासन को उदाहरण बना देने का अवसर इतिहास ने आपको दिया है। उठिये चाहे कोई भीष्म खड़ा हो आपके सामने आप अर्जुन बन जाइये। न्याय दीजिये उन लोगों को जिन्होंने तीन दिन तक खाडंवप्रस्थ की अग्नि से भी भीषण ज्वालाएं झेली हैं। उठिये मनोहर लाल खट्टर साहब इंसाफ कीजिए। दिनेश काण्डपाल, वरिष्ठ टीवी पत्रकार </span></div>
dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-89939161679976940722015-04-24T06:19:00.000-07:002015-04-24T06:19:24.155-07:00पाकिस्तान के लिये उम्मीद की किरण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
चीनी राष्ट्रपति जिस वक्त पाकिस्तान की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित
कर रहे थे उस वक्त पाकिस्तानी सांसदों के चेहरे पर एक उतावली नज़र आ रही
थी। संसद के फ्लोर से तकरीबन आठ फीट ऊपर शी जिनपिंग का आसन था और वहीं पर
भाषण देने का स्थान भी। पूरे प्रसारण के दौरान अनुवादक की समझ और समाचार
चैनलों पर प्रसारित होने लिखित समाचार ही शि जिनपिंग की बातों को समझ पाने
का माध्यम थे। जब भाषा समझ न आ रही हो तो ध्यान भावों पर जाता है। भावों के
ज़रिये उन अर्थों को समझने की कोशिश की जाती है जो सीधे संवाद से हासिल न
हो पा रहे हों। वहीं इस भाषण के दौरान भी हुआ। पाकिस्तानी सांसदो के चेहरे
पर उतावली की वजह समझने के लिये दिमाग पर ज्यादा ज़ोर लगाने की ज़रूरत नहीं
पड़ी। आमतौर पर भारतीय जनमानस जब पाकिस्तानी शासकों को देखता है तो उसके
दिमाग में केवल अविश्वास उत्पन्न होता है और कुछ नहीं। पुरानी पीढ़ी ने
1948, 65 और 71 कीं जंग देखी तो नई पीढ़ी ने करगिल देख लिया। अब जो नौनिहाल
हैं वो सीज़फायर के उल्लंघन और सैनिकों के सर काट लेने की खबरों से परिचित
होने लगे हैं। चीनी रष्ट्रपति के संबोधन के वक्त जो उतावली पाकिस्तानी
सांसदो के चहरों पर नज़र आ रही थी उसमे एक अलग अहसास नज़र आ रहा था। अपने
भाषण के दौरान चीनी राष्ट्रपति एक के बाद एक भावनाओं की चाशनी में लपेट कर
जलेबियां उतार रहे थे और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सांसद याचक भाव से उन्हें
विनय पूर्ण तरीके से प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने में लगे थे। तालियां अंतहीन
थीं, सो बजती रहीं। इस बार पाकिस्तानी शासकों में एक दूसरी तरह की बेचैनी
देखने को मिली। विकास और विस्तार के चीनी मॉडल में पाकिस्तानियों ने अपना
उज्जवल भविष्य तलाशने की कोशिशें की हैं। इस बार इन कोशिशों को जो पंख लगे
उनमें चीनी ड्रेगन की फुफकार तेज़ है। पाकिस्तान की नई पीढ़ी का एक बड़ा
तबका विकास के लिये छटपटा रहा है। वो दुनिया से वाकिफ है, पढ़ा लिखा है और
ये समझ रहा है कि तरक्की ही बेड़ा पार लगा सकती है, तालिबान नहीं। उसे इस
बात में कोई शक नहीं कि तालिबान एक दिन तरक्की के आगे हारेगा। नौजवानों ने
अपनी ताकत चाहे विचारों के ज़रिये हो या भुजाओं के, पूरे दक्षिण एशिया में
दिखानी शुरु कर दी है। विकास के लिये बेचैनी है। दुनिया में कुछ कर गुज़रने
की चाहत पाकिस्तानी नौजवानों को सही मोड़ दे रही है। इस चाहत का दबाव न
सियासतदानों पर भी साफ दिख रहा था जो चीनी राष्ट्रपति का भाषण सुन रहे थे।
आये दिन होने वाले बम धमाके, आतंकियों के फिदाईन हमले और उस पर भी पूरी
दुनिया के ताने। पाकिस्तान और उसका नौजवान ऊब रहा है। जिस मुल्क में पिछले
सात सालों से सुरक्षा की चिंता के चलते कोई विदेशी टीम क्रिकेट खेलने न गई
हो, जिस मुल्क में खुलेआम घूम रहे नेताओं पर अमेरिका ईनाम घोषित कर देता
हो, जिस मुल्क की फौजी छावनी के बीचों बीच तीन अमेरिकी हैलीकॉप्टर आकर
दुनिया के मोस्ट वॉंटेड आतंकी को मार कर उसकी लाश उठा ले जाते हों उस मुल्क
के नौजवान की गैरत उसे कचोटती नहीं होगी। कितना फीका पड़ जाता होगा वो जब
दुनिया उसे ताने मारती होगी। पेशावर के सौनिक स्कूल में हुए बच्चों के
कत्लेआम ने पाकिस्तान को आतंक में फर्क न करने की सख्त चेतावनी दी है।
पाकिस्तानी सियासतदान भले ही इन चेतावनियों को नज़र अंदाज़ कर दें लेकिन
वहां के लोग इसे समझ चुके हैं। वो अमन चाहते हैं। चीन ने भले ही भारत को
घेरने के लिये अपनी बिसात बिछाई हो लेकिन दुनिया भर में पिट चुके पाकिस्तान
को चीन ने जो मरहम लगाया है उससे वो न केवल खुद की चोटों के ज़ख्म भर सकता
है बल्कि अपने आत्मसम्मान को मिले घाव पर भी पट्टी कर सकता है। ये
पाकिस्तान के लिये गर्व का मौका है कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती
अर्थव्यवस्था उसे अपना भाई कह रही है। तमाम आतंकी खतरों से परिचित चीन उस
देश में 46 बिलियन डॉलर झोंक रहा है, उसे 5 अरब डॉलर की 8 पनडुब्बियां दे
रहा है।<br />
पाकिस्तान आज जहां खड़ा है वहां पर चीन ने उसका हाथ पकड़ा
है, पूरी दुनिया में डंका बजाकर पकड़ा है। ये हाथ अमेरिका ने उस वक्त पकड़े
थे जब वो अपनी महानता के प्रतीक दो टावरों की बलि दे चुका था और उसे
पाकिस्तान का इस्तेमाल करना था। इस्तेमाल तो चीन भी करेगा लेकिन यहां पर
शर्त दूसरी है। ये भावनात्मक मरहम है, चीन ने पाकिस्तान के सामने कोई धर्म
संकट भी खड़ा नहीं किया जैसा कि अमेरिका ने मुशर्रफ के सामने किया था कि
तालिबान के खिलाफ लड़ें या नहीं। यमन के खिलाफ सउदी अरब की बात ठुकराकर
पाकिस्तान ने जो जोखिम मोल लिया था उसे भी चीनी दोस्ती ने काफी हद तक कम कर
दिया है। <br />
पाकिस्तान के घावों पर मरहम लगाकर चीन ने अपने
शिंजियागं जैसे मुस्लिम बहुल प्रांत में आये दिन होने वाली हिंसा को भी
थामने की कोशिश की है।<br />
ये समझौते पाकिस्तान की किस्मत बदल सकते हैं
बशर्ते पाकिस्तान के सियासतदान इसका मोल समझें। संसद भवन के हॉल में याचक
मुद्रा में बैठे सांसद अगर वाकई विकास के लिये गंभीर हैं तो उन्हें आगे
बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। पाकिस्तान में शांति आ गई तो फायदा भारत को भी
हो सकता है। <br />
दिनेश काण्डपाल<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrxerhGDicLhcRukMJ0sybEGP8Bv3uZrwt5JqSMhck97KcDM5lkUuUC9t2qy_58a2oGCgbksmqqcklo2J7QRO3g-iT9LThmR_Lx60vvB9sQPEoFuYrJixK2gpE6ipnuXf9ZIIAINA8n1s/s1600/xinping+and+nawaz.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrxerhGDicLhcRukMJ0sybEGP8Bv3uZrwt5JqSMhck97KcDM5lkUuUC9t2qy_58a2oGCgbksmqqcklo2J7QRO3g-iT9LThmR_Lx60vvB9sQPEoFuYrJixK2gpE6ipnuXf9ZIIAINA8n1s/s1600/xinping+and+nawaz.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
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dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-13557397428747320692015-04-24T06:13:00.003-07:002015-04-24T06:13:53.442-07:00A Ray Of Hope For Pakistan<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
Chinese President Xi Jinping addressed Pakistan’s joint parliamentary
session and the expression of eagerness on the faces of Pakistan’s
parliamentarians was evident. When the speaker and audience don’t share
the same language of communication, the instant medium of communication
are expressions and body language. And this speech of Xi Jinping showed
how the parliamentarians listened to it eagerly despite of the fact that
they had to wait for translation of the speech. It is not very
difficult to understand the reason of the interest shown by the
Pakistan’s parliamentarians. People in India often have this feeling of
mistrust for Pakistani rulers. Indians still have the memories of 1948,
1965 and 1971 war and the Kargil war is still fresh in the minds of
people of India. Still we witness the news of ceasefire violations and
beheading of Indian soldiers by Pakistan army. <br /> Chinese president Xi
Jinping’s speech surely was as expected full of promises and it was
welcomed very warmly. Pakistan and China being old allies the
expectations of people of Pakistan were natural. Pakistan facing a state
of limbo with violence and terrorism, due to its security problems the
dates of Xi Jinping’s visit were also not made clear. The visit of the
Chinese president happened at a point where Pakistan has shown its
interest in development and tackling violence.<br /> In the Chinese model
of development and growth Pakistan is looking for hope for itself.
Pakistan’s youth is looking towards development, the youth is educated,
is wanting to connect with the world and understands that development
and not Taliban can be the way ahead. The youth of Pakistan who have
been brought up in a country which has been tarred with years of
fundamentalism and violence now understands that Taliban can be defeated
by development. And the educated Pakistani young men and women are
proving themselves in South East Asia and international arena. The urge
to make life better in Pakistan now people are having their outlook
changed and eventually this change reflected upon the parliamentarians
response who were present at the Chinese president Xi Jinping’s address
to the joint session of parliament. <br /> Pakistan has not only been
afflicted by internal violence, terrorist attacks and suicidal attacks
but all this has taken its toll on its reputation internationally. The
people are now tired. A country where security is so feeble that in last
seven years no international cricket team has agreed to play here, in a
country America declares prize money on local leaders, in a country
where American marines target the cantonment area to kill and pick up
the dead body of world’s most wanted terrorist without informing local
administration. The youth of this country must be craving for some self
respect. The attack on Peshawar’s school has taught Pakistan to stop
differentiating between good and bad Taliban. The government may ignore
the lesson but the people of Pakistan seem to have finally arrived to
the point where they wish for peace.<br /> Coming to Chinese strategy of
encricling India, china here has once again given Pakistan much needed
support when it has got aloof internationally. With the renewed Chinese
warmth Pakistan can feel a little high in its self esteem. Xi Jinping’s
saying, coming to Pakistan was like coming to a brother’s home, was a
proud moment for Pakistan. Despite dangerous security threats looming
around China has agreed to invest 46 billion dollars and give 8
submarines costing 5 billion dollars.<br /> Pakistan has been listed as
one of the most dangerous countries in the world. China decided to hold
Pakistan’s hand when it was getting lonelier. From the days when
Pakistan was United States of America’s key ally in fighting terrorism
after the World Trade Centre attack to the present situation where
America has betrayed Pakistan, the country has seen a lot of violence.
China will also have Pakistan playing a role in fulfilling its ambition
but there always has been an emotional quotient playing in the relations
of both the countries. <br /> Pakistan’s denying help to Saudi Arab in
the fighting against Yemen rebels had its own fall outs but China’s
support has given Pakistan a new confidence.<br /> With Xi Jinping’s visit to Pakistan China also expected to tackle situation of violence in Xinjiang province.<br />
Renewed Chinese support can change Pakistan’s destiny if government
understands its importance and use it carefully and constructively. If
Pakistan benefits from the Chinese help and bring peace to its people,
India will also be a beneficiary of that peace.<br /> Dinesh Kandpal<br /> Kandpal.dinesh@gmail.com<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-19896058538376312502015-04-09T06:49:00.002-07:002015-04-09T06:49:44.481-07:00ये टीवी और ट्विटर की जंग है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह के Presstitutes वाले बयान पर मचे बवाल और टीवी चैनलों की बहस में ट्विटर कहीं आगे निकल गया। ट्वीट्स की संख्या के आधार पर जनरल के समर्थक टाइम्स नाउ और अर्णब गोस्वामी पर हर तरह की फब्तियां कसने की छूट लेने लगे। कई उत्साहि ट्वीटिये तो ये दावा करने लगे कि टाइम्स नाउ के एडिटर अरण्ब गोस्वामी ये जंग हार चुके हैं इसलिये उन्हें अब माफी मांग लेगी चाहिये। <br /><br />दरअसल शुरुआत टाइम्स नाउ ने जनरल वी के सिंह के उस बयान से की जिसमें उन्होंने यमन के रेस्क्यू ऑपरेशन और पाकिस्तानी हाईकमीशन में अपने दौरे की तुलना की। कई जनरल समर्थक प्रेक्षक ये मानते हैं कि वीके सिंह इस बात से आहत थे कि भारत सरकार, नेवी और एयरफोर्स के शानदार काम को मीडिया तवज्जो नहीं दे रही थी इसलिये ये एक व्यंगात्मक बयान था, लेकिन टाइम्स नाउ ने इस भावार्थ में जाने की कोई ज़रूरत न समझते हुए अपने संपादकीय विवेक का प्रयोग किया। नतीजा हम सबके सामने था। टाइम्स नाउ चैनल और उसके ट्विटर हैंडल से जनरल पर एक के बाद एक वार होने लगे। जनरल साहब पता नहीं कब के खार खाये हुए बैठे थे..सो उन्होंने देखा कि देश का माहौल उनके अनुकूल है, पीएम साहब विदेश जाने वाले हैं, उनके खिलाफ बोलने वाला भवनात्मक रूप से पिट जाएगा इसलिये उन्होंने ट्वीट दाग दिया।<br /><br />जनरल साहब तो जनरल बने ही इसलिये कि सही मौके पर चोट कर सकें सो उन्होंने कर दी। अब इस बार चोट का निशाना सीधे अर्ण गोस्वामी थे। बाकयादा नाम लेकर ट्वीट किया। जो नहीं भी देखता उसे उकसा दिया। एकदम गाइडेड मिसाइल ट्वीट दागा जनरल साहब ने, सो बवाल मच गया। देखते ही देखते टीवी पर स्पेशल सीरीज के साथ साथ ट्विटर पर भी मोर्चे खुले। जनरल साहब को पता था कि किस मोर्चे पर वो मज़बूती से डटे रहे सकते हैं सो उन्होंने वही मोर्चा खोला।<br />टीवी पर बयान देने के लिये वो उपलब्ध नहीं थे। जिबूती और सना के बीच में कोई पत्रकार उन्हें दौड़ा नहीं सकता था इसलिये जनरल साहब ने दूर से ही खेल किया। ट्वीट दागा..यहां तो बारूद था ही फट पड़ा...। जनरल साहब का काम बन गया। अर्णब इस बार जनरल के मोर्चे पर फंसते दिखाई दिये। उन्होंने एक हैश टैग शुरु किया, #AbsusiveMinister. ये थोड़ा माइलेज लेने ही वाला था कि जनरल के समर्थन में नया हैशटैग आ गया #HatsOffGeneral..अब लड़ाई के लिये यही मोर्चा सैट हो गया। अर्णब को अपनी टीवी बिरादरी से उतना समर्थन नहीं मिला जिसकी वो उम्मीद कर रहे थे, सो जनरल साहब के समर्थकों का हमला भारी पड़ने लगा। आज दिनांक 9 अप्रेल 2105 की सुबह 11 बजे तक 1 लाख 12 हज़ार से ज्यादा लोग #HatsOffGeneral पर ट्वीट करके वी के सिंह को अपना समर्थन दे चुके थे। <br /><br />ये लड़ाई चल ही रही थी कि #Presstitutes हैश टैग ने धमाल मचा दिया। इस हैश टैग पर एक नारा वीके सिंह के समर्थन में लगता तो दूसरी गाली मीडिया को पड़ रही थी। जिसके दिल में जो आया उसने वही लिखा। ट्विटर की इस जंग में मीडिया को जितनी गालियां इस बार पड़ी हैं उतनी मैने कभी नहीं देखी। जनरल ने मोर्चा खोला था..वो उसमें विजयी दिखाई देने लगे। बीजेपी पहले ही पल्ला झाड़ चुकी है, प्रधानमंत्री 9 दिन के लिये बाहर हैं वो तो फुटेज खायेंगे ही। <br /><br />कुल मिलाकर टीवी न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया के बीच कड़ी प्रतिद्वन्दिता की शुरुआता का ये एक बेहतरीन नमूना था। टीवी न्यूज़ चैनल्स ने कई बार ऐजेंडा सैट करके बढ़त लेने की कोशिश की है लेकिन 24 घंटे के अंदर 2 लाख से ज्यादा लोगों का ट्विटर पर समर्थन हासिल करना जनरल वीके सिंह का कौशल ही है। <br />और एक बात ट्विटर पर पूरी बातचीत के दौरान बात पूरी भारतीय मीडिया की होती रही, किसी ने भी टीवी या अखबार में फर्क नहीं किया और ये भी लिखा की ये मीडिया वाले हमें अब मूर्ख नहीं बना सकते। ये विचार खतरनाक नहीं है?<br /><br /></div>
dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-56228027844324101982015-02-10T05:29:00.002-08:002015-02-10T05:29:48.670-08:00दिल्ली का वट वृक्ष क्यों रोया ????<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अहंकारो के पर्वतों को ध्वस्त करके धूल उड़ाता एक परिणाम..आहलादित कर
देने का एक अवसर है..अवसर की विवेचना सबके लिये नूतन सी है..एक वो जिनके
मस्तक पर वर्षों के तप और संघर्ष से दीप्त हुआ तेज रहता था एकाएक मानो गहन
अंधकार और दुर्गंध से भर गया है...वनस्पति विज्ञान में विधा है..कलम लगाने
की..ये कलम इसलिये लगाई जाती है कि नये और रचनात्मक रस लिये हुए फल प्राप्त
हों..लेकिन उस पर जड़ों में कोई आघात नहीं किया जाता..कलम को पौधें की एक
शाख से ही जोड़ा जाता है..यहां तो दिल्ली के वट वृक्ष को <span class="text_exposed_show">बीच
से काटकर कलम लगाने की कोशिश की गई..जड़ें तो कभी बुरा नहीं मानती लेकिन
ये तने रूठ गये..ऊपर से पानी बरसता रहा लेकिन उसे पहले जड़ें और फिर तने ही
तो फूल पत्तियों तक पंहुचाते हैं..सो वो नहीं पंहुचा पाये..पंहुचाना ही
नहीं चाहा..उद्यान जिसके निर्देशन में था वो इस संयोग से खुश था कि कोई हल
चला गया, किसी ने पानी दे दिया और कोई खाद डाल देगा...गहन कुंभकर्णी
नींद..ये निद्रा उस अचेत अवस्था से बुरी थी..जो किसी प्रहार से मूर्छित
होने के बाद होती..यहां तो सफलता ने मूर्छित कर दिया..लेकिन प्रकृति का
न्याय देखिये..सत्ता का संतुलन हाथों हाथ हो गया..दंभ कभी नहीं टिका..आज
क्या टिकता..बरगद की पुरानी जड़ें उन नन्हे कोपलों के लिये आंखों से नीर
बहा रही हैं जो कल इस उद्यान में नये वृक्ष बनकर सुगंध फैलाते...लेकिन माली
के गलत फैसलों ने वृक्ष पर इतना गहरा प्रहार किया कि जड़, तने सब विश्वास
खो बैठे...</span><br />
<div class="text_exposed_show">
इस दंभ ने एक
स्वप्न का भी संहार कर दिया...और अब वर्षों से चले आ रहे यज्ञ में स्वयं
विध्वंस की आज्ञा सी दे दी। उन स्थानो का भाग्य सदा अश्रु बहाने के लिये
होता है...ये इतिहास में पढ़ा था..अब भोग कर साक्षी बन रहे हैं...कुछ कुछ
द्वापर युग के महाभारत का स्मरण हो जाता है..जब द्यूत में अहं युद्धिष्ठिर
की बुद्धि को भ्रमित कर बैठा और उसने द्रोपदी को दांव पर लगा दिया...फिर
क्या था..ले आये दु:शासन द्रौपदी को भरी सभा में..प्रजाजनों ने भी आनंद सा
ही लिया...कौन क्या करता...अपराध धर्मराज ने किया था...बांसुरी वाले मोहन
आये और अपना कर्तव्य पूरा कर गये...<br />
कहानी तो इससे आगे भी है...आपको
पता भी होगा...लेकिन ये बालुकामय पुलिन..उड़ उड़ कर आंखों पर पड़ते
रहे..राजा प्रजा सब इससे पार पाने का कोई उपाय न खोज सके..हाथों में मिर्च
लिये द्यूत अट्टाहस करता रहा..प्रजा आनंद प्राप्त करती रही...बादलों के बीच
नगर बसाने की कल्पना से भला कौन अपना तप नहीं छोड़ देगा...धरातल का कोई
मोल नहीं था, बादलों का महल किसे नहीं चाहिये...सो वो मिल रहा
था...कल्पनाओं के सागर में हिलोरें ले रही प्रजा को ..द्यूत ने पलटने का
मौका नहीं दिया..द्यूत मौका देता भी नहीं है...सो परिणाम आ गया.. <br />
अब राजा प्रजा से खफा है...अपने मंत्रियों से भी..वो सोने की तैयारी तो नहीं कर रहा?</div>
</div>
dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-29527553337513866122014-12-08T05:16:00.000-08:002014-12-08T05:16:49.305-08:00टुट गई तड़क कर के<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गुरदास मान का गाया एक प्रसिद्ध गीत है....लाई बेकदरां नाल यारी..टुट गई तड़क कर के। 5 दिसंबर की रात दस बजे दुनिया की नामी कंपनी की टैक्सी ने लड़की को कार में बिठाया, कार में बिठाने के दस मिनट के बाद ही उसके साथ रेप किया, उसके घर के पास उतारा और रफूचक्कर हो गया। लड़की ने शिकायत की पुलिस हरकत में आई और जब आरोपी की पड़ताल हुई तो पुलिस के होश उड़ गये।<br />
आरोपी दिल्ली ही नहीं दुनिया की नामी कंपनी में ड्राइवर था, उसका कोई पुलिस वैरिफिकेशन नहीं करवाया। आरोपी शिव कुमार यादव पर<br />
साल 2011 में महरौली थाने में केस दर्ज हो चुका था, दिल्ली पुलिस के पास उसका क्रिमिनल रिकॉर्ड था बावजूद इसके उबर कंपनी ने उसका कोई वैरिफिकेशन नहीं करवाया, यही लापरवाही थी कि उसे नौकरी मिली, हद तो तब हो गई जब ये पता चला कि इसी साल मई में दिल्ली के एडिशनल डिप्टी कमिशनर ने उसको एक चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया जिसमें ये कहा गया कि शिव कुमार यादव के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस दर्ज नहीं है। घोर लापरवाही की दो मिसालें।<br />
ये लापरवाही उस दिल्ली एनसीआर में हुई है जहां ठीक दो साल पहले रेप की एक वारदात ने पूरी दुनिया को दहला दिया। दुनिया भर के नियम कायदे पहले बनाये गये फिर लागू कर दिये गये, लेकिन सुरक्षा का आलम फिर इस पांच दिसंबर को सामने आ गया। थोड़ा गहराई में जायें तो पता चलेगा कि नये नियम कायदे बन तो गये लोकिन वो बेअसर हैं, उनसे कोई नहीं डरता और जो डरता है वो ये बात भली भांति जानता है कि इन नियम कायदों को तोड़ा कैसे जाता है।<br />
दिल्ली पुलिस के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर से एक सर्टिफिकेट जारी होना जो खास तौर पर ये तस्दीक करता हो कि शिव कुमार का कोई आपाराधिक रिकॉर्ड नहीं है कई सवाल खड़े कर रहा है। दिल्ली पुलिस के इस तरह के सर्टिफिकेट किस आधार पर जारी करती है? इस सर्टिफिकेट को जारी करने से पहले क्या पूरी जांच की जाती है या फिर उस दफ्तर में भी सर्टिफिकेट बनाने वाले दलालों ने अपना जाल बिछा रखा है जो रुपये लेकर चरित्र प्रमाण पत्र दिलवा देता है? सवाल गंभीर है अगर सर्टिफिकेट सही तो दिल्ली पुलिस की बड़ी जिम्मेदारी बनती है क्योंकि अगर उबर कंपनी आरोपी शिव कुमार से सर्टिफिकेट मांगती भी तो एडिशन डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर से जारी सर्टिफिकेट कंपनी को प्रारंभिक तौर पर संतुष्ट करने के लिये काफी है।<br />
हालांकि इससे कंपनी की जिम्मेदारी कहीं भी कम नहीं होती। जिस गाड़ी में वारदात हुई वो आरोपी के नाम पर रजिस्टर्ड है, दिल्ली में जिस पते पर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन है उसका भी पता नहीं। दुनिया की नामी कंपनी की गाड़ी में जीपीएस नहीं है जो हैरान करने वाली बात है। कंपनी की लापरवाही का आलम ये है कि ड्राइवर का कोई वैरिफिकेशन तक नहीं हुआ।<br />
लापरवाही की ये दो मिसालें तब आई हैं जब दिल्ली दुनिया के सबसे वीभत्स रेप कांड की गवाह बन चुकी है, तब भी सबसे ज्यादा बदनामी उसी दिल्ली पुलिस की हुई जिकसे अफसर ने आज ये सर्टिफिकेट जारी किया, और दूसरी तरफ बड़ा आरोप फिर एक ट्रांसपोर्ट कंपनी और उसके ड्राइवर पर आया। दोनों ही कांडों में गाड़ी और गाड़ी का स्टाफ।<br />
दिल्ली पुलिस ने उस वक्त ट्रांसपोर्टर्स को कसमें दिलवाईं और व्यापारियों ने कसमें खाईं..लेकिन सुरक्षा हवा हवाई हो गई। किसी ने कदर नहीं की न नियमों की न कसमों की..शायद इसी लिये गुरदास मान का गीत ठीक ही है कि लाई बेकदरां नाल यारी, टुट गई तड़क करके......<br />
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dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-78818258321036918842014-10-08T21:59:00.002-07:002014-10-08T21:59:58.089-07:00पाकिस्तान की खुजली का बाम है बम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
पाकिस्तान के ज़ख्मों पर जब जब खुजली होती है वो उन्हें नोचने लगता है। ये ज़ख्म कुदरती हैं। ठीक वैसे ही जैसे किसी बच्चे को पैदाइशी रोग होता है। कुछ रोगों का इलाज हो जाता है लेकिन अधिकांश पैदाइशी रोग लाइलाज होते हैं। उनका अन्त मृत्यु के साथ ही हो पाता है। पाकिस्तान जब जब अपने ज़ख्मों को नोचता है तब तब वो भारत पर हमले करता है। पहले ये हमले आमने सामने होते थे..1971 के बाद हमले साये में होने लगे। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
हाल फिलहाल के दिनों में नियंत्रण रेखा और अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर हो रही गोलीबारी उसी खुजली का नतीजा है। इस ज़ख्म को पाकिस्तान इतनी बार खुजला चुका है कि वो उसके लिये नासूर बन चुका है। उसे इस ज़ख्म का इलाज ही खुजलाने में नज़र आता है। ये कहावत सब जानते हैं कि वक्त कई बार ज़ख्मों को भर देता है, लेकिन उसके लिये भी शर्त ये होती है कि ज़ख्म खुजलाये न जांय। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
भारत से अलग हुआ पाकिस्तान जिस मकसद से जीता है उसे हिंदुस्तान में बैठकर समझना थोड़ा मुश्किल है। पाकिस्तान की संरचना का आधार ही अलग है। वो अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने वाले देश से ज्यादा भारत को परेशान करने वाले एजेंडे को अपनी राष्ट्रीय पहचान बना चुका है। उसकी सांसे तब तक चलती हैं जब तक उसकी ज़मीन से भारत के खिलाफ उथल पुथल की या तो साज़िश हो रही हो या फिर गोलाबारी। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
तय मान लीजिये इसमें पाकिस्तान की सियासत का कोई कसूर नहीं है। बिलावल भुट्टो कशमीर पर बयान देकर कितना ही अपना मज़ाक उड़ावा लें लेकिन पाकिस्तान के किसी नेता की ये ताकत ही नहीं कि वो कशमीर ये भारत के साथ अपने रिश्ते के बारे में कोई फैसला ले सके। अगर ये संभव होता तो ताशकंद, शिमला और लाहौर के घोषणा पत्र पाकिस्तानी सरकार के दफ्तरों में धूल नहीं खा रहे होते। इस बार संयुक्त राष्ट्र के अपने संबोधन में ही नवाज़ शरीफ कह चुके हैं कि अब शिमला समझौता कोई समाधान नहीं देता इसलिये उससे आगे बढ़ा जाय। अगर किसी समझौते की बारीकियों में न जाना चाहें तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा और उसके बाद करगिल के युद्ध का प्रत्यक्ष उदाहरण ले लीजिये। यही बात शिमला समझौते के तुरंत बाद भी दोहराई जा सकती थी, लेकिन उस वक्त पाकिस्तान के पास इतनी हिम्मत नहीं बची थी। ताशकंद के बाद देख लीजिये 1965 में समझौता हुआ और 1971 में वो फिर लड़ाई के लिये तैयार था। पाकिस्तान पाई पाई जोड़ता है, विदेशी ताकतों से अपना रोना रो रो कर पैसा ऐंठता है और जो कुछ बच जाता है उसे भारत के खिलाफ झोंक देता है। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
पाकिस्तान की सेना वहां की विदेश और रक्षा नीती को इस तरह से कस कर पकड़ के रखा है कि पाकिस्तान के सियासतदां लाख सर पटक लें लेकिन वो सेना के इस चंगुल से नहीं छूट सकते। अगर पाकिस्तान की सियासत के सबसे ताकतवर नेता का नाम लेना हो तो मुहम्मद अली जिन्ना के बाद जुल्फीकार अली भुट्टो का ही नाम ज़ेहन में आता है। ये वही भुट्टों हैं जिन्होंने 1971 में पाकिस्तान की कमर टूटने के बाद शिमला में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री से समझौता किया और दूसरे ही दिन सेना के दबाव में उससे मुकर गये। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
अब तो पाकिस्तान परमाणु शक्ति संपन्न देश है इसलिये भारत और पाकिस्तान के बीच किसी निर्णायक युद्द की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। कुछ विश्लेषक तो यहां तक मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच के संघर्ष का अंत आने वाली कुछ पीढ़ियां तो नहीं देख पायेगी। इस संघर्ष का अंत बड़े बदलाव से शुरु होगा। ये बदलाव तब होगा जब पाकिस्तान की सेना उनके प्रधानमंत्री का सम्मान करेगी। जब वहां भारत के विरोध को राष्ट्रीय एजेंडे से हटा कर अपने विकास का एजेंडा बनाया जाएगा। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
उम्मीद की जाय की ये पीढ़िया इस बदलाव की करवटें तो देख ही लें। आखिर दोनों तरफ इंसान ही बसते है। </div>
</div>
dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-84603748362515697812012-06-29T06:56:00.001-07:002012-06-29T06:56:58.080-07:00बेटी की विदाई के समय गिदारों द्वारा गए जाने वाला कुमांऊनी संस्कार गीत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
</div>
(1)
बेटी की विदाई के समय गिदारों द्वारा गए जाने वाला कुमांऊनी संस्कार गीत -------
हरियाली खड़ो मेरे द्वार , इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी |
छोडो -छोडो ईजा मेरी अंचली,छोडो -छोडो काखी मेरी अंचली ,
मेरी बबज्यु लै दियो कन्यादान , मेरा ककज्यु लै दियो सत्यबोल ,
इजा मेरी पैलागी |
इजा मेरी पैलागी |
छोडो -छोडो बोजी मेरी अंचली , छोडो -छोडो बहिना ,मेरी अंचली ,
मेरे भाई लै दियो कन्यादान , मेरे भिना लै दियो सत्यबोल,
इजा मेरी पैलागी |
इजा मेरी पैलागी |
छोडो -छोडो मामी मेरी अंचली , मेरे मामा लै दियो कन्यादान ,
इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी |.......................................................
(2)
बेटी की विदाई के समय का कुमांऊनी संस्कार गीत _
काहे कि छोडूँ मैं एजनी पैजनी काहे कि लम्बी कोख ए ?
बाबु कि छोडूँ मैं एजली पैजली माई कि लम्बी कोख ए |
काहे कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , काहे कि रामरसोई ए ,
भाई कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , भाभि कि रामरसोई ए |
छोटे - छोटे भाईन पकड़ी पलकिया हमरी बहिन कांहाँ जाई ए ,
छोडो - छोडो भाई हमरी पलकिया , हम परदेसिन लोक ए |
जैसे जंगल की चिड़ियाँ बोलै , रात बसे दिन उडि चलै ,
वैसे बाबुल का घर हम धिय सोहें , रात बसे दिन उडि चलै |
बाबुल घर छाडी ससुर का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए ,
भाईन घर छाडी जेठ का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए |
माई कहे बेटी नित उठि अइयो, बाबु काहे छट मास मे,
भाई कहे बैना काज परोसन ,भाभि कहे क्या काज ए ||
( कुमांऊँ का लोक साहित्य )</div>dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-79629515183328404752012-01-22T01:04:00.000-08:002012-01-22T01:07:50.510-08:00आत्मसम्मान की लड़ाई पर सरकारी हथौड़ा<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGqlnZKqsoCZQl1ZgCLeD5owfPIYV9uWaZi8_BxzKE4kW6neYloHXYTIrQxsrFLQmw96bHLsSQkGjJvGiNyOehzLKZ6uXbKkIFitUcwsS6YzrUnssfUpH9kq83JLoRxEWxWgujSeg3xxw/s1600/Gen+V+K+Singh.bmp"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 300px; height: 294px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGqlnZKqsoCZQl1ZgCLeD5owfPIYV9uWaZi8_BxzKE4kW6neYloHXYTIrQxsrFLQmw96bHLsSQkGjJvGiNyOehzLKZ6uXbKkIFitUcwsS6YzrUnssfUpH9kq83JLoRxEWxWgujSeg3xxw/s320/Gen+V+K+Singh.bmp" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5700380377577784306" /></a><br /><br />दिनेश काण्डपाल<br /><br />भारत के इतिहास में पहली बार सेना के जनरल ने सरकार को सरेआम चुनौती दी है। थलसेना प्रमुख जनरल वी के सिंह अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन दूसरा पक्ष इस पर अनुशासन की दलीलें देकर असली मुद्दे को भटकाना चाहता है। अपनी जन्मतिथि के बारे में जनरल सिंह अपनी कई बार सेना को लिख चुके थे लेकिन इसका समाधान नहीं हो पाया। अब कई स्वार्थों की वजह से वी के सिंह को निशाना बना कर न केवल उनकी गरिमा बल्की सेना के मनोबल को भी दांव पर रखा जा रहा है, ज़ाहिर है ये सब सरकार कर रही है कोई दूसरा नहीं। <br /><strong><strong>क्यों निशाना बने हैं जनरल</strong></strong><br />इस कहानी के पीछे वही आदत है जिस आदत ने छोटे स्वार्थों की खातिर कई बार देश के सम्मान को दांव पर रखा है। अन्दर की कहानी ये है कि जनरल सिंह की जन्मतिथि को अगर 1951 मान लिया जाय तो सरकार के कुछ चहेते जिन्दगी भर वो हासिल नहीं कर पाएंगे जो उन्हें वी के सिंह की इज़्जत उतारने के बाद अभी मिल जाएगा। यहां पर याराना भी है और कमज़ोरी भी। जनरल सिंह को इसलिये भी पसंद नहीं किया जाता है क्योंकि वो वैसा कुछ नहीं करते जो सरकार के ही हित में हो। आदर्श सोसाईटी घोटाले में जिस तरह से सेना प्रमुख ने सक्रियता दिखाई वो कई रहनुमाओं को पसंद नहीं आया लेकिन उस वक्त उनके हाथ बंधे थे। जिस तरह से सुकना ज़मीन घोटाले में लेफ्टिनेंट जनरल अवधेश प्रकाश का कोर्ट मार्शल हुआ उस पर भी तकलीफ तो कई दिलों को हुई लेकिन वीके सिंह का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका। अपने कार्यकाल में जिस तरह से जनरल वी के सिंह ने साहस के साथ निर्णय लिये है वो कुर्सियों को जागीर समझने वालों के लिये बैचेनी पैदा कर रहे हैं। यही बैचेनी सेना प्रमुख को घेरने की कोशिशों में लगी है। <br /><strong><strong>चीफ ने क्या किया ?</strong></strong><br />वी के सिंह को जब जन्म तारीख की विसंगतियों का पता चला कि उन्होंने उसी दिन से चिठ्ठी लिखनी शुरू कर दीं। सैनिक जीवन में अनुशासन का घोटा पी चुके जनरल के पास इसस् ज़्यादा करने के लिए कुछ था भी नहीं। यहां पर अब हैसियत बदल चुकी थी। एनडीए का ये कैडेट अब सेना प्रमुख है और सरकार उन्हें इस तरह बदनाम कर रही है मानो उन्होंने इरादतन अपनी उम्र छिपा कर फायदे लिये हों। ये मुद्दा एक इंसान के आत्मसम्मान का बन चुका था। 13 लाख सैनिकों के फौज की अगुवाई करने वाले जनरल पर इस तरह की बातें करने वाली सरकार ने एक पल के लिए भी उनके मनोबल के बारे में नहीं सोचा। इस विवाद के बाद भी कोई कदम बढ़ाने से पहले सिंह ने भारत के तीन मुख्य न्यायाधीशों से राय ली और सबने उनके पक्ष में सलाह दी। <br /><strong><strong>अब क्या होगा ?</strong></strong> <br />ज़ाहिर है सरकार के पास ताकत है साधन हैं और बदनीयति भी है। जनरल वी के सिंह को इस बात के लिए मजबूर कर दिया जाएगा कि वो मई तक रिटायर हो जाएं और सरकार के फैसले को मान ले। दूसरा रास्ता जनरल के पास तो है लेकिन वो स्वाभिमानी व्यक्ति होने के साथ साथ इस बात का ख्याल रखने वाले भी हैं कि सरकार के साथ किसी भी तरह का क़ानूनी विवाद आगे ग़लत परंपरा को जन्म दे सकता है। इस परिस्थिति में विक्रम सिंह अगले थल सेना प्रमुख बनेंगे और उनको को तैयार रहने के संकेत दिये जा चुके होंगे। अगर जनरल वी के सिंह मई 2012 तक रिटायर नहीं होंते हैं तो विक्रम सिंह थल सेना प्रमुख नहीं बन पाएंगे। <br /><strong><strong>अब माफी का मतलब ?</strong></strong><br />जनरल वी के सिंह की उम्र विवाद के लिये जिस तरह से रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने माफी मांगी है वो भी संकेत है कि सरकार को मामले की गंभीरता का पता तो था लेकिन अपनी गोटियां फिट हो जाने तक वो चुप रही और तमाशा होता रहा। क्या रक्षा मंत्री का वक्त पर किया गया एक फोन थल सेनाअध्यक्ष के साथ हुए इस हादसे को जनता के बीच जाने से नहीं रोक सकता था। अब माफी का मतलब है कि चिड़िया खेत चुग चुकी है। देश ने एक गलत उदाहरण देख लिया है और ये भी देख लिया है कि छोटे स्वार्थों के लिये सरकार किस हद तक जा सकती है।<br /><br />ये विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। इसमें से क्षेत्रवाद और निजी पसंद की बू भी आती है। ये एक बड़े वर्ग की साज़िश का भी संकेत है जो ज़ाहिरा तौर पर देश के लिये ठीक नहीं है।dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-30398483493479528842011-05-03T05:44:00.000-07:002011-05-03T05:46:55.399-07:00पोस्ट लादेन नया बाज़ारदिनेश काण्डपाल<br /><br />लीबिया में गद्दाफी के बेटे के मारे जाने के बाद जो प्रतिक्रिया आई उससे एक आतंक फैला, ये आतंक अमेरिकी नीतियों की देन समझा जाने लगा। आतंकित अमेरिका ने इसी वक्त ओसामा बिन लादेन को मौत की नींद सुला दिया। अमेरिकी नौसेना की सील्स कमांडो जिस तरह 40 मिनट में ऑपरेशन पूरा करके निकल गये वो तत्परता बाज़ार पर आतंक फैलाने में भी दिखाई जा रही है। नाटो जिस तरह से लीबिया में कारवाई कर रहा है उसे सही ठहराने वाले लोगों की तादात कम होती जा रही है। नाटो की कारवाई पर रूस और चीन का कड़ा विरोध उन लोगों के लिए चिन्ताएं पैदा कर रहा था जिनको लीबिया और उसके आस पास अपना साम्राज्य खड़ा करना था। ये बाज़ार का साम्राज्य होने वाला था। <br />बाज़ार के इस टकराव को हर कोई समझ रहा है। रूस के प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन की तल्ख टिप्पणियां ये बता रही हैं कि उनका विरोध न केवल स्पष्ट है बल्कि टकराव पैदा हो सकने की स्थिति के लिए भी वो तैयार हैं। पुतिन ने कहा कि लीबिया को उड़ान प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित करना एक मध्ययुगीन फैसले जैसा है। पुतिन ने सवाल खड़े किए कि वहां बम क्यों बरसाए जा रहे हैं। ये कैसा उड़ान प्रतिबंधित क्षेत्र है जहां रात में नाटो के जहाज बम बरसा रहे हैं। चीन के सान्या शहर में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में जो साझा घोषणा पत्र तैयार हुआ उसमें भी लीबिया पर नाटो के हमलों की आलोचना की गई। यूरोपीय संघ इस पर हैरान था तो संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत सूजेन राइस ने जिस तरह लीबिया में बलात्कार का मामला उठाया उस पर ज़्यादातर कूटनीतिज्ञ मान रहे थे कि ये रूस और चीन को लक्ष्य करके दिया गया बयान है। <br />जिस वक्त गद्दाफी ने लीबिया की कमान सम्हाली उस वक्त वहां पर 13 प्रतिशत साक्षरता थी जो अब 93 फीसदी हो गई है। लोकिन पढ़ लिख चुके लीबिया के नागरिको को नया बाज़ार गद्दाफी ने देखने नहीं दिया। गद्दाफी ही नहीं इस लिस्ट में शावेज भी हैं जो कई धनकुबेरों की नज़रों में खटक रहे हैं।<br />बाज़ार के पुजारी हर परिभाषा में मसीहा और आतंकी में कोई फर्क नहीं करते। किसी का मसीहा उनके लिए किसी भी पल आतंकी हो सकता है, और उनकी दुकान का शटर उठाने वाला राजा बनने का नाटक कर लेता है। पोस्ट लादेन बाज़ार के ये समीकरण भी बदलने जा रहे हैं।dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-44675649205755797742010-07-25T01:05:00.001-07:002010-07-25T01:28:39.882-07:00खट्टा मीठा बुरी फिल्म हैपहले माफी मांग लेता हूं क्योंकि प्रियदर्शन की फिल्मों का इतिहास इतना बुरा नहीं है जितनी बुरी फिल्म खट्टा मीठा बनी है। एकदम बकवास, कोई कहानी नहीं, कोइ संवाद नहीं, हंसाने के बेहूदा और बासी फॉर्म्यूले। फिल्म देखे हुये बारह घंटे से ज़्यादा बीत गये हैं लेकिन एक भी सीन ऐसा नहीं है जिसकी तारीफ कर सकूं। हीरो अक्षय कुमार है बस यही कहानी है फिल्म की, जितना बन पड़ सकता है अक्षय ने कर दिखाया है लेकिन कमजोर कहानी ने सारे किये कराये पर पानी फेर दिया है। हीरोईन तो ऐसी है कि बस पूछिये मत, नाचना भी नहीं सिखाया प्रियदर्शन ने उसको। कुलभूषण खरबन्दा ने जो गंभीरता दिखाई है उसे तार तार कर दिया है कमजोर कहानी और निर्देशन ने। सारे कलाकार प्रियदर्शन की पुरानी फिल्मों के पिटारे से ज़रूर हैं लेकिन कोभी भी छाप नहीं छोड़ पाया। असरानी का टेलीफोन पर कन्फयूज होने वाला सीन तो इतना बकवास है कि खुद आसरानी को शर्म आ जाय़। राजपाल यादव भी क्या करते। सब ने जोर लगाया लेकिन सब दिशाहीन हो गये। भटकाव भी ऐसा की पूरी फिल्मन में रास्ता नहीं मिला। देश प्रेम के नाम पर इतने बासी डायलॉग कि उनमें से बास आ रही थी। ये मेरी खुद की फ्रस्ट्रेशन हो सकती है कि मैं कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर के फिल्म देखने चला गया था। बुरा मत मानियेगा लेकिन प्रियदर्शन की इस फिम्म के केवल बकवास ही बकवास है। कुछ भी देखने लायक नहीं है।dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-74949602098800907662010-07-06T05:38:00.000-07:002010-07-06T05:39:37.147-07:00बहुत कुछ कहता है यह तेवरDainik Jagran se liya hai<br /><br />नई दिल्ली [अवधेश कुमार]। पांच जुलाई के भारत बंद की भौगोलिक व्यापकता और बहुत हद तक मिली सफलता का कोई एक सर्वप्रमुख कारण है तो वह है संप्रग में शामिल और बाहर के कुछ छोटे दलों को छोड़कर शेष राजनीतिक दलो की एकजुटता। एक साथ इतने दलों का भारत बंद में शामिल होना असाधारण है।<br /><br />भाजपा और वामदलों का भारत बंद में शामिल होने का अर्थ ही था कि इनके या इनके साथी दलों की सरकारों या इनके प्रभाव वाले राज्यों में बंद का असर सुनिश्चित होना। वामदल के कारण तमिलनाडु में जयललिता की अन्नाद्रमुक, आध्र में तेलुगूदेशम जैसी पार्टियो ने भी बंद का साथ दिया और भाजपा के साथ राजग के साथी दल तो हैं ही।<br /><br />सरकार का चाहे जो तर्क हो, लेकिन ऐसे समय जबकि देश में मुद्दा आधारित राजनीतिक आदोलनों की परंपरा लगभग समाप्तप्राय है, उसमें बंद को सफल माना जाएगा। अधिकतर राज्यों में बंद प्रभावी रहा है।<br /><br />चरम पर पहुंची महंगाई की इस आपात घड़ी में यदि ये दल इतने आक्रामक तेवर के साथ सामने नहीं आते तो जनता में इनकी साख गिरती। यह विपक्ष के बिखराव का ही मनोवैज्ञानिक असर था कि सरकार ने आम जरूरत की चीजों के मूल्यों में कमी लाने के लिए कदम उठाने की बात तो दूर घाटे को आधार बनाकर तेल की कीमतें बढ़ा दीं और प्रधानमंत्री ने तो टोरंटो से वापसी में यह ऐलान कर दिया कि ये मूल्य और बढ़ सकते हैं। यह देश में महंगाई के खिलाफ कायम जन आक्रोश के विरुद्ध वक्तव्य था। संभवत: काग्रेस नेतृत्व ने यह मान लिया था कि उसके खिलाफ विपक्ष एकजुट नहीं हो सकता।<br /><br />जाहिर है, अगर सरकार की कल्पना के विपरीत महंगाई के बिल्कुल उपयुक्त मुद्दे पर सशक्त विपक्षी एकता दिखी है तो इसके राजनीतिक परिणाम भी आने वाले समय में दिखेंगे। हालाकि संसद के कटौती प्रस्ताव में भाजपा और वामदलों के साथ आने से ही सरकार को चौकन्ना हो जाना चाहिए था, पर शायद उसने इसे एक तात्कालिक परिघटना मानने की भूल की। वास्तव में पिछले लगभग दो दशक से भारतीय राजनीति का जो स्वरूप सघन हो चुका था, उसमें यह कल्पना तक नहीं की जा सकती थी कि भाजपा और वामदल कभी एक पाले में खड़ा होंगे और वे कोई राजनीतिक अभियान चलाते साथ दिखेंगे। किंतु अब यह एक प्रचंड हकीकत के रूप में हमारे सामने है।<br /><br />पांच जुलाई का भारत बंद इस दृष्टि से भारतीय राजनीति में आने वाले समय के लिए नई दिशा का संकेत देने वाला है। हालाकि भारत बंद में एक साथ दिखने वाले राजनीति के इन दोनों ध्रुवों के बीच कोई सकारात्मक समीकरण बनेगा और वह सत्ता समीकरण के रूप में भी उभर पाएगा, ऐसा कहना अभी जल्दबाजी होगा, लेकिन काग्रेस नेतृत्व विरोधी इस बंद पर इनकी एकता का भविष्य में कोई राजनीतिक फलितार्थ नहीं होगा, ऐसा भी संभव नहीं।<br /><br />यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि उनके विरोध में बना यह नया समीकरण, भले तात्कालिक हो, पर उसके रणनीतिकारों की नींद उड़ाने वाला है। काग्रेस नेतृत्व वाले संप्रग की पिछली सरकार इसलिए इतना लंबा खींच गई, क्योंकि वामदल भाजपा भय के मनोविज्ञान से ग्रस्त रहे। वाममोर्चा का नेतृत्व करने वाले माकपा नेताओं का एक ही तर्क होता था कि सरकार को अस्थिर करने से भाजपा को लाभ हो जाएगा। चूंकि 1990 के दशक से आरंभ भाजपा विरोधी राजनीतिक ध्रुवीकरण की अगुवा स्वयं माकपा ही थी, इस कारण उसके लिए सहसा इस आवरण से परे हटने में स्वाभाविक मनोवैज्ञानिक हिचक थी। भारत बंद में इनके एक साथ आने के बाद इतना तो कहा ही जा सकता है कि उस घनीभूत मानसिक हिचक में कमी अवश्य आई है।<br /><br />काग्रेस इस तथ्य को न भूले कि भारत की राजनीति में राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी विपक्षी एकजुटता दो दशकों के बाद दिखी है। स्वर्गीय राजीव गाधी के प्रधानमंत्रीत्व काल में जब काग्रेस को लोकसभा में ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त था, विपक्ष की ऐसी ही एकजुटता दिखी थी। पूरे विपक्ष ने 1989 में भारत बंद का आह्वान किया था और बाद में लोकसभा से सामूहिक त्यागपत्र के ऐतिहासिक कारनामे को अंजाम दिया था।<br /><br />1990 के चुनाव में उसका परिणाम दिखा और काग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जन मोर्चा की सरकार बनी, जिसे तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों में वामदलों और भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया था। ठीक है कि अयोध्या आदोलन पर भाजपा के तेवर से वह समीकरण टूट गया, लेकिन उस समय काग्रेस को जो धक्का लगा, उससे वह आज तक उबर नहीं सकी है।<br /><br />सच कहा जाए तो अगर माकपा ने गैर भाजपा और गैर काग्रेस ध्रुवीकरण में भाजपा को पहला अस्पृश्य मानने की राजनीति न की होती तो इस समय भारत का राजनीतिक परिदृश्य अलग होता। किंतु भाजपा विरोधी राजनीति के अंधेरे ने काग्रेस सहित कई दलों के पापों को ढक दिया। लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी उन्हीं दलों में शामिल है। भाजपा विरोधी राजनीति का इन दलों ने अपने स्वार्थ साधने के लिए इस्तेमाल किया और इसके परिणामस्वरूप उदारीकरण के नाम पर बाजार पूंजीवाद की क्रूर नीतियो के खिलाफ परिणामकारी राजनीतिक संघर्ष नहीं हो सका। वर्तमान महंगाई इसी की परिणति है। भारत बंद में इस श्रेणी के कई नेताओं की सक्रियता से इस जड़स्थिति में परिवर्तन की हल्की उम्मीद जगी है।<br /><br />यह ठीक है कि प्रचार माध्यमों के प्रभावों के कारण जनता के अंदर सामूहिक अन्याय के खिलाफ राजनीतिक संघर्ष की चेतना मृत हो चुकी है और बंद, विरोध प्रदर्शनों आदि को निरर्थक एवं विकास विरोधी बताने की मीडिया के एक तबके की कोशिशों के कारण इनकी खिल्ली उड़ाने का माहौल भी बना है। इस सामूहिक मनोविज्ञान में यह कल्पना ही बेमानी होगी कि राजनीतिक दलों के बंद के आह्वान में जनता स्वत: स्फूर्त आगे आएगी या व्यापारी अपनी दुकानें स्वेच्छा से बंद रखेंगे।<br /><br />दिल्ली में ही कई मुहल्लों की दुकानों का खुला रहना इस बात का प्रमाण था कि राजनीतिक कार्यकर्ताओ को इस बंद का जितना प्रचार करना चाहिए था, बंद के पूर्व इसके लिए माहौल बनाने की जो कोशिश होनी चाहिए थी, उसमें कमी रह गई, लेकिन यह सरकार के लिए किसी तरह संतोष का विषय नहीं है। आम लोगो से बात करने पर प्रतिक्रिया यह थी कि महंगाई ने जीना हराम कर दिया है, इसमें सरकार का विरोध तो होना ही चाहिए यानी लंबे समय बाद विपक्ष के किसी आह्वान को जनता की बहुमत का मानसिक समर्थन मिला है।<br /><br />सरकार इस अंतरधारा को समझे और महंगाई बढ़ने को विकास का सूचक बताने या इसे अवश्यंभावी मानने जैसे तर्को की बजाय राजनीतिक सहमति से महंगाई कम करने की दिशा में कदम उठाए। अब वह यह मुगालता न पाले कि विपक्ष केवल चिल्लाएगा, लेकिन एकजुटता के अभाव में वह उसे कोई राजनीतिक नुकसान नहीं पहुंचा सकता। आर्थिक नीतियों के खिलाफ एक अघाए वर्ग को छोड़कर पूरे देश में असंतोष है, भले वह सामूहिक रूप में प्रकट नहीं हो। विपक्षी दलों ने इसे यदि हवा दी और सतत अभियान चलाया तो पूरे देश में सरकार विरोधी, काग्रेस विरोधी माहौल बन सकता है। ये पार्टिया केवल भारत बंद तक ही तो अपना अभियान सीमित नहीं रख सकतीं। आगे इसमें से धीरे-धीरे कोई ऐसा राजनीतिक समीकरण निकल सकता है, जिसमें भाजपा और वामदलों के बीच किसी तरह सहयोग की गुंजाइश बन जाए।<br /><br />इस बंद से दूर क्यों रहा आम आदमी<br /><br />बीपी गौतम। यूपीए सरकार के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने जब संसद में बजट पेश किया था, तभी निश्चित हो गया था कि महगाई और बढ़ेगी, क्योंकि महगाई रोकने के उपाय बजट के दौरान किए ही नहीं गए। इसलिए महगाई लगातार बढ़ रही है और लगातार बढ़ती भी रहेगी। महगाई को लेकर समाज का हर वर्ग परेशान है। यह बात पक्ष-विपक्ष दोनों ही अच्छी तरह जानते है।<br /><br />विपक्ष एकजुट है और आदोलन का सहारा लेकर यूपीए सरकार को घेरने का प्रयास कर रहा है, लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि यूपीए सरकार की नीतियों से त्रस्त जनता विपक्ष का साथ देती नजर नहीं आई। इसके कई कारण हो सकते है, लेकिन मूल कारण यही है कि जनता का राजनीतिक दलों से ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र से ही विश्वास उठता जा रहा है, क्योंकि जनहित के मुद्दों पर कोई गंभीर नहीं है। सबके सब राजनीतिक लाभ के तहत मुद्दों को देख रहे है और भुनाने का प्रयास कर रहे है, जिसे जनता अब अच्छी तरह समझ गई है, तभी आदोलन का हिस्सा बनकर अपनी परेशानिया और नहीं बढ़ाना चाह रही।<br /><br />गुजरे दशक तक देश और प्रदेश में कई ऐसे प्रभावशाली नेता थे, जो जनहित के मुद्दों पर आदोलन का आह्वान करते थे तो आदोलन का असर दिखाई देता था। उस समय गावों में बसें खड़ी नहीं की जाती थीं और न ही सरकारी मशीनरी आदोलन को बढ़ाने या कुचलने में रोड़ा बनती थी, फिर भी घर-परिवार और काम छोड़ लाखों की संख्या में लखनऊ और दिल्ली की ओर लोग उमड़ते देखे जा सकते थे, लेकिन अब सत्तापक्ष या विपक्ष आह्वान के साथ जनता को लाने के लिए करोड़ों रुपये भी बहाता है। खाने-पीने की व्यवस्था तक की जाती है, लेकिन लोगों से ज्यादा वाहन ही दिखाई देते है। आदोलनों की सफलता के लिए जनता की भागीदारी बेहद जरूरी है। जनता की भागीदारी न होने के कारण ही सरकार पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा। मूल्य घटाने या महगाई रोकने के उपाय करने की बजाए सरकार में बैठे लोग उल्टा विपक्षी दलों को ही फ्लॉप करार दे देते है, जबकि जनता के समर्थन से आदोलन किया जाता तो इसी यूपीए सरकार की जड़ें हिल गई होतीं और जनता के सामने त्राहिमाम करती नजर आ रही होती। किसी भी मुददे पर जनता एक बार खड़ी जाए तो सरकारों की तो बात ही छोड़िए, तानाशाहों का सिंहासन तक हिल जाता है।<br /><br />इस समय महगाई को लेकर विपक्ष एकजुटता का प्रदर्शन कर रहा है और सरकार को घेरने के लिए आदोलन का सहारा ले रहा है, लेकिन विपक्ष के साथ सिर्फ मीडिया ही नजर आ रहा है। मीडिया लोकतंत्र का प्रहरी है और वह अपना दायित्व निभा रहा है, लेकिन राजनेता इसे ही जन समर्थन मानने की भूल कर रहे है और इस बात को लेकर चिंतित नहीं दिख रहे कि जनता उन्हे समर्थन नहीं दे रही।<br /><br />इसका कारण साफ यही है कि राजनेताओं में राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति की भावना बढ़ गई है, जनता की नजर में आज एक भी दल ऐसा नहीं बचा है, जिस पर वह आख बंद कर विश्वास करने को तैयार हो। भ्रष्टाचार और लापरवाही के कठघरे में जनता सभी को एक समान रखती है, इसीलिए आदोलनों का हिस्सा बनकर अपनी परेशानी और अधिक बढ़ाने को तैयार नहीं है। इस मुददे पर राजनेताओं को स्वच्छ मन से विचार कर आत्ममंथन करना चाहिए क्योंकि जनता की लोकतंत्र के प्रति बढ़ती बेरुखी नक्सलवाद को बढ़ावा देने जैसी लग रही है, जिसके दूरगामी परिणाम बेहद घातक हो सकते है।<br /><br /><br />http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6548573.htmldinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-64475547296288571922010-05-28T10:41:00.000-07:002010-05-28T10:44:10.546-07:00एक पल की तस्वीर बनाई है मैने<strong>एक पल की तस्वीर बनाई है मैने<br />चटख रंग नहीं हैं उसमें लेकिन<br />कभी धुंधली नहीं पड़ती <br />धड़कन है धड़कती रहती है<br /><br />ताजा रहती है हर वक्त<br />और<br />जब कभी आंखो के आगे आती है <br />तो केवल मुस्कुराहट और आह लाती है<br /><br />फिर उस पल को जीने की तमन्ना<br />उस तस्वीर में कुरेदने लगती है<br />उस पल की सच्चाई को<br />जिसे मैने झूठ कह दिया कई बार<br /><br />दिन में सपने की तरह<br />आंखे खोल कर रोंगेटों को सरसराती जाती है<br />वो तस्वीर उस पल की धड़कन<br />को जिंदा रखती है हर बार<br /><br />वो पल इस तस्वीर में सांसे लेता है<br />और याद करता है <br />कैसे आंखों के आगे कुछ रंग<br />मिलजुल कर एक तस्वीर बना गये।</strong><br /><br /><br />दिनेश काण्डपालdinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-60803834293984204822010-03-22T22:16:00.001-07:002010-03-22T22:17:25.614-07:00चरागे सहर हूं, बुझा चाहता हूं<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAgwazmtAdIu9MPxpIP4ECJfmiR8iPZMLYoILQTaH7Drrj0_NkQCMILugptdilOFQ56159M2W8UPoOWj-O1PE0srxKpWJ5BgiBuuykdP5J_SBLOuwFbXSonTSvSiQ64j0Qk1ETI7TJJd4/s1600-h/bhagat+singh+original+photo.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 282px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAgwazmtAdIu9MPxpIP4ECJfmiR8iPZMLYoILQTaH7Drrj0_NkQCMILugptdilOFQ56159M2W8UPoOWj-O1PE0srxKpWJ5BgiBuuykdP5J_SBLOuwFbXSonTSvSiQ64j0Qk1ETI7TJJd4/s320/bhagat+singh+original+photo.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5451693917713614962" /></a><br />ये पंक्तियां भगत सिंह ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले लिखी थीं.<br /><br />.........उसे फिक्र है हरदम नया तर्ज –ए-जफा क्या है....... <br /><br />हमें ये शौक है देंखें सितम की इन्तहा क्या है......<br /><br />कोई दम का मेहमां हूं ए एहले महफिल.....<br /><br />चरागे सहर हूं, बुझा चाहता हूं.......<br /><br />हवा में रहेगी मेरे खयाल की बिजली........<br /><br />ये मुश्तके खाक है, फानी मिले न मिले......<br /><br />सितम्बर 27, 1907 ------ मार्च 23, 1931dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-75175832701999497652010-02-20T19:49:00.000-08:002010-02-20T19:52:29.927-08:00आई जी का नकाब कौन पहनेगा<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8rs_ItAQACkm2DGZuB0GALR3x1IK3ZV1by_-Y2XgyhuWr1e0PHgWowtjulinGK-dEUfTcfXiNt2kdnRcAiEnlSfJ5pXX2mzGJOM_fLHENecv149JNiXBa0gSEUIMcxlBzsED7TuJDrd8/s1600-h/IG1.png"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 256px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8rs_ItAQACkm2DGZuB0GALR3x1IK3ZV1by_-Y2XgyhuWr1e0PHgWowtjulinGK-dEUfTcfXiNt2kdnRcAiEnlSfJ5pXX2mzGJOM_fLHENecv149JNiXBa0gSEUIMcxlBzsED7TuJDrd8/s320/IG1.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5440539169527182962" /></a><br /><br /><br /><br /><br /><em><strong>दिनेश काण्डपाल</strong></em><br /> <br /><br />चेहरे पर नाकब लगा कर इस्टर्न फ्रंटियर राईफल्स के आईजी ने प्रेस कॉंफ्रेस की। अपनी प्रेस कॉफ्रेंस में आईजी ने पश्चिम बंगाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाये। आईजी ने कहा कि उनकी फोर्स के साथ अमानवीय बर्ताव हो रहा है। इस आईजी का नाम है विनय कृष्ण चक्रवर्ती और ये इस्टर्न फ्रंटियर के स्पेशल आईजी हैं। सिलदा के नक्सली हमले में इस्टर्न फ्रंटियर के ही 24 जवान मारे गये थे। अपनी जवानों की मौत से घबराये और आहत आईजी ने जब प्रेस कॉंफ्रेस की तो चेहरे पर नाकब बांध लिया। फौरी तौर पर ये खबर देखने के बाद लगता है कि आईजी नक्सलियों से डर गया है वो अपना चेहरा कैमरे पर नहीं दिखाना चाहता। लेकिन सोचिये कोलकाता में आईजी रैंक का अफसर प्रेस कॉंफ्रेंस करता है और वो भी चेहरे पर नकाब डाल कर। क्या आईजी का मकसद केवल अपना चेहरा छिपाना है या कई चेहरों से नकाब खींचना।<br />ये तीखा सवाल है। उन आरोपों पर गौर कीजिये जो इस आईजी ने लगाये हैं। आईजीने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार इस्टर्न फ्रंटियर के साथ अमानवीय बर्ताव कर रही है। आईजी ने कहा कि उनके पास बुनियादी चीजों की कमी है फिर भी वो खतरनाक माओवादी इलाकों में लोहा ले रहे हैं। आईजी की खीझ और गुस्सा जब प्रेस के सामने आया तो उसके खुद के चेहरे पर नकाब पड़ा गया। जाहिर सी बात है इस प्रेस कॉफ्रेंस के तुरंत बाद राज्य सरकार ने आई जी को सस्पेंड कर दिया। सरकार वही कर सकती थी, और करना भी यही चाहिये था।<br />आई जी ने इस तरह की प्रेस कॉंफ्रेस करके हज़ारों सैनिको का मनोबल तोड़ने की कोशिश की है जो नक्सलियों के खिलाफ अभियान में जुटे हैं। आईजी की इस कायराना हरकत की सजा उसे मिलनी चाहिये। लेकिन आईजी के सवालों को भी उतनी ही गंभीरता देनी होगी जितनी उसके नकाब को दी गयी। आईजी की इस प्रेस कॉंफ्रेस को पुलिस रूल का उल्लंघन माना गया और सरकार ने 24 घंटे से पहले आईजी को तो निलंबित कर दिया। लेकिन सरकार ने ये नहीं बताया कि इस वक्त जो जवान नक्सलियों के गढ़ में कैंप लगाये बैठे हैं उनकी सुरक्षा के लिये क्या किया।<br />आईजी की इस हरकत ने सरकार पर सीधे आरोप लगा दिये हैं। पश्चिम बंगाल सरकार का दामन दागदार भी हो गया है। जो सावाल आईजी ने उठाये हैं वो एक सैनिक का दर्द है जो हर वक्त मौत के मुंह में खड़ा है और उसके पास अपना बचाव के हथियार भी नहीं है। सिलदा हमले में हमने देखा कैसे नक्सली दो दिन पहले तक हमले की तैयारी करते रहे लेकिन खूफिया एजेंट पता नहीं लगा सके। आईजी तो यहां तक कह रहा था कि सरकार को सब पता है लेकिन वो न जाने क्यों कुछ नहीं कर रही।<br />देश के बहादुर नौजवान सियासतदानों के खेल में अपनी जान गंवा रहे हैं। आईजी की हरकत बता रही है कि ऐसा ही चलता रहा तो अब पुलिस वाले भी नकाब पहन कर नक्सलियों से निपटने की ट्रेनिंग लेने लगेंगे। समझ में नहीं आता कि ऑपरेशन ग्रीन हंट के सेनापति चिदंबरम इतने बेबस कैसे हो सकते हैं। गृह मंत्री जिस राज्य में माओवादियों को खत्म करने का खाका खींच कर आये वहीं उनके 24 बहादुर जवानों को घर में घुस कर मार दिया गया। ये बेबसी आईजी की ही नहीं है मंत्री जी हालात यहां पर काबू में नहीं आये तो कल ये नकाब जो आज आईजी ने लगाया है गृह मंत्री और प्रधानमंत्री को भी लगाना पड़ सकता है।dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-72054720864683034112010-02-18T21:27:00.000-08:002010-02-18T21:28:33.443-08:00सरकारी लापरवाही ने मारा 24 जवानों को<strong>दिनेश काण्डपाल</strong><br />घातक गलतियों ने 24 जवानों को मार डाला। पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में नक्सिलियों ने शाम को जिस वक्त कैंप पर हमला किया उस वक्त ये जवान अपने हथियारों से दूर ट्रेक सूट पहन कर खाना बना रहे थै। आने वाले खतरे से अन्जान ये जवान इस तैयारी में थे कि कैसे जल्दी खाना बने और दिन भर की थकान मिटायी जाय। कैंप में केवल एक संतरी था। सामान्य तौर पर रेत के बोरे कैंप के आस पास रखे जाते हैं लेकिन सिलदा के कैंप में एसा कुछ नहीं था। कोई ऊंचा टावर भी नहीं था जिस पर चढ़ के देखा जा सके की कौई कैंप की तरफ आ रहा है। बड़ी लापरवाही से योजना बना कर इन जवानों को मौत के मुंह में धकेलने का इंतजाम किया गया। नक्सिलियों ने हमले के अपने परंपरागत तरीकों से हटकर जीप और मोटर साईकिलों का सहारा लिया। धड़धड़ाते हुये सौ से ज़्यादा नक्सली कैंप में धुसे और चूल्हे के पास रोटी सेक रहे जवानों पर अंधाधुध फायरिंग शुरू कर दी। एक संतरी था जाहिर है इस अतिसंवेदन शील इलाके में वो काफी नहीं था। नक्सिलयों ने कैंप को आग लगाई, नौ जवान तो उसी आग में जल कर मर गये। आग से बचने के लिये जो बाहर भागे उन्हें बाहर खड़े नक्सलियों ने भून डाला। बेबस जवान अपनी की मौत का तमाशा देखते देखते मर गये। नक्सलियों ने वो सारे हथियार लूट लिये जो कैंप में रखे थे। <br />ये हमारी तैयारी है नक्सिलियों से निपटने की। इस वक्त कोई 60 हज़ार जवान नक्सलियों से निपटने की स्पेशल ट्रेनिंग ले रहे हैं। सिलदा में मारे गये जवानों के पास कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं थी। उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि उनके इस कैंप में इतना बड़ा हमला हो सकता है। नक्सलियों ने अचानक इस हमले को अंजाम नहीं दिया। आने जाने वाले रास्तों पर सुंरगे बिछा कर नक्सिलयों ने इस बात को सुनिश्चित किया की कोई इस कैंप में मदद के लिये न पंहुच पाये। बारूदी सुरंगे तकरीबन 24 घंटा पहले बिछायी गयी होंगी। इस काम के लिये भी सौ से ज़्यादा लोग लगे होंगे। लेकिन जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से तन्खवाह उठा रहे खूफिया एजेंसी के बेखबर एजेंटों को इस पूरी कारवाई की कोई खबर नहीं लग पायी। नक्सलियों ने बड़े आराम से कैंप पर हमला किया 24 जवानों को गोलियों से भूना और विजयी मुद्रा में कैप से चलते बने। <br />प्रधानंमत्री ने नक्सिलियों को देश की सुरक्षा के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया। प्रधानमंत्री के बयान की गंभीरता तब दिखी जब देश के गृह मंत्री ने इस हमल के कुछ दिन पहले ही नक्सलियों से निपटने की रणनीति का खाका खींचा। कोलकाता में मुख्यमंत्रियों से बैठक कर चौड़ी छाती करते हुये टीवी कैमरों के सामने नक्सलियों को चुनौती दी। ऑपरेशन ग्रीन हंट को लेकर खूब बड़बोलापन किया। एक हमले ने इस बड़बोलेपन की हवा निकाल दी। सरे आम सारी योजनाओं की धज्जियां उड़ा दी। अब किसी की इतनी हिम्मत भी नहीं हो रही कि को इन हमलों की निंदा तक कर सकें।<br />नक्सलियों से निपटने की हमारी क्या तैयारी है इस हमले ने उसकी पोल खोल दी है। कैंप के पास जरूरी तैयारी नहीं की गयीं। केवल एक संतरी ड्यूटी पर था। रेत के बोरे रखे जाने चाहिये थे लेकिन वहां नहीं रखे गये। कैंप के आस पास नज़र रखने का कोई इंतजाम नहीं। ये जंग से कम हालात नहीं हैं। उस अफसर का नाम तक सामने नहीं आया जिसके ऊपर कैंप की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। कौन अफसर था तो इस कैंप में ये देखने गया कि वहां जवानों की सुरक्षा के इंतजाम हैं या नहीं। जंग भी ऐसी जहां दुश्मन की पहचान तक नहीं है। किसे मारें किसे नहीं, सब अपने ही हैं इसी दुविधा में हर सिपाही है। एक खास ऑपरेशन में संवेदनशील इलाके में किस तरह का कैंप लगना चाहिये ये ट्रेनिगं पहले अफसरों को दी जानी चाहिये। बेहद गैरपेशेवराना रवैये ने जिन 24 बहादुरों को मौत के मुंह में धकेल दिया उन पर देश की अदालत में इरादतन हत्या का मामला चलाया जाना चाहिये। ये शर्मनाक लापरवही है उन लोगों की जो नक्सिलियों से लड़ने के लिये जनता का समर्थन मांगते हैं। जो अपने 50 हथियारबंद जवानों की रक्षा नहीं कर सकते वो किस मुहं से आम आदमी की सुरक्षा का भरोसा दिलाये घूम रहे हैं। <br />सिलदा के हमले ने चुनौती को दोगुना कर दिया है। 24 जवानों को तो मौत के मुंह में धकेल दिया अब भी न जाने कितने कैंप इस लापरवाही की मार झेल रहे हैं। नक्सलियों से निपटने की हमारी तैयारी की अगर ये तस्वीर है तो .ये शर्मनाक है।dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-88829015346044013442009-11-11T05:24:00.000-08:002009-11-11T05:37:10.526-08:00Ram<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikSzGMCimuddJqm1767K8Ja8yLSyEaFQsVfF3fD1b9fC_25C162geozvaDmvK5dGHHt40aWC4HQPyCw72a77GRySfRDbi1ctJPz4AYnfl5LlYYCotVmwDkSh2ONw_atCfnIGmplWdyO7Q/s1600-h/DSC01266.JPG"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" 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onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcZZddmStd7-m34prQoQcY4kyBpx_39CvL0IDz9WY1i2u7p18Ncs5xMYRyAwd_sSAlGE1ZpMSSPW0j_6QIIRo-LsxHxJnHciL1dVLwzd9xPsiNSjkyfdhRD-Uyb-EmD9-s21PrZKnTVzE/s1600-h/DSC01229.JPG"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcZZddmStd7-m34prQoQcY4kyBpx_39CvL0IDz9WY1i2u7p18Ncs5xMYRyAwd_sSAlGE1ZpMSSPW0j_6QIIRo-LsxHxJnHciL1dVLwzd9xPsiNSjkyfdhRD-Uyb-EmD9-s21PrZKnTVzE/s320/DSC01229.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5402838720778233490" /></a><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWG1ocJ0FD24jFQkKjj8gZNB_g1aBWkp4FPSAdkz8zjnIo0JY30qx6bbq-j3iT70CEj6XrnKM1rtee-g6efIU43_mjP3VX_HVXT4gpaghXkPlBbKGvMq44Z8YrGyHMgv5m8taevykSxFk/s1600-h/DSC01228.JPG"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWG1ocJ0FD24jFQkKjj8gZNB_g1aBWkp4FPSAdkz8zjnIo0JY30qx6bbq-j3iT70CEj6XrnKM1rtee-g6efIU43_mjP3VX_HVXT4gpaghXkPlBbKGvMq44Z8YrGyHMgv5m8taevykSxFk/s320/DSC01228.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5402838709268422050" /></a>dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-80915799590604169522009-04-22T08:33:00.000-07:002009-04-22T08:42:23.860-07:00मां के आंसुओं का जवाब जनता क्यों देगी वरुण ?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTL1fH-2Ik9sbsemxm-GTzNPiC-xVp_ewFQ2wvR713Ev02EwLYMZN9zRJdQsVnSe9kL9oxcXYw-0jqMjK46eui0LMhGWOJRwv1Rn0OQuNRjtD-N4ZKTRvfSv-6iJg3_lgmYy9JvE7kYxw/s1600-h/maa.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 186px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTL1fH-2Ik9sbsemxm-GTzNPiC-xVp_ewFQ2wvR713Ev02EwLYMZN9zRJdQsVnSe9kL9oxcXYw-0jqMjK46eui0LMhGWOJRwv1Rn0OQuNRjtD-N4ZKTRvfSv-6iJg3_lgmYy9JvE7kYxw/s320/maa.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5327539918256824594" /></a><br /><br /><em><strong>दिनेश काण्डपाल</strong></em><br />क्यों भई वरुण गांधी? मां के आंसुओं का हिसाब जनता क्यों देगी? क्या ये आंसू करगिल में शहीद हुये कैप्टन सौरव कालिया की मां के हैं? या कैप्टन विक्रम बत्रा की मां रो रही हैं जिनका बेटा करगिल जीत कर शहीद हो गया। इन बहादुरों की मांताओं की आंखों से आंसूं नहीं निकलते। मुम्बई हमले के बाद एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की मां की आंखें याद हैं आपको, वो बहादुर बेटे की मां हैं। आंसू टपका कर ये अपने बेटे के शौर्य को कम नहीं करतीं। ये मांताऐं बेहद खामोशी और दृढ़ता से फिर से ऐसे ही शूरवीर बनाने में जुट जाती हैं जो फिर देश पर कुर्बान हो सकें। ये शौर्य और सहास की प्रतिमायें अपने आंसुओं का हिसाब मांगने चुनावी सभाओं में नहीं जातीं। कैप्टन सौरव कालिया जब शहीद हुये उसके बाद रक्षा बन्धन का त्यौहार आया, तब भी करगिल की लड़ाई चल रही थी। ऑल इंडिया रेडियो के लिये एक स्पेशल फीचर बनाने के लिये मैं सौरव की बहन से मिला, भरे हुये मन से मैने उनसे पूछा कि इस बार राखी पर सीमा पर खड़े फौजियों के लिये क्या संदेश देना चाहेंगीं। जो जवाब सौरव कालिया की बहन ने दिया उससे मेरे रोंगटे खड़े हो गये। उन्होंने कहा कि मैं अपने फौजी भाईयों से बस इतना ही कहना चाहती हूं कि बस अब हमारी तरफ से कोई शहीद नहीं होना चाहिये..अब जो भी लाश गिरे वो दुश्मन की होनी चाहिये। ये हमारे देश की मां बहनों का बानगी है। <br /><br /><strong>क्या नौजवान नेता मां के आंसुओं को ढा़ल बनाता है ? </strong><br /><br />एक नौजवान नेता के चुनावी भाषण में क्या मां के आंसुओं का हिसाब मांगा जाना चाहिये। क्या मां के ऊपर कोई ज़ुल्म हो गया है। क्या मां को किसी ने कुछ कर दिया है। मां के आंसू तो अपने बेटे के लिये निकले हैं और बेटे की करनी पर कारवाई चल रही है, इसे देख कर ही तो मां रोई है। बेटे को कष्ट में देखेगी तो मां तो रोयेगी ही। क्या वरुण का कष्ट ऐतिहासिक कष्ट है। क्या मेनका के आंसू इतिहास बदलने जा रहे हैं। वरुण किस बात पर अपनी मां के आंसुओ का हिसाब मांग रहे हैं। हज़ारों मांओं की आंखों से आंसू पोछने की ज़िम्मेदारी जिसे अपने कंधे पर लेनी चाहिये वो अपनी मां के आंसुओं को पोछने के लिये वोट मांग रहा है। <br /><br /><strong>कोई काम की बात क्यों नहीं करते हैं वरुण ?</strong><br /><br />कैसी वाहयात बात करते हैं ये नेता कि मायावती मां होती तो बेटे का दर्द जानती। मेनका का बेटा, बेटा और दूसरे के बेटे का क्या। कितने बेकसूर जेलों में सड़ रहे हैं उनका मेनका ठेका क्यों नहीं ले रहीं। वरुण ने जनता के बीच जाकर भाषण दिया है। अच्छा है या बुरा है, सही है या गलत है ये फैसले करने के लिये व्यवस्थायें लगी हुयी हैं। बड़ी अजीब बात है आप संवैधानिक संस्थाओं के सहारे भी चल रहे हैं, फिर आप अपने भाषण में भी मां के आंसुओं का हिसाब मांगने लगते हैं। जहां आपको ये बताना चाहिये कि आप जनता की सेवा किस तरह से करेंगे वहां आप मां के आंसुओं की ढ़ाल लेकर खड़े हो जाते हैं। अपने विरोधियों को आप ओसामा बिन लादेन बताने लगते हैं लेकिन आप क्या करेंगें ये बात आपकी ज़बान पर ही नहीं आती। <br /><br /><strong>वरुण को इमोशनल मुद्दा ही क्यों सुहाता है?</strong><br /><br />क्या बात है? आखिर वरुण को इमोशनल मुद्दे ही क्यों रास आते हैं? पर्चा दाखिल करने से पहले वरुण ने जो भाषण दिया उसे कोई मनीषी आखिर बताये कि उसमें जनता के कौन से हित की बात की गयी है। पीलीभीत का विकास कैसे होगा। वहां की जनता की परेशानियां क्या हैं ये वरुण के भाषणों का हिस्सा क्यों नहीं होता है। हर वक्त इमोशनल कर देने वाली बांते। हिन्दू श्रोता खड़े हैं तो उनकी धार्मिक जज़्बातों वाली इमोशनल बाते कर दीं, जब सबकी नज़रें कड़ी हो गयीं तो मां के आंसुओं का हिसाब करने की बात करने लगे। राजनीति में वैसे ही पढ़े लिखे नौजवानों का टोटा होता जा रहा है, कोई राजनीति में आना ही नहीं चाहता। नेता पुत्र अपना वरचस्व बनाये हुये हैं ऐस में वरुण ज़रा अपने मन में पूछें कि उन्होंने कौन से आदर्श स्थापित कर दिये हैं। <br /><br /><strong>क्या सिखा रहे हैं वरुण?</strong><br /><br />वायस आफ इंडिया पर एक टॉक शो में मैने बाहुबली नेता पप्पू यादव से पूछा कि आज के नौजवान पप्पू यादव से क्या सीखे....जो जवाब पप्पू ने दिया उस से मुझे शर्म आ गयी। पप्पू यादव ने कहा कि क्या बात कर रहे हैं आप आज के नौजवान हमसे कई बातें सीख सकते हैं..वो हमसे सीख सकते हैं कि कैसे लगन से जनता की सेवा की जाय..गरीबों की मदद कैसे की जाय..फिर हड़बड़ाते हुये पप्पू ने कहा और भी कई सारी बातें है जो नौजवान हमसे सीख सकते हैं ...लेकिन एक ठोस बात पप्पू यादव अपने बारे में नहीं बता सके कि आज का नौजवान पप्पू से क्या सीखे।<br /><br />यहां पर मैं तुलना नहीं कर रहा हूं लेकिन अगर वरुण से भी यही सवाल पूछा जाय तो क्या जवाब आयेगा। वरुण क्या ये बतायेंगें कि जहां जनता को विकास की रोशनी दिखाने की बात करनी जाहिये वहां इमोश्नल तीर कैसे चलाये जाते हैं ये कोई नौजवान उनसे आकर सीख ले। राष्ट्रीय स्तर का नेता बनने का सपना देखने वाली वरुण क्या इस मुगालते में हैं कि वो इमोश्नल मुद्दों पर बहका लेंगें<br />एक तो नोजवान वैसे ही वोट देने घर से बाहर नहीं आ रहा ऊपर से ऐसे नेता अगर हो गये तो समझो बज गया लोकतंत्र का बैंड। <br /><br /><strong>हम भी क्या इमोश्नल वोटर ही बने रहेंगें?</strong><br /><br />जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक भारत एक खोज पर जब श्याम बेनेगल ने धारावाहिक बनाया तो उसमें चाणक्य सेल्यूकस के दूत से कहते हैं कि भारतीय जनमानस मूलत: भवावेश में काम करता है इसलिये सोचने का शक्ति कई बार कुंद पड़ जाती है। इसी बात का फायदा उठा कर हर नेता ने इस जनमानस को हमेशा गलत दिशा दिखलायी है। हम क्या कर रहे हैं। हम भी क्या इमोश्नल वोटर ही बने रहेंगें। अगर आपने गजनी फिल्म दखी है तो उसमें आमिर का एक बेहतीरन डॉयलॉग है उस डायलाग में आमिर कहते हैं कि इंसान को जज़्बातों के साथ काम करना चाहिये, जज़्बाती होकर नहीं। इस डायलॉग से हिन्दुस्ताने के ज़यादातर वोटरों को सीख लेनी चाहिये। फर्क तो करना ही होगा। ये भी देखना होगा की कैप्टन सौरव कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा और मेजर संदीप उन्नीकृषण्न कीं मां क्यों अपने बेटे की शहादत पर आंसू नहीं बहाती हैं और वहीं,वोट मांगने के लिये बेटा अपनी मां के आंसुओं का हिसाब मांगने के लिये जनता को भड़काता है।dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-26892708824426090842009-04-22T07:39:00.000-07:002009-04-22T07:41:37.101-07:00जूतामार लोग कायर हैं............<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHcSyz63RSKhEXoss3G5tjk5Lm_TCwMPs7gXvpqKJRTt-xZsU6jEPk7llAfgSzBayaplAdGn301wLUBvhcXj0wlyIDw-IsjNAtCvnQanXwQW_4NaVHCb9uoOsBXEtwZmfkyEHOAHiZQXY/s1600-h/democrat-politician.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 243px; height: 293px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHcSyz63RSKhEXoss3G5tjk5Lm_TCwMPs7gXvpqKJRTt-xZsU6jEPk7llAfgSzBayaplAdGn301wLUBvhcXj0wlyIDw-IsjNAtCvnQanXwQW_4NaVHCb9uoOsBXEtwZmfkyEHOAHiZQXY/s320/democrat-politician.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5327525876834209426" /></a><br /><br /><br /><strong><em><strong>दिनेश काण्डपाल</strong></em></strong><br /><br /><strong>बुश पर जूता चला तो फिर सीधा चिदम्बरम उसकी चपेट में आये। फिर नवीन जिन्दल और अब आडवाणी। जूता चलाने वालों सें मैं पूछना चाहता हूं कि क्या उनकी इतनी हिम्मत है कि वो मुख्तार अंसारी, शाहबुद्दीन, पप्पू यादव या डीपी यादव पर जूता चला सकते हैं। हमारे देश पर अभी तक जिस भी नेता पर जूता चला है उस पर कोई भी हत्या या लूट का मुकदमा नहीं है। उन पर बूथ लूटने का आरोप भी नहीं है और आप जब उनको हिन्दुस्तान का नेता कहते हैं तो आपको शर्म भी नहीं आती। जूता चलाने वाले ये कायर उन नेताओं पर जूता चलाने की हिम्मत भी नहीं कर सकते जो संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे मांगते हैं, उन पर भी जूता नहीं चला सकते जो अपनी बीबी के टिकट पर पराई नार को विदेश ले जाकर कबूतरबाज़ी करते हैं। चौरासी दंगें के दोषियों पर भी जूता नहीं चला सकते। अपना गुस्सा निकालने के लिये सस्ता रास्ता चुनने वाले इन कायरों को हीरो मत बनाईये। ये बेहद कमज़ोर लोग हैं। इनका कोई दीन ईमान नहीं हैं। <br /><br />जूता चलाने से पहले ये कायर एक बार ये तो सोच लेते कि किस पर जूता चला रहे हैं। जरनैल सिंह हों या पावस अग्रवाल सब के सब कमज़ोर दिल और दिमाग के इंसान हैं। आडवाणी, चिदंबरम या नवीन जिन्दल कौन हैं, क्या ये जानते हैं ? मानता हूं एक लाख गुनाह किये होंगे इन तीनों नेतओं ने लेकिन क्या इनकी सज़ा इन तुच्छ लोगों का जूता है। 50 साल जिस शख्स ने इस हिन्दुस्तान की राजनीति को दिये उन आडवाणी की तरफ पावस अग्रवाल ने चप्पल उछाल दी। तिरंगे झंडे के लिये जिसने अपने जीवन के आधे दिनों तक लड़ाइ लड़ी उसके ऊपर एक शराबी ने जूता उछाल दिया। जो शख्स हिन्दुसातन में आर्थिक सुधारों को लाने वाली कोर दीम का हिस्सा रहा है, कई बार वित्त मंत्री और हमारे देश का गृह मंत्री है उस पर जूता उछालने के बाद जरनैल सिंह माफी मांगता है. <br /><br />गुस्सा बिलकुल जायज़ है। इस व्यवस्था से भी और इस राजनीतिक दशा से भी। ये भी सच है कि पिछले साठ सालों में हर पार्टी ने इस देश को कई तरह से ठगा है, लेकिन इसके लिये जिस पर जूता चलना चाहिये क्या ये वही लोग हैं। क्या जूते का निशाना सही लोगों पर है। क्या आ़डवाणी, चिदंबरम और नवीन जिन्दल इस कुव्यवस्थाओं के सीधे दोषी हैं। चौरासी के दंगो पर क्या चिदम्बरम पर जूता पड़ना चाहिये? हरियाणा की खराब व्यवस्था के लिये क्या नवीन जिन्दल ज़िम्मेदार हैं ? एमपी में आडवाणी पर जूता चलाने वाले पावस आग्रवाल ने आरोप लगाया है कि आडवाणी नकली लौह पुरुष हैं, क्या इस बात पर आडवाणी को चप्पल मार देनी चाहिये ?<br />जूता मारना बिल्कुल ठीक है। बिल्कुल जूता मारना चाहिये। लेकिन निशाना तो ठीक कीजिये। कई गंदे सफेदपोश हैं जो फूलों के हार पहन रहे हैं। चिदम्बरम ने जरनैल को माफ कर दिया। आडवाणी और नीवन जिन्दल ने कुछ नहीं कहा सोचिये ये जूता शाहबुद्दीन, पप्पू यादव या डीपी यादव पर चला होता तो क्या वो माफ कर देते। जूता मारने का साहस करने वाले क्या इतने अंधे हो गये हैं कि उन्हैं इन उन्मादी साहस को दिखाने का दूसरा रास्ता नज़र नहीं आ रहा। सम्हाल कर रखिये अपने जूते को और सही निशाना तलाशिये फिर चलाईये......बड़ा कीमती है जूते का निशाना............ </strong>dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-57628163770389311032009-04-14T10:34:00.000-07:002009-04-15T10:35:45.585-07:00पीएम के लिये टैलेंट हंट- जनता जज नहीं....<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiORNqRRlKdJ6FlcTO-oRqxwrFfU9VL_UnrX6VWkLQvfhwLHdWgeDuFQjYZiWj7Sx475ZD6Ms9wpCla2HwWmpe8TJYl8Xl29qDSaWPQ_lzHRr-EvPg58acse4EHpnXMP_Jgf5fbkz2Vqko/s1600-h/SHOW+JARI+HAI....jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 256px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiORNqRRlKdJ6FlcTO-oRqxwrFfU9VL_UnrX6VWkLQvfhwLHdWgeDuFQjYZiWj7Sx475ZD6Ms9wpCla2HwWmpe8TJYl8Xl29qDSaWPQ_lzHRr-EvPg58acse4EHpnXMP_Jgf5fbkz2Vqko/s320/SHOW+JARI+HAI....jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5324603888120607010" /></a><br /><br /><br /><strong>दिनेश काण्डपाल</strong><br /><br />इस बार पीएम के लिये टेलेंट हंट चल रहा है। उम्मीदवार हैं- मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, मायावती, शरद पवार। आपको करना है वोट, लेकिन ध्यान रहे आप जज नहीं हैं। इस टेलेंट हंट के प्रतियोगियों को करना क्या है ये तो पूछिये ही मत। वो सब कुछ करिये जो नहीं किया जाता। दूसरे की कितनी जड़ खोद सकते हैं ये पहली क़ाबिलियत है। कब्रिस्तान की ट्रेनिंग अगर आपने ली है तो वो काम आ सकती है क्योंकि जो जितने गड़े मु्र्दे उखाड़ेगा उसे उतनी ही फुटेज मिलेगी। भाषण में नयी योजनायें, विकास की बातें नहीं चाहिये ये अनिवार्य शर्त है नहीं तो तालियां भी नहीं मिलेंगी और टीआरपी भी नहीं। <br /><br /><strong><strong>पांच राऊंड....</strong></strong><br /><br />इस टेलैंट हंट में कई राउंड हैं..हर राऊंड के बाद परफार्मेंस बदल देनी होगी। इस हंट के वैसे तो कई जज हैं लेकिन कुछ जज तो ऐसे हैं जो खुद इस वक्त इस शो में हिस्सा ले रहे हैं। मायावती इस शो में अभी तो प्रतियोगी के तौर पर जुड़ी हैं लेकिन आने वाले वक्त में वो जज बनकर विजेता की घोषणा भी कर सकती है। शरद पवार अपना जजमेंट तो दे चुके हैं लेकिन वो कभी भी प्रतियोगी बनकर खेल में शामिल हो सकते हैं। कई छिपे हुये जज भी हैं जिनकी तमन्ना भी इस शो में परफार्मेंस करने की है। लालू-मुलायम-पासवान सब के सब जज हैं। <br /><br /><strong><strong>वाइल्ड कार्ड एंट्री-----</strong></strong><br /><br />वाइल्ड कार्ड एंट्री का भी प्रावधान है इस टेलेंट हंट में। वाइल्ड कार्ड से एंट्री लेंगें राहुल गांधी। आप मत चौंकियेगा अगर भैरो सिंह शेखावत ये कार्ड आज़माते नज़र आ जांय तो। राहुल बाबा तो वाइल्ड कार्ड का जन्म सिद्ध अधिकार लेकर पैदा हुये हैं इस लिये इस हंट में उनका शो ज़बर्दस्त रहने वाला है। <br /><br /><strong><strong>पहली परफार्मेंस.....</strong></strong><br /><br />कुल पांच रांउड होंगे उसके बाद होगा ग्रेंड फिनाले। पहले राउंड की परफार्मेंस हो चुकी है। राग वरुण पर आधारित सैट बीजेपी ने लगाया जिस पर आडवाणी अपने ऱुंधे हुये और भर्राये गले से कई गीतों को एक ही सुर में गा चुके हैं। उनके कोरस में मोदी गुड़िया बुड़िया की बोलियां लगा चुके हैं। अरुण जेटली हंट की शुरुआत में ही कमर लचका के अपने ठुमके का अहसास करवा चुके हैं। जवाब में कांग्रेस का सैट लगा है राहुल राग पर...इस सैट पर जो धुन बज रही है उसमें बुढ़ापे और जवानी का फ्यूज़न है...एक ही सैट पर दो लोग परफार्मेंस दे रहे हैं। मनमोहन आफिशियल प्रतियोगी हैं लेकिन कोरस राहुल मुख्य अभिनेता पर भारी पड़ रहे हैं। कोरस की भुमिका में ही सोनिया भी मुख्य अभिनेता मनमोहन को पछाड़ कर अपने झटके दे देती हैं। पूरे शो में इस बात का कन्फ्यूज़न रहा कि राहुल स्टेज पर हैं या मनमोहन। पहले राऊंड के आखिर में प्रियकां की सरगम भी सुनने को मिली। उन्होंने अपने कोयल गान से नरेन्द्र मोदी की लय बिगाड़ने की कोशिश की लेकिन तान खत्म हुयी भाई के गुणगान पर। पहले राउंड में एक कोरस गा तो रहा था पर किसके लिये पता नहीं चला यो कोरस था अमर सिंह। इसके अलावा बहन जी ने भी परफार्मेंस दी लेकिन मेनका ने उनके तानपुरे के तारों को दो तीन दिन तक अपने में ही उलझा लिया। खैर बहन की परफार्मेंस जैसी भी हो उनका कांन्फिडेंस ज़बर्दस्त है। <br /><br /><strong><strong>तार तार हुयी इज़्ज़त...</strong></strong><br /><br />पहले राउंड में शोर बड़ा रहा, जिसके हाथ में जो तीर आया उसने वही चलाया न तो अपनी इज़्जत देखी न ही दूसरों की। हमारे देश के प्रधानमंत्री पद के सब उम्मीदवार अपनी क़ाबिलियत से ज़्यादा बोलने की माहमारी की चपेट में आ चुके हैं। एक दूसरे की इज़्जत करना तो छेड़िये बेइज़्जती न कर दें इसी की गनीमत मनाईये। कोई किसी को कमज़ोर कह रहा है तो कोई लोहे को प्लास्टिक साबित करने में जुटा है। लेकिन फिर भी इस टेलेंट हंट में एक नयी बात है। वो नयी बात है नये सुकुमार का कन्फ्यूज़न और मौजूदा प्रधानमंत्री का सर दर्द।<br /><br /><strong><strong>प्रियंका का कन्फ्यूज़न..............</strong></strong><br /><br />प्रियंका गांधी के बयान ने ये कन्फ्यूज़ थोड़ा और बढ़ा दिया है एक तो खुद देश के प्रधानमंत्री कभी कभी कन्फ्यूज़ दिखते हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि प्रधानंमत्री पद के उम्मीदवार वही हैं या उनको रहुल के लिये प्रचार करना है। जब से चुनावी सीज़न शुरू हुआ है तब से कम से कम तीन बार मनमोहन सिंह कह चुके हैं कि राहुल में प्रधानमंत्री बनने की क़ाबिलियत है। पूरे देश में बहस हो रही है कि प्रधानमंत्री के लिये वोट आडवाणी के लिये दें या मनमोहन के लिये लेकिन प्रियंका के साथ साथ कांग्रेस के कई नेता राहुल को बीच में ले आते हैं। सोमवार 14 अप्रेल को तो अपनी बहन के बयान के लिये खुद राहुल बाबा को सफाई देनी पड़ी। राहुल ने कहा नहीं भाई नहीं मनमोहन ही प्रधानमंत्री के उम्मीदवार हैं।<br /><br /><strong><strong>खानदानी प्रधानमंत्री............</strong></strong><br /><br />एक सवाल जो हर प्रेस कांफ्रेस में निकल आता है वो यही है। कांग्रेस के पीएम राहुल गांधी या मनमोहन। लाख बार सवाल हो चुका लाख बार जवाब। अब फिर सवाल क्यों पूछा जाता है। सवाल कोई भी हो जवाब यहीं होता है कि राहुल बाबा में पीएम बनने का क़ाबिलियत है। क्या बात है... क्या इस टेलेंट हंट में वोट किसी के नाम से मांगे जायेंगे और गिनती किसी के नाम पर होगी कहीं ऐसा तो नहीं है? वैसे याद आ रहा है आडवाणी और मोदी को लेकर ये टैक्नीक बीजेपी भी आज़माने वाली थी। लेकिन वहां ऐसा होता तो सर फूट जाते सो नहीं हुआ। लेकिन कांग्रेस में सर फूटने की नौबत नही आ सकती। वहीं मैडम है मैडम जो कह दिया वही करना है। <br /><br />जो भी हो इस टेलेंट हंट में बड़ा मज़ा आ रहा है जनता को, वोट डालने से पीएम तय होगा या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन हर रोज़ नये नये बयान तमाशा दिखा जाते हैं और हम तो हैं हीं पुराने तमाशबीन। तमाशा देखेंगे और घर चले जायेंगें। ये लो, ये भी खूब कहीं घर कहां जायेंगें तमाशा तो घर पर ही टीवी में दिख रहा है। चलिये तमाशा ही देख लेते हैं, हम केवल टेलेंट हंट देखने के अधिकारी है ...जज बनने का दुस्साहस मत कीजियेगा। <br /><br /> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIXJukkd2mtIaQNu4ToLRm3NNlXsXVlut4Hiti6iMAz-LUUll648c34U3asYA4tKS8YOT81gd6hqkXO4M6AevXR1qO5GYFYLd07PWZvNbQbDdaeGTURpjplzx8eM6GAL34JmdZi_iDcb8/s1600-h/dinesh+kandpal+1.png"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 256px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIXJukkd2mtIaQNu4ToLRm3NNlXsXVlut4Hiti6iMAz-LUUll648c34U3asYA4tKS8YOT81gd6hqkXO4M6AevXR1qO5GYFYLd07PWZvNbQbDdaeGTURpjplzx8eM6GAL34JmdZi_iDcb8/s320/dinesh+kandpal+1.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5324602267771921330" /></a>dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-652947056365301116.post-22024499876087733632009-04-10T05:21:00.000-07:002009-04-10T05:30:16.174-07:00क्यों न झांके तुम्हारी ज़िन्दगी में ?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVQXbyc4lpESa6cyzedJYavTAabYGGRmaTiNXqin4XANN1UUS9W91G-VnVE1hl7Yl_nrMLt3wD1VnRihlgcoiAzGjAPM8NRPLKLOim03aEMpVmnyOyondfQVeRizJzrv3dWx1cmTlsumw/s1600-h/dinesh+kandpal.png"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 256px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVQXbyc4lpESa6cyzedJYavTAabYGGRmaTiNXqin4XANN1UUS9W91G-VnVE1hl7Yl_nrMLt3wD1VnRihlgcoiAzGjAPM8NRPLKLOim03aEMpVmnyOyondfQVeRizJzrv3dWx1cmTlsumw/s320/dinesh+kandpal.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5323037126744475586" /></a><br /><br />दिनेश काण्डपाल<br /><br /><strong>क्या आपको लगता है कि किसी नेता के व्यक्तिगत जीवन से हमें कोई लेना देना नहीं रखना चाहिये। हमको तो बस ये देखना चाहिये कि कैमरे के सामने नेताजी ने क्या कहा और क्या किया। इन नेताओं का व्यक्तिगत जीवन आखिर होता क्या है। सरकारी कोठी के अन्दर संसद में सवाल पूछने के लिये नोट मांगना व्यक्तिगत है या सार्वजनिक। प्लेन में अपने साथ दूसरे की बीबी को दूसरे देश ले जाकर कबूतरबाज़ी करना व्यक्तिगत है या सार्वजनिक। उदार दिल के लोग इस बात के लिये आसमान सर पर उठा लेंगे कि नेताओं के व्यकितगत जीवन में नहीं झांकना चाहिये। किसी और की निजी ज़िन्दगी से असर पड़ता हो न पड़ता हो लेकिन नेताओं की निजी ज़िन्दगी तो जनता की ही है ना सर। हमारा एक अदद निजी वोट जो बेहद निजी निर्णय है, वो एक नेता को जाता है तो हमारी निजता जब उसके लिये है तो उसकी निजता हमारे लिये कैसे न हो। ये कैसे हो सकता है कि हमारा नेता कुछ भी करे और ये कह दे कि ये निजी है। ये तो कोरी बहानेबाज़ी हो गयी कि ये मामला निजी है। इसी निजीपन से जब बात आगे बढ़ती है तो सामने आता है व्यक्तिगत आरोप। <br /> <br /> इंटरनेट पर एक अखबार की वैबसाईट में एक पोल चल रहा है, इसका सवाल है "चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं द्वारा एक—दूसरे पर व्यक्तिगत छींटाकशी करना ?" जवाब में अधिकाशं पाठकों का कहना है कि व्यकितगत छींटाकशी से बचना चाहिये। अब आप ही बताइये व्यक्तिगत छींटाकशी में क्या बुराई है। हमारे नेता जो कृत्य करते हैं वो खुद तो कभी बताने से रहे अब अगर उनके विरोधियों ने ये बीड़ा उठा लिया है तो मेरे ख्याल से तो ठीक ही है। बहुत सारे लोग इस तर्क से असहमति जताते हुये मर्यादा की सीमा का उदाहरण रख सकते हैं लेकिन अगर व्यकितगत आरोप गलत हैं तो मर्यादा का हनन तो बिल्कुल नहीं होता। और ज़रा गंभीरता से सोचिये कि जब भी हम अपने नेताओं के बारे में सोचते हैं क्या मर्यादा कभी हमारे ज़ेहन में कुलबुली करती है। आज क्या इस बात का कॉम्पटीशन नहीं चल पड़ा है कि किसकी मर्याद कितनी गिरी हुयी है। एक नेता की करतूतें तब आपको शर्मसार करती हैं जब कभी भी आप उसे इस महान देश के सन्दर्भ में देखते हैं। दुनिया हमारे लोकतंत्र के गुण गाती है लेकिन क्या हमें हमारे नेताओं पर गर्व है। <br /><br />हम अपने आदर्श नेताओं के बारे में जब भी खुद पढते हैं या अपने बच्चों को पढाते हैं तो उनका जीवन चरित्र ही उन्हें बताते हैं। गांधी के बारे में हम ये जानते हैं कि उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला। क्या नेता किसी आदर्श से कम है, हम क्यों अपने जलसों में नेताओं को बुलाते हैं, क्यों अपनी दुकानों के रिबन उनसे कटवाते हैं। ये नेता ही तो हमारे देश के सैनिकों के सीने पर मैडल लगाते हैं। इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी वाला नेता का व्यकितगत जीवन अगर खराब तो बताईये कैसै चलेगा। <br /><br />चलिये ये पता करने की कोशिश करते हैं कि व्यकितगत छींटाकशी क्या नुकसान करती है। दरअसल व्यक्तिगत छींटाकशी से कई बातें सामने आ जाती हैं। एक तो वो जो सीधे नेता का नाम लेकर आरोप लगाता है दूसरा वो जिस पर आरोप लग रहे होते हैं। दोनों की मर्यादा आपके सामने खुले आम आ जाती है, हुजूर ऐसे ऐसे तथ्य सामने आ जाते हैं जो आपको आरटीआई से भी नहीं मिलेंगें। इन आरोपों का मतलब समझिये, बारीक नज़र डालकर ये जांचने की कोशिश कीजिये कि आरोप लगने के बाद नेताजी कैसे कुलांचे भरते हैं। जवाब क्यों नहीं देते अपने ऊपर लगे आरोपों का। हर नेता बच के निकलने चाहता है। कोई जवाब नहीं देना चाहता हमारे उस सवाल का जो हम वोट के बदले मांग रहे हैं। <br /><br />ये उम्मीद करना भी बेमानी ही है कि विरोधी नेता आरोप लगायेगें तो दूसरे नेता की पोल पट्टी सामने आ जायेगी। लेकिन कम से कम इस बात का डर तो मन में बैठेगा कि जो भी करना है और छिप के करो क्योंकि जनता तो बेचारी है वो पूछ भी लेगी तो हम जवाब क्यों दे, लेकिन अगर विरोधी को पता लगा तो वो कहीं पोस्टर न चिपका दे।<br /><br />आजकल के मूर्धन्य नेता जो करतूतें कर रहे हैं वो तो ऐसे ही सामने आयेगीं। जब तक छील छील कर इनकी गेंडें जितनी मोटी खाल को उतारा नहीं जायेगा तब तक ये हर नाजायज काम निजी ज़िन्दगी की आड़ में करते रहेंगें और हम ओपिनियन पोल ही चलाते रहेंगें कि इनकी निजी ज़िन्दगी में झांकना चाहिये या नहीं। </strong>dinesh kandpalhttp://www.blogger.com/profile/11596220542203994865noreply@blogger.com2